Globalization in hindi

Globalization in hindi very easy language

वैश्वीकरण के बारे में सब कुछ

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, वैश्वीकरण की यानी Globalization. Chapter को शुरू करने से पहले हम तीन लोगों की कहानीयां जान लेते हैं ।

1 जनार्दन

2 रामधारी

3 सारिका

जनार्दन एक कॉल सेंटर में काम करता है । देर दोपहर घर से वह काम करने के लिए निकलता है और जैसे ही वह दफ्तर में पहुंचता है, तो वह जॉन बन जाता है । एक नई भाषा और एक नए लहजे को अपना लेता है । इस भाषा और इस लहजे का इस्तेमाल वह अपने घर में नहीं करता । जनार्दन पूरी रात काम करता है । जो असल में उसके ग्राहकों के लिए दिन का समय होता है और उसकी छुट्टियां भी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से होती हैं यानी अमेरिकन कैलेंडर के हिसाब से । जहां उसके ग्राहक रहते हैं ।

दूसरी कहानी है, रामधारी की । रामधारी की 9 साल की एक बेटी है । वह अपनी बेटी को जन्मदिन पर साइकल उपहार में देना चाहता है । अब वह बाजार में जाकर ऐसी साइकल ढूंढने की कोशिश करता है, जिसकी कीमत भी कम हो और क्वालिटी भी अच्छी हो । आखिरकार उसे एक ऐसी साइकल मिल जाती है, जो चीन के अंदर बनी हुई होती है और बिक भारत में रही होती है । रामधारी उस साइकल को खरीदने का फैसला करता है । इससे पिछली बार रामधारी ने अपनी बेटी को जन्मदिन पर उसकी ज़िद पर बार्बी डॉल (Barbie Doll) उपहार में लाकर दी थी, जो कि अमेरिका में बनी थी लेकिन बिक भारत में रही थी ।

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तीसरी कहानी है, सारिका की । सारिका अपनी परिवार की पहली पढ़ी-लिखी महिला है । जिसने बहुत ही मेहनत से अपनी मेहनत के दम पर स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की । अब सारिका के सामने अपना करियर बनाने के लिए और नौकरी करने के लिए मौका है । ऐसे मौके के बारे में उसके परिवार की महिलाएं सोच भी नहीं सकती । लेकिन सारिका के परिवार वालों में कुछ लोग नौकरी करने के खिलाफ हैं । पर सारिका नौकरी करने का फैसला ले लेती है, क्योंकि वह अपना भविष्य और अपने परिवार का भविष्य और अपने आने वाले पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करना चाहती है ।

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यह जो तीनों कहानियां हैं, किसी ना किसी तरीके से एक दूसरे से वैश्वीकरण के साथ जुड़ी हुई हैं । जनार्दन की कहानी हमें सेवाओं के आदान-प्रदान के बारे में बताती है, क्योंकि जनार्दन भारत में रहता है और अमेरिका को अपनी सेवा प्रदान करता है । रामधारी की कहानी हमें वस्तुओं के आदान-प्रदान के बारे में बताती है । जैसे रामधारी अपनी बेटी के लिए साइकल खरीद कर लाता है । और वह साइकल चीन के अंदर बनी हुई होती है, लेकिन बिके भारत में रही होती है या बार्बी डॉल खरीद के लाता है तो वह वह अमेरिका के बनी हुई है लेकिन भी भारत में बिक रही है । और सारिका की कहानी से विचारों के आदान-प्रदान के बारे में और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बारे में हमें मालूम होता है ।

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तो वैश्वीकरण के अंदर क्या होता है ? विचारों, वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता है । वो भी बहुत तेजी से ।  वैश्वीकरण के सिर्फ सकारात्मक प्रभाव ही नहीं पड़ते बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं ।

वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव

अगर हम कुछ घटनाओं पर ध्यान दें तो, इस बात को बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि फसल के नष्ट होने से कुछ किसान आत्महत्या कर लेते हैं । इन किसानों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों से महंगे महंगे बीच खरीदे थे और उन्हें उम्मीद थी कि इस बार फसल अच्छी हो जाएगी तो बीज की कीमत को चुका देंगे और अपने लिए भी कुछ बचा लेंगे । लेकिन फसल चौपट हो जाती है । इसी चिंता में किसान आत्महत्या कर लेता है ।

यूरोप के अंदर एक बहुत बड़ी कंपनी ने अपनी प्रतियोगी छोटी कंपनियों को खरीद लिया । जबकि खरीदी गई कंपनी के मालिक इस खरीदारी के खिलाफ थे । भारत के अंदर भी बहुत सारे खुदरा व्यापारियों को यह डर है कि अगर विदेशी कंपनियों ने भारत में अपनी खुदरा दुकानें खोल ली तो उनका कारोबार भी ठप पड़ जाएगा । उनके हाथ से उनकी रोजी-रोटी छिन जाएगी ।

