अर्थशास्त्र की मूल अवधारणाएँ

समष्टि-अर्थशास्त्र की कुछ मूल अवधारणाएँ

Hello दोस्तों, Gyanuday में आपका स्वागत है । आज हम आपके लिए लाए हैं, 12 Class Macro Economics समष्टिगत अर्थशास्त्र का पहला अध्याय “अर्थशास्त्र की कुछ मूल अवधारणाएं “। इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप समझ पाएँगे । अध्याय को बहुत ही आसान भाषा में समझाया गया है, जो कि हर Students को आसानी से समझ आ जायेगा और परीक्षा में अच्छे नंबर ला सकते हैं ।

Table of Contents

Table of contents

1. आर्थिक प्रणाली के समुच्चय का क्या अर्थ हैं ? तथा आर्थिक प्रणाली के समुच्चय कौन-कौन से हैं ?

2. अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं के प्रकार लिखिए ?

3. अंतिम तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में भेद क्यों किया जाता है/ इनमे भेद के महत्व/ भेद की आवश्याकता क्यों होती है ?

4. उपभोग व्यय की अवधारणा तथा इसके घटकों का वर्णन कीजिये ?

5. नियोजित माल-सूची स्टॉक तथा आनियोजित माल-सूची स्टॉक क्या हैं ?

6. अप्रत्याशित अप्रचलन क्या है ?मूल्यह्रास आरक्षित कोष क्या है ? इसके क्या महत्व हैं ?

7. स्टॉक तथा प्रवाह क्या है ?अंतर्क्षेत्रीय प्रवाह क्या है ?प्रवाह की चक्रियता/ चक्रिय प्रवाह क्या है ? इसके क्या महत्व हैं ?

8. स्टॉक तथा प्रवाह क्या है ?

9. अंतर्क्षेत्रीय प्रवाह क्या है ?

10. प्रवाह की चक्रियता/ चक्रिय प्रवाह क्या है ?

आर्थिक प्रणाली के समुच्चय का अर्थ हैं |

आर्थिक प्रणाली के समुच्चय:-

ऐसे आर्थिक चर जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, आर्थिक प्रणाली के समुच्चय कहलाते हैं |

आर्थिक प्रणाली के समुच्चय हैं:-

i). समग्र मांग (AD): एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा अवधि के दौरान सभी वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया कुल व्यय |

ii). समग्र पूर्ति (AS): एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा अवधि के दौरान सभी वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल उत्पादन |

iii). समग्र उपभोग: एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा अवधि के दौरान सभी वस्तुओं तथा सेवाओं का किया कुल उपभोग |

iv). समग्र निवेश: एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा अवधि के दौरान सभी उत्पादकों द्वारा ऐसी वस्तुओं की खरीद पर किया गया कुल व्यय जो उनके पूंजी स्टॉक में वृद्धि करता है |

v). घरेलु आय (GDP): एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा अवधि के दौरान एक देश की घरेलु सीमा में सृजित आय |

vi). सामान्य कीमत स्तर: एक विशिष्ट समयावधि के अंत में वस्तुओं और कीमतों के सूचकांक |

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अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं को निम्न श्रेणियों में वर्गीक्रत किया जाता है:-

i). अंतिम वस्तुएं तथा मध्यवर्ती वस्तुएं

ii). उपभोक्ता वस्तुएं तथा पूंजीगत वस्तुएं

अंतिम वस्तुएं:-  

ऐसी वस्तुएं जो उत्पादन की सीमा को पार कर चुकी हैं और अंतिम उपभोक्ताओं/अंतिम उत्पादकों के द्वारा उपभोग के लिए तैयार हैं |

यह वस्तुएं दो प्रकार की होती हैं (i). अंतिम उपभोक्ता वस्तुएं इन पर किया व्यय उपभोग व्यय (जैसे: डबल रोटी, मख्खन आदि) (ii). अंतिम उत्पादक वस्तुएं:- इनपर किया गया व्यय निवेश व्यय (जैसे: ट्रेक्टर, हार्वेस्टर आदि)

