Right to Equality in hindi

समानता का अधिकार क्या है ?

What is Right to Equality in hindi

दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम बात करते हैं, ‘समानता के अधिकार’ के बारे में यानी की Right to Equality के बारे में । राजनीति में समानता को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है । स्वतंत्रता, न्याय, अधिकार, कर्तव्य यह सभी कहीं ना कहीं और किसी ना किसी तरीके से समानता के साथ जुड़े हुए हैं । समानता के ऊपर बहुत सारे विचारको ने अपने विचार दिए हैं । प्राचीन काल के यूनानी विचारकों ने भी अपने विचार दिए, मध्य काल के ईसाई दार्शनिकों ने भी अपने विचार दिए और आधुनिक काल में उदारवादियों ने समानता के ऊपर अपने विचार दिए हैं ।

उदारवाद और मार्क्सवाद में समानता को ज्यादा महत्व दिया जाता है । समानता एक परिवर्तनशील अवधारणा है, जो समय के साथ साथ बदलती रही है । हालांकि समानता का जो लक्ष्य है, वह बहुत मुश्किल है । पूरी तरह से समानता की स्थापना नहीं की जा सकती है, हालाँकि सभी विचारक इस बात पर सहमत हैं कि असमानताओं को प्राकृतिक मानकर नहीं छोड़ा जा सकता ।

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समानता का विकास

1 प्राचीन काल में समानता

2 मध्य काल में समानता

3 आधुनिक काल में समानता

समानता का विकास समय के साथ-साथ धीरे-धीरे हुआ । सबसे पहले हम जानते हैं, प्राचीन काल में समानता के बारे में । प्राचीन काल में समानता को बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया गया । जैसे कि अरस्तू ने गुणों के आधार पर नागरिक दास और निवासी में अंतर बताया । इसी तरीके से प्राचीन हिंदू समाज के अंदर वर्ण व्यवस्था के आधार पर असमानता हुई और भेदभाव किया जाने लगा । फिर आगे चलकर

मध्य काल का युग आया, मध्यकाल में ईसाई दार्शनिकों ने समानता को महत्व दिया । लेकिन इससे भी ज्यादा असर नहीं पड़ा क्योंकि ज्यादातर विचारकों ने यह माना कि असमानता प्राकृतिक होती है और समानता नहीं आ सकती । आगे चलकर उदारवादी आए और

आधुनिक युग की शुरुआत हुई । इस युग का आरंभ उदारवाद के साथ माना जाता है । शुरू के उदारवादियों ने स्वतंत्रता पर अधिक बल दिया, ज़ोर दिया । जिससे असमानता को बढ़ावा मिला, लेकिन आधुनिक उदारवादीयों ने स्वतंत्रता के साथ-साथ समानता को भी महत्व दिया । जिससे समानता के स्तर में बढ़ोतरी होने लगी । समानता को सबसे ज्यादा महत्व जो दिया है वह दिया है कार्ल मार्क्स ने । मार्क्स ने तो समानता की स्थापना के लिए हिंसक क्रांति तक का इस्तेमाल किया है । इस तरीके से समानता की जो अवधारणा है, वह समय के साथ साथ बदलती रही है ।

समानता का अर्थ (Meaning of Equality)

अब हम जानते हैं, समानता के अर्थ के बारे में । समानता का मतलब यानी समानता के अर्थ को लेकर विचारक एकमत नहीं है और सभी विचारकों ने आपस में मतभेद किया है । आखिर समानता है क्या ?  (What is Equality ?) लास्की ने यह कहा है कि समाज के अंदर विभिन्नताएँ होती हैं, जो कि प्राकृतिक होती हैं । और उन विभिन्नताओं को स्वीकार करना ही पड़ेगा । “असमान लोगों के साथ समान व्यवहार करना उतना ही अन्याय पूर्ण है, जितना कि समान लोगों के साथ असमान व्यवहार करना ।” इस कथन का बहुत बड़ा मतलब है, तो मान लीजिए कुछ लोग समान यानी सारे के सारे लोग मेहनती हैं । तो उन सब के साथ एक जैसा बर्ताव किया जाएगा और जो लोग असमान हैं, यानी जो समान नहीं है उनके साथ अलग व्यवहार किया जायेगा । एक इंसान मेहनती है, एक इंसान आलसी है, तो उनके साथ समान व्यवहार नहीं करना चाहिए । लास्की यही बताना चाहता है कि असमान लोगों के साथ समान व्यवहार करना उतना ही अन्याय पूर्ण है जितना कि सामान लोगों के साथ असमान व्यवहार करना है ।