मुंबई के फिल्म निर्माताओं पर यह आरोप अक्सर लगता रहता है कि उसने हॉलीवुड की फिल्मों की कहानी चुराकर अपने नाम से फिल्में बनाई हैं ।

इसी तरीके से पश्चिमी कपड़े पहनने वाली छात्राओं को उग्रवादी संगठनों ने अपने बयान के अंदर धमकी दी है कि वह इस तरीके की कपड़े ना पहने ।

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तो इस तरह की घटनाएं हमें यह बताती हैं कि वैश्वीकरण हर मामलों में सकारात्मक नहीं होता बल्कि इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं ।

वैश्वीकरण का अर्थ (Meaning of Globalization)

अब सबसे पहले हम वैश्वीकरण का अर्थ जान लेते हैं । आखिर वैश्वीकरण कहते किसे हैं ? वैश्वीकरण का मतलब होता है,

“जब एक देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया के बाकी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के साथ जोड़ दिया जाए तो इसी को वैश्वीकरण कहते हैं ।”

वैश्वीकरण में वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, विचारों औऱ संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता है और लोगों की आवाजाही भी होती है । वैश्वीकरण के तीन आयाम या पक्ष है ।

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1 आर्थिक पक्ष

2 सांस्कृतिक पक्ष

3 राजनीतिक पक्ष

सबसे पहले आर्थिक पक्ष के बारे में जान लेते हैं । इसका मतलब होता है कि वैश्वीकरण की वजह से दुनियाभर के देशों के बीच वस्तुओं सेवाओं का खुलकर आदान-प्रदान होने लगा है । क्योंकि वस्तुओं और सेवाओं पर जो प्रतिबंध था, वह कम हो गया जिससे आयात और निर्यात बहुत सरल हो गया है । आसान हो गया है । वैश्वीकरण की वजह से निजी कंपनियों को बढ़ावा मिला है और वैश्वीकरण की वजह से ही विदेशी उद्योगों को औऱ विदेशी निवेशकों को भी तेजी से बड़ावा मिला है, यानी एक देश का उद्योगपति दूसरे पर देश में पैसा लगाकर, निवेश करके उद्योग खोल सकता है ।

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वैश्वीकरण से विकसित देशों को बहुत फायदा हुआ है, क्योंकि उनको विकासशील देशों के अंदर सस्ते सस्ते मजदूर मिल गए हैं और बाजार भी मिल गया है । मिसाल के लिए अगर कोई विकसित देश अपने देश के अंदर कारोबार करता है । अमेरिका या यूरोप तो इन देशों को जो अपने वर्करों को या अपने कर्मचारियों को जो सैलरी है वो डॉलर में या यूरो में देनी पड़ेगी । अब मान लो अमेरिका की कंपनी अगर अमेरिका के अंदर कारोबार करती है, तो उसे अपने कर्मचारियों को डॉलर में सैलरी देनी पड़ेगी । अगर वह वही कारोबार विकासशील देशों में करते हैं तो, उस देश की करेंसी में सैलरी देनी पड़ेगी, यानी विकसित देशों को जो फायदा है, वह विकासशील देशों के अंदर उद्योग लगाने का फायदा है । इसलिए विकसित देश विकासशील देशों के अंदर अपना कारोबार लगाते हैं तो विकसित देशों को सस्ते सस्ते मजदूर मिल जाते हैं और बाजार मिल जाता है । सामान बेचने के लिए विकासशील देशों को भी इससे बहुत फायदा हुआ है । इन देशों को रोजगार मिल गया है । इससे गरीबी दूर करने में बहुत मदद हुई है और वैश्वीकरण की वजह से प्रतियोगिता बड़ी है । जिससे कीमतें कम होने लगी हैं और गुणवत्ता के अंदर भी सुधार आने लगा है । जब प्रतियोगिता नहीं थी तो ना तो कीमतें कम होती थी ना ही गुणवत्ता के अंदर सुधार आता था । वैश्वीकरण की वजह से प्रतियोगिता बहुत तेजी से बढ़ी है और गुणवत्ता और कीमत दोनों में तेजी से सुधार आया ।

2 सांस्कृतिक पक्ष

वैश्वीकरण का सांस्कृतिक पक्ष भी है ।  सांस्कृतिक पक्ष हमें यह बताता है कि वैश्वीकरण की वजह से सिर्फ वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान नहीं हुआ बल्कि संस्कृति का भी विस्तार हुआ है । वैश्वीकरण के जरिए विकसित देश अपनी संस्कृति को पूरी दुनिया में फैलाने की कोशिश करते हैं, जिससे विकासