Justice in Political Science

Justice in Political Science in Hindi

राजनीति विज्ञान में न्याय का परिचय

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । दोस्तों इस बार हम बात करते हैं, न्याय के ऊपर यानी Justice. न्याय को राजनीति विज्ञान के अंदर बहुत ही महत्वपूर्ण विषय माना जाता है, क्योंकि हर राजनीतिक व्यवस्था का उद्देश्य न्याय की स्थापना करना है । लेकिन सवाल यह है कि न्याय क्या है ? इसके मापदंड क्या है ? और इसे किस तरीके से प्राप्त किया जा सकता है ?

न्याय का अर्थ (Meaning of Justice)

न्याय के बारे में सभी विचारक एकमत नहीं हैं । लेकिन ज्यादातर विचारक इस बात पर सहमत हैं कि न्याय की स्थापना होनी चाहिए । न्याय का अर्थ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग है । जैसे

मानव की प्राकृतिक क्षमता को ध्यान में रखना, यह ‘प्राकृतिक न्याय’ कहलाता है ।

कानून की दृष्टि में सभी को समान समझना, यह ‘कानूनी न्याय’ कहलाता है । और

राजनीतिक रूप से सभी को समान राजनीतिक अधिकार देना, यह ‘राजनीतिक न्याय’ कहलाता है ।

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प्राचीन काल में न्याय को “जैसी करनी वैसी भरनी” के नाम से जाना जाता था या इसे “ईश्वर की इच्छा” कहा जाता था । चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस के हिसाब से ।

“राजा को भला काम करने वाले लोगों को इनाम देकर और बुरा काम करने वाले लोगों को दंड देकर समाज में न्याय की स्थापना करनी चाहिए ।”

इसी तरीके से प्लेटो ने अपनी किताब द रिपब्लिक (The Republic) में न्याय को कर्तव्य पालन के साथ जोड़ा और कुछ लोग न्याय को हक और उचित स्थान के साथ जोड़ते हैं । यानी हर व्यक्ति को उसका उचित हक और स्थान मिलना चाहिए तभी न्याय की स्थापना हो सकती है । और हर व्यक्ति को उसका उचित हक और स्थान उसकी योग्यता के अनुसार मिलना चाहिए । इस तरह से न्याय के बारे में सभी विचारक एकमत नहीं हैं और सभी विचारकों ने अपने-अपने अनुसार न्याय का मतलब समझाने की कोशिश की है ।

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न्याय के मापदंड

न्याय के तीन मापदंड होते हैं जो निम्नलिखित हैं ।

1 समानता

2 योग्यता और

3 आवश्यकता

I न्याय का पहला मापदंड समानता है, यानी न्याय की स्थापना के लिए सबसे पहले भेदभाव को खत्म किया जाना चाहिए यानी किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग, संपत्ति आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए और सामान लोगों को समान अधिकार दिए जाएं । जैसे अगर दो अलग-अलग जाति के लोग एक ही तरह का काम करते हैं चाहे वह पत्थर तोड़ने का काम हो या पिज़्ज़ा बांटने का काम । तो दोनों को समान परिश्रम मिलना चाहिए यानी समान वेतन मिलना चाहिए या अगर एक व्यक्ति को सौ रुपए मिलते हैं और वही काम करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को ₹75 मिलते हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह नीची जाति का है, तो यह अन्याय है ।

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तो न्याय की स्थापना के लिए सबसे पहले समानता का होना बहुत जरूरी है । तभी न्याय की स्थापना हो सकती है और कभी-कभी हम समानता को अपनाते हैं तो न्याय की स्थापना पूरी तरीके से नहीं हो पाती ।

II तब हमें न्याय के दूसरे मापदंड को देखना पड़ता है जोकि योग है, योग्यता । यानी हर व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार प्रतिफल मिलना चाहिए । अगर कोई व्यक्ति एक ही काम कर रहा है, दो व्यक्ति, तीन व्यक्ति या बहुत सारे व्यक्ति एक ही काम कर रहे हैं तो उनको सामान परिक्षम नहीं देना चाहिए, बल्कि यहां पर व्यक्ति की योग्यता को देखना चाहिए ।