GDP की गड़ना के समय केवल अंतिम वस्तुओं को ही जोड़ा जाता है |

मध्यवर्ती वस्तुएं:-

ऐसी वस्तुएं जो उत्पादन की सीमा के अन्दर होती हैं अर्थात ये वस्तुएं अंतिम उपयोगकर्ताओं के द्वारा प्रयोग के लिए अभी तैयार नहीं हैं| अथवा ऐसी वस्तुएं जो कच्चे माल के रूप में या पुन: बिक्री के लिए एक फर्म द्वारा दूसरी फर्म से खरीदी जाती हैं| अंतिम वस्तुओं के मूल्य में मध्येवर्ती वस्तुओं का मूल्य शामिल होता है |

Note: एक ही वस्तु अंतिम वस्तु या मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है |

Note: किसी वस्तु का अंतिम या मध्यवर्ती होना उसके प्रयोग पर निर्भर करता है |

Note: वस्तुओं का अंतिम प्रयोग ही विभाजन का मुख्य आधार बनता है |

-:अंतिम तथा मध्यवर्ती वतुओं में अंतर:-

मध्यवर्ती वस्तुएं अंतिम वस्तुएं
(i). लेखा वर्ष के दौरान मध्यवर्ती वस्तुएं उत्पादन की सीमा के अन्दर होती है|
(ii). लेखा वर्ष के दौरान कच्चे माल के रूप में अन्य वस्तुओं के उत्पादन या पुन: बिक्री के लिए खरीदा जाता है|
(iii). इनके मूल्य में अभी वृद्धि करना बाकि है|
(iv). इन वस्तुओं के मूल्य को राष्ट्रीय आय की गणना में नहीं जोड़ा जाता|
(v). इनपर किया व्यय मध्यवर्ती लागत या मध्यवर्ती उपभोग कहलाता है|
(i). अंतिम वस्तुएं लेखा वर्ष के दौरान अपनी उत्पादन सीमा पार कर चुकी हैं| (ii). लेखा वर्ष के दौरान अंतिम उपभोक्ता या अंतिम उत्पादक द्वारा उपयोग में लायी जाती हैं|
(iii). इन्हें सीधे प्रयोग में लाने के लिए ख़रीदा जाता है|
(iv). अंतिम वस्तु के मूल्य को राष्ट्रीय आय की गणना में जोड़ा जाता है|
(v). इनपर किया व्यय उपभोग व्यय या निवेश व्यय कहते हैं|

राष्ट्रीय आय की गणना के समय दोहरी गणना से बचने के लिए अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में भेद करना या अलग अलग रखना पड़ता है|इसका कारण यह है की एक मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य अंतिम वस्तु में पहले ही जुड़ा होता है |

उपभोक्ता / उपभोग वस्तुएं:- ऐसी वस्तुएं जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हैं, उपभोक्ता वस्तुएं कहलाती हैं| इन वस्तुओं को चार श्रेणियों में वर्गीक्रत किया जाता है:

टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं: ऐसी वस्तुएं जो कई वर्षों तक उपयोग में लायी जाती हैं इनके सापेक्ष मूल्य अधिक होता है इन्हें बार बार प्रयोग में लाया जाता है जैसे:- TV, रेडियो, कार, स्कूटर, washing machine आदि|

अर्धटिकाऊ वस्तुएं: ऐसी वस्तुएं जिनका उपयोग एक वर्ष या अधिक समय के लिए किया जा सकता है| जैसे: कपडे, फर्नीचर, क्राकरी, आदि |

गैरटिकाऊ वस्तुएं/एकल उपयोग वस्तुएं: जिनका केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है जैसे: स्याही, गैस, दूध,पेट्रोल आदि |

अभौतिक (गैरभौतिक) वस्तुएं या सेवाएँ: ऐसी सेवाएँ जिनका भौतिक रूप नहीं होता जैसे: वकील, डोक्टर, घरेलु नौकर आदि |

पूंजीगत वस्तुएं:-    ऐसी वस्तुएं जिनका उत्पादन की प्रक्रिया में कई वर्षों तक प्रयोग किया जाता है और जिनका मूल्य उच्च होता है| ये उत्पादकों की स्थिर परिसंपत्तियां होती हैं| इन वस्तुओं का प्रयोग करने से मूल्यह्रास होता है |

Note 1: सभी मशीने पूंजीगत वस्तुएं नहीं होतीं |

केवल वही टिकाऊ वस्तुएं पूंजीगत वस्तुएं होती है जिनका प्रयोग उत्पादक वस्तु के रूप में होता है | ऐसी मशीनें जिनका उपभोग वस्तु के रूप में प्रयोग होता है वे पूंजीगत वस्तुएं नहीं हैं |

Note 2: सभी पूंजीगत वस्तुएं उत्पादक वस्तुएं होती हैं किन्तु सभी उत्पादक वस्तुएं पूंजीगत वस्तुएं नहीं होतीं |उत्पादक वस्तुएं (i).कच्चे माल के रूप में (ii)स्थिर संपत्ति के रूप में

उपभोग व्यय:-

समष्टि अर्थशास्त्र में उपभोग व्यय से अभिप्राय समग्र उपभोग से है, अर्थात सभी के द्वारा किये उपभोग का जोड़ इसमें:-

  • परिवार के द्वारा किया उपभोग
  • सरकार द्वारा उपभोग वस्तु की ख़रीद जैसे सुरक्षा, सरकारी स्कूलों के mid-day meal पर व्यय

गैर-लाभ निजी संस्थाओं (मस्जिद,मंदिर,गुरुद्वारों,चर्च) उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय |

समग्र उपभोग व्यय=परिवारों का उपभोग+सरकार का उपभोग+गैर-लाभ निजी संस्थाओं का उपभोगNOTE: परिवार, सरकार तथा गैर-लाभ निजी संस्थाऐ उपभोग वस्तुओं के अंतिम उपयोगकर्ता होते हैं |

नियोजित मालसूची स्टॉक वांछित माल-सूची स्टॉक है जो उत्पादकों को संभावित मांग को पूरा करने तथा लाभ अधिकतम करने के लिए रखा जाता है|

आनियोजित मालसूची स्टॉक अवांछित या अनचाहा माल-सूची स्टॉक है| जो अपेक्षित मांग की तुलना में अधिक होता है| ऐसा मांग की कमी के कारण होता है| इस स्टॉक का कोई महत्व नहीं होता, यह एक हानी होती है|

-:सकल निवेश, शुद्ध निवेश तथा मूल्यह्रास की अवधारणा:-

सकल निवेश:

एक लेखा वर्ष के दौरान स्थिर सम्पत्तियों तथा माल-सूची स्टॉक पर किया गया व्यय सकल निवेश कहलाता है|

सकल निवेश=एक लेखा वर्ष में स्थिर परिसंपत्तियों + मालसूची स्टॉक पर व्यय

शुद्ध निवेश:

एक लेखा वर्ष में स्थिर पूंजी को बनाय रखने के लिए उसकी घिसावट, टूट-फूट आदि पर खर्च किया जाता है और इसको स्थिर सम्पतियों के व्यय में शामिल किया जाता है जबकि इससे उत्पादन क्षमता में कोई वृद्धि नहीं होती बल्कि वह बनी रहती है यह सकल निवेश में सम्मिलित होती है| सकल निवेश में से मूल्यह्रास को घटाया जाए तो शुद्ध निवेश प्राप्त होता है|शुद्ध निवेश से अभिप्राय पूंजी के स्टॉक में होने वाली शुद्ध वृद्धि से है|

शुद्ध निवेश=सकल निवेश मूल्यह्रास

सकल निवेश=शुद्ध निवेश + मूल्यह्रास

शुद्ध निवेश या शुद्ध पूंजी निर्माण का महत्व:

  • उत्पादन की क्षमता में वृद्धि होती है: शुद्ध निवेश से स्थिर परिसंपत्तियों का आकार अथवा संख्या में वृद्धि होती है| जिससे उत्पादन की क्षमता बढती है|
  • रोज़गार के अधिक अवसर: शुद्ध निवेश से उत्पादन क्षमता बढती है, तथा उत्पादन करने के लिए श्रम की जिससे रोज़गार के अवसर प्राप्त होते हैं|

उत्पादकता/ कार्यक्षमता के उच्च स्तर पर कार्य: शुद्ध निवेश से उत्पादन क्षमता के बड़ने से एक उत्पादक उच्च स्तर पर उत्पादन करता है अर्थात अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रवाह अधिक होता है|जिससे संवृद्धि की गति तीव्र होती है |

अप्रत्याशित अप्रचलन:-

ऐसी हानि जिसके बारे में पहले से अनुमान नहीं होता तथा उसके कारण स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में कमी होती है |

इसके दो कारण हैं: (i). प्राकर्तिक आपदाओं, तथा (ii). आर्थिक मंदी के कारण परिसंपत्तियों के मूल्य में कमी को अप्रत्याशित अप्रचलन कहते हैं| अप्रत्याशित अप्रचलन के कारण स्थिर परिसंपत्तियों में होने वाली कमी को पूंजीगत हानि कहा जाता है, अप्रत्याशित अप्रचलन को मूल्यह्रास में शामिल नहीं किया जाता| किन्तु प्रत्याशित प्रचलन को शामिल किया जाता है |

मूल्यह्रास आरक्षित कोष: मूल्यह्रास आरक्षित कोष से अभिप्राय उस कोष से है जो उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादक मूल्यह्रास की हानि को पूरा करने की लिए अपने पास रखते हैं, ताकि स्थिर परिसंपत्ति का पुन:स्थापन किया जा सके |

मूल्यह्रास आरक्षित कोष के महत्व:- मूल्यह्रास आरक्षित कोष से पुन: स्थापन निवेश की आवश्यकता पूरी होती है, इसका प्रयोग करके घिसी-पिटी स्थिर परिसंपत्तियों का पुन:स्थापन किया जा सकता है |

मुल्यह्रास आरक्षित कोष के अभाव में होने वाले प्रभाव:- स्थिर परिसंपत्तियों के  पुन:स्थापन में निवेश का अभाव के कारण निम्न निवेश होगा तथा निम्न स्तर संतुलन जाल में अर्थव्यवस्था फंस जाएगी:-

अर्थशास्त्र में पूंजी, आय, मुद्रा, निवेश, बचत, ब्याज आदि विस्तृत अवधारणाऐं हैं| इनमे से कुछ स्टॉक अवधारणायें हैं तथा कुछ प्रवाह अवधारणायें हैं |

स्टॉक का अर्थ :- स्टॉक समय के एक निश्चित बिंदु पर मापी जाने वाली मात्रा है| यह एक निश्चित समय पर मापा जाता है |

प्रवाह का अर्थ:-  प्रवाह समय की एक विशिष्ट अवधि के दौरान मापी जनि वाली मात्रा है| अर्थात प्रति इकाई समय अवधि में मापा जाता है|(जैसे: एक घंटा, एक दिन, एक महिना, एक वर्ष इत्यादि) |      