जब उदारवाद की शुरुआत हुई या उदारवाद का उदय हुआ तो उदारवादियों ने यह माना कि सभी व्यक्ति समान हैं । इस विचारधारा की वजह से जितने भी राजा महाराजा या कुलीन वर्ग के लोग हुए उनके विशेष अधिकारों को एक बहुत बड़ी चुनौती मिली । और यह माना गया कि सभी व्यक्ति जन्म से तो समान होते हैं । लेकिन समाज में असमानता पैदा हो जाती है । इसलिए पिछड़े लोगों का विकास करने के लिए उन्हें कुछ छूट दी जाती है या आरक्षण दिया जाता है । लेकिन इसके पीछे कोई उचित तर्क होना चाहिए । कहने का मतलब यह है कि समानता लाने के लिए भेदभाव भी किया जा सकता है । लेकिन इसके पीछे कोई ठोस वजह होना चाहिए कोई ठोस उद्देश्य होना चाहिए । उचित तर्क होना चाहिए ।

अब समानता के मतलब को हम बहुत अच्छी तरीके से समझ सकते हैं । वह एक उदाहरण के जरिए समझ सकते हैं । मान लीजिए बहुत लंबी लाइन लगी है । आप और मैं और बहुत सारे लोग उस लाइन में कई घंटों से लगे हैं । कई घंटे चार, पांच 6 घंटे हो गए और नंबर नहीं आया और हम बेचैन हैं कि कब हमारा नंबर आए । अचानक एक व्यक्ति आता है, और वह बिना लाइन  में लगे अपना काम करवा कर चला जाता है । तब आपको क्या का महसूस होगा । जाहिर सी बात है, हम सब को बुरा लगेगा । हम यह चाहेंगे कि हमें भी बिना लाइन के सामान मिले या हमारा भी बिना लाइन के काम बन जाए या हम सब उड़ व्यक्ति से यह कहेंगे की ओ भाई क्या हम लोग या इतने सारे लोग पागल हैं जो घंटो से लाइन में लगे हैं या फिर हम उससे झगड़ा करेंगें । इसका मतलब यह है कि अगर मैं लाइन में लगा हूं । आप लगे हैं और बाकी लोग लाइन में लगे हैं, तो पूरी सभी लोग लाइन में लगे यानी हम सब चाहते हैं कि सभी के साथ समानता हो । सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए, एक जैसा बर्ताव किया जाए ।

अगर किसी को बिना लाइन के सामान मिल रहा है । तो बिना लाइन के सामान आपको भी मिले, मुझे भी मिले, हम सबको मिले । कहने का मतलब यह है कि अगर मैं लाइन में लगा हूं तो पूरी दुनिया लाइन में लग जाए तो इस तरीके से समानता के लिए तीन चीजों का होना बहुत जरूरी है । सबसे

पहली बात समान लोगों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए ।

दूसरा विशेष अधिकारों का अंत कर देना चाहिए, विशेष अधिकारों का मतलब है किसी को छूट देना यानी बिना लाइन के काम का करवाना । तो इसको खत्म कर देना चाहिए सबको एक जैसे अधिकार दो सबको लाइन में लगने के लिए कहो और ।