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मिसाल के तौर पर एक स्कूल में बहुत सारे छात्र पढ़ते हैं तो सारे छात्रों को यह कहकर पास नहीं किया जा सकता कि सभी एक ही Class के छात्र हैं, और सब ने एक जैसी परीक्षा दी है । तो सबको समान अंक नहीं दिए जा सकते यहां पर विद्यार्थी यह सोचेंगे कि वह हो सके तो उनकी कोशिश के मुताबिक या उनकी उत्तर पुस्तिका की जांच के हिसाब से उनको अंक दिए जाएं तो यहां पर योग्यता को भी देखना जरूरी है । एक ही काम को एक इंसान बहुत मेहनत के साथ करता है और दूसरा इंसान आलस या निकम्मे पन के साथ उस काम को कर रहा है तो दोनों को समान वेतन नहीं दिया जा सकता बल्कि जिसने ज्यादा मेहनत की है, उसे ज्यादा वेतन मिलना चाहिए और जिसने कम काम किया है या कम मेहनत की है उसे कम वेतन मिलना चाहिए । तो न्याय का दूसरा मापदंड योग्यता है । हर व्यक्ति को उसकी योग्यता के हिसाब से प्रतिफल मिलना चाहिए ।

पर कभी कभी ना तो समानता से न्याय की स्थापना हो सकती ना ही योग्यता को ध्यान में रखकर न्याय की स्थापना हो सकती है ।

III तब हमें न्याय की स्थापना करने के लिए तीसरे सिद्धांत की जरूरत पड़ती है । जिसे कहते हैं, आवश्यकता ।

समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों लोगों से बहुत अलग होते हैं । उनकी विशेष जरूरतों का ख्याल हमें रखना पड़ता है ।  मिसाल के लिए समाज के अंदर अपंग लोग भी होते हैं, अपाहिज लोग होते हैं या महिलाएं होती हैं । गरीब होते हैं, कमजोर होते हैं । यह लोग वह काम नहीं कर सकते जो एक नवयुवक या स्वस्थ व्यक्ति कर सकता है । जैसे जो विकलांग लोग हैं, उनके आने-जाने के लिए ढलान वाले रास्ते बनाए जाते हैं, क्योंकि वह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके ऊपर नहीं चढ़ सकते या लिफ्ट बनाई जाती है । बीमार और अपंग लोगों के लिए क्योंकि वह सीढ़ी का इस्तेमाल कर के ऊपर नहीं चढ़ सकते । इसी तरीके से महिलाओं को रात में आने जाने के लिए या जो महिलाएं कॉल सेंटर या नाइट जॉब करती हैं । जो महिलाओं के आने जाने के लिए गाड़ी का प्रबंध किया जाता है क्योंकि वह शिक्षित होकर अच्छी तरीके से काम पर जा सके ।

तो यहां पर हमें विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल भी रखना पड़ता है । बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो असहाय होते हैं । जिनकी कोई सहायता नहीं करता । जैसे महिलाएं होती हैं जो विधवा हो जाती हैं, तो सरकार उनको पेंशन देती है, उनका पति नहीं है तो इसी वजह से वह बाहर काम  करती हैं और ज्यादा पैसे नहीं कमा सकती । कुछ महिलाएं तो घर से बाहर भी नहीं निकल पाती । इसी तरह से बहुत सारे बुजुर्ग लोग होते हैं, जो बुढ़ापे की वजह से काम नहीं कर सकते हैं । तो सरकार विधवाओं को पेंशन देती है, और बुजुर्गों को भी पेंशन देती है । यहां पर आवश्यकता को भी ध्यान में रखना पड़ता है ।

न्याय की प्राप्ति

आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर भी न्याय की स्थापना की जा सकती है । न्याय के चार पक्ष हैं ।

1 कानूनी न्याय

2 सामाजिक न्याय

3 राजनीतिक न्याय और

4 आर्थिक न्याय

तो आज के लिए इतना ही अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो यह अपने दोस्तों के साथ शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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