स्टॉक तथा प्रवाह के उदाहरण:-

स्टॉक प्रवाह
संपत्ति श्रम बल पूंजी बैंक जमाएँ एक देश में मुद्रा की पूर्ति/मात्र छत की टंकी में पानी दिल्ली से मुंबई के बीच की दूरी आय (उपभोग, उत्पादन ब्याज आदि) मुद्रा का व्यय पूंजी निर्माण पूंजी पर ब्याज एक देश में मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन छत की टंकी से पानी का रिसाव दिल्ली से मुंबई जाती कार की रफ़्तार

अर्थव्यवस्था में एक क्षेत्र अन्य क्षेत्र पर निर्भर करता है इसे अंतर्क्षेत्रीय निर्भरता कहते हैं |

(जैसे: परिवार क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए उत्पादक क्षेत्र पर निर्भर है,  देश के कानून तथा प्रतिरक्षा के लिए उत्पादक क्षेत्र तथा परिवार क्षेत्र सरकारी क्षेत्र पर निर्भर हैं, उत्पादक क्षेत्र उत्पादन के साधनों की प्राप्ति के लिए परिवार क्षेत्र, विदेशी क्षेत्र या सरकारी क्षेत्र पर निर्भर हो सकता है आदि)

अंतर्क्षेत्रीय निर्भरता/अंतरनिर्भरता के कारण वस्तुओं, सेवाओं तथा मुद्रा आदि का प्रवाह इन क्षेत्रों के बीच होता है| इस प्रकार के प्रवाह को अंतर्क्षेत्रीय प्रवाह कहते हैं |

अंतर्क्षेत्रीय प्रवाह को दो भागों में बांटा गया है:-

  1. वास्तविक प्रवाह:- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रवाह वास्तविक प्रवाह कहलाता है |
  2. मौद्रिक प्रवाह:- अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में (चार क्षेत्रों के मध्य में होने वाले) मुद्रा के प्रवाह को मौद्रिक प्रवाह कहते हैं |

NOTE: मौद्रिक प्रवाह वास्तविक प्रवाह का व्युत्क्रम है |

[A] वास्तविक प्रवाह:

फर्मों द्वारा वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री

परिवार क्षेत्र द्वारा दी गई कारक सेवाएँ (जैसे: भूमि, श्रम, पूंजी, और उध्यम्व्रत्ति)

[B] मौद्रिक प्रवाह (वास्तविक प्रवाह का व्युत्क्रम)

वस्तुओं की खरीद पर व्यय

कारक सेवाओं के लिए भुगतान

चक्रीय प्रवाह (प्रवाह की चक्रियता):- अंतर्क्षेत्रीय प्रवाहों की कभी न रुकने वाली निरंतर चक्रियता को चक्रिये प्रवाह कहते हैं इसे उपरोक्त चित्र से समझा जा सकता है |

(i). उत्पादक द्वारा की गई कारक सेवाओं की मांग कभी नहीं रूकती

(ii). उपभोक्ताओं दृारा उपभोक्ता वस्तुओं व सेवाओं के लिए मांग कभी नहीं रूकती

Note: प्रवाह की चक्रियता का वर्णन कौन करता है:-

प्रवाह की चक्रियता मूलरूप से मानवीय जीवन के अस्तित्व से ही होती है अर्थव्यवस्था में अंतर्क्षेत्रीय अंतरनिर्भरता के कारण वस्तुएं तथा सेवाएँ, उत्पादन, उपभोग आदि सभी क्रियाएँ मानवीय जीवन के अस्तित्व के कारण ही हैं चक्रीय रूप में एक से दुसरे पर प्रभाव डालती हैं |

चक्रीय प्रवाह का महत्व:-

(i). विभिन्न क्षेत्रों की अंतरनिर्भरता को प्रकट करते हैं जो अंतर्क्षेत्रीय प्रवाह की चक्रियता को दर्शाते हैं |

(ii). राष्ट्रीय आय के अनुमान को सुविधाजनक बनाते हैं |

अगर आपको इस चैप्टर के Detailed में Notes चाहिये तो आप हमारे Whatsapp 9654600866 पर contact कर सकते हैं ।

धन्यवाद ।

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