तीसरा भेदभाव को कम किया जाए इसके लिए कोई उचित तर्क दिया जाए । उसके पीछे कोई ठोस वजह होनी चाहिए । आप सोचिये आप बहुत देर से लाइन में लगे हैं और हमारा नंबर नहीं आया और जो इंसान बिना लाइन के सामान ले रहा है । वह बहुत ही बुजुर्ग है, उससे खड़ा ही भी नहीं हुआ जा रहा है या वह इंसान अंधा है, Blind है, लंगड़ा है, लूला है या बहुत ज्यादा बीमार है तो तब आप और मैं कुछ नहीं कहेंगे । हम कहेंगे चलो कोई बात नहीं बुजुर्ग है । इसको ऐसे ही सामान लेने दो बिना लाइन के ही इसका काम ऐसे ही होने दो । तो यहां पर परिस्थिति देखी जाती है । यहां पर हालात देखे जाते हैं । अब यहां पर समानता के दो मतलब हो गए सबको लाइन में लगने के लिए कहा जाए और और दूसरा कुछ लोगों को ज्यादा छूट दी जाए तो इस तरीके से समानता के अर्थ को लेकर बहुत सारे विचारक एकमत नहीं हैं ।

असमानता के प्रकार (Types of inequality)

1 प्राकर्तिक असमानता

2 सामाजिक असमानता

पहले हम जानते हैं, असमानता के बारे में । समानता से पहले असमानता को समझना बहुत जरूरी है । असमानता को दो हिस्सों में बांटा जाता है । प्राकृतिक असमानता और सामाजिक असमानता । प्राकृतिक असमानता वह होती है, जो प्रकृति के द्वारा बनाई जाती है । जैसे कि एक व्यक्ति अमीर घर में पैदा हुआ है या गरीब घर में पैदा हुआ है, एक व्यक्ति अपंग है, लूला है, लंगड़ा है या वह अस्वस्थ है या फिर एक कोई बचपन से मंदबुद्धि बालक है या फिर दूसरा बहुत ही तीव्र बुद्धि वाला बालक है तो बहुत सारी चीजें ऐसी होती है, जिसके लिए हम समाज को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि यह तो प्राकृतिक है । Natural ही है । इसके लिए हम समाज को बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते । आपने एक फ़िल्म देखी होगी “साजन” जिसमें संजय दत्त हीरोइन के साथ क्लब से लौटता है तो रास्ते में कुछ गुंडे हीरोइन को छेड़ते हैं तो संजय दत्त कुछ नहीं कर पाता क्योंकि वह एक टांग से अपंग होता है । कुछ देर में पुलिस आ जाती है, तो पुलिस वाला संजय दत्त को डांटता है कि तुम इतने अच्छे नौजवान होकर लड़की की हिफाज़त नहीं कर पाए, तो फिर वह हीरोइन बताती है कि यह हैंडीकैप इसलिए कुछ नहीं कर पाया तो फिर वह चर्च में जाता है और भगवान से शिकायत करता है कि आपने मेरे साथ भेदभाव किया इसलिए मैं उसको बचा नहीं पाया फिर थोड़ी देर में एक व्यक्ति Wheelchair पर आता है जिसके हाथ पैर नहीं होते फिर संजय दत्त गॉड से कहता है कि मुझे अपने सवालों का जवाब मिल गया ।

तो समाज के अंदर बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, उसके लिए हम किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते । तो यह चीजें तो एक तरीके से प्राकृतिक होती हैं और आज के इस दौर में प्राकृतिक असमानता बदली जा सकती हैं । पूरी तरीके से तो नहीं बदली जा सकती लेकिन कुछ हद तक उनको बदला जा सकता है । अब सवाल यह होता है कि प्राकृतिक असमानता को आखिर कैसे बदला जा सकता है । दरअसल आज का जो यह दौर है, यह विज्ञान का दौर है । तकनीक का दौर है और इस विज्ञान और तकनीक के दौर में प्राकृतिक असमानता को कुछ हद तक कम किया जा सकता है, बदला जा सकता है । जैसे अपंग लोगों के लिए नकली हाथ पैर बनाए जा सकते हैं । प्लास्टिक सर्जरी से तो इंसान के पूरे चेहरे को बदला जा सकता है । इस तरीके से आज के इस विज्ञान के दौर के अंदर प्राकृतिक समानता को काफी हद तक कम किया जा सकता है । गूंगे लोगों के लिए बोलने के लिए मशीन आती है और बहरों के लिए सुनने की मशीन आती है । जिसके जरिए हम अच्छे दिखतें हैं ।

दूसरी है, सामाजिक असमानता । सामाजिक असमानता ऐसी है जो प्रकृति ने नहीं बनाई बल्कि समाज ने बनाई है । जैसे कि लोगों में धर्म के नाम पर भेदभाव होता है, जाति प्रथा के नाम पर भेदभाव होता है । लिंग के नाम पर भेदभाव होता है । अमीर गरीब के नाम पर भेदभाव होता है । यह सारी चीजें प्रकृति ने नहीं बनाई । प्रकृति ने हमें नहीं बताया कि आप हिंदू हो मुसलमान हो । तुम ऊंची जाती से हो या वह नीची जाति से है ।  ये सब सोसाइटी के अंदर आकर ही पैदा हुई हैं । तो सामाजिक असमानता को खत्म करने के लिए लोगों की सोच यानी कि Mentality के अंदर बदलाव लाना पड़ेगा । परिवर्तन लाना पड़ेगा ।

समानता के प्रकार (Types of Equality)

1 कानूनी समानता

2 राजनीतिक सामानता

3 आर्थिक समानता

4 सामाजिक समानता

अब हम जानते हैं समानता के प्रकार के बारे में । समानता के चार प्रकार होते हैं । कानूनी समानता, राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता और सामाजिक समानता । पहले हम जानते हैं

कानूनी समानता के बारे में । कानूनी समानता के अंदर दो चीजों को शामिल किया जाता है । कानून के सामान और कानून के समक्ष समानता । पहली चीज है कानून के समक्ष समानता और दूसरी चीज है कानून के समान संरक्षण । कानून के समान समानता इसका मतलब है कि सभी व्यक्ति कानून की नजरों में बराबर हैं । कोई भी कानून से बड़ा या छोटा नहीं है बल्कि कानून सभी के लिए बराबर है और सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ किसी तरीके का कोई भेदभाव नहीं करेगी । इसे कहते हैं कानून के समक्ष समानता यानी सभी लोग कानून की नजरों में बराबर है और दूसरा है कानून के समान संरक्षण इसके अंदर यह बताया जाता है कि कानून सभी की बराबर हिफाजत करेगा, सुरक्षा करेगा । कानून किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा कि कानून सिर्फ अमीरों को बचाएगा गरीबों को पकड़ेगा । ऐसा नहीं है बल्कि कानून सभी की बराबर हिफाजत करेगा और कानून किसी के भी साथ संपत्ति जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा । तो कानूनी समानता का होना बहुत जरूरी है । तभी समानता अच्छी तरीके से आ सकती है ।

दूसरी है राजनीतिक समानता । राजनीतिक समानता के अंदर राजनीति अधिकारों को शामिल किया जाता है । प्राचीन काल के अंदर लोकतंत्र नहीं था । राजतंत्र था, तो राजतंत्र के अंदर उच्च वर्ग के लोगों को या फिर राजा महाराजाओं या इनके संबंधियों को ज्यादा अधिकार दिए गए थे । राजनीतिक समानता, लोकतंत्र के अंदर होती है क्योंकि लोकतंत्र के अंदर सभी को वोट डालने का और Election लड़ने का अधिकार होता है और सरकार की आलोचना करने का भी अधिकार होता है । तो कोई भी व्यक्ति राजनीति के अंदर भाग ले सकता है । जब राजनीतिक समानता होगी यानी कि सभी को राजनीतिक रुप से बराबर समझा जाएगा । और

तीसरी है आर्थिक समानता । राजनीतिक समानता तभी आ सकती है, जब आर्थिक समानता हो । यानी व्यक्ति की आर्थिक आरक्षी हो तभी वह अपनी राजनीतिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है । आर्थिक समानता के अंदर काम करने, काम पाने यह सारे अधिकार शामिल हैं । आर्थिक समानता का मतलब होना भी जरूरी है तभी देश तरक्की कर सकता है और

चौथा सामाजिक समानता । सामाजिक संबंधों का होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि समाज के अंदर हम देखते हैं, अमीर गरीब ऊंची जाति, नीची जाति या आपस में लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे से भेदभाव करते हैं । अगर सामाजिक समानता आ जाएगी तो यह सारे भेदभाव खत्म हो जाएंगे । इस तरीके से समानता के चार रूप होते हैं या चार प्रकार होते हैं । कानूनी समानता, राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता और सामाजिक समानता ।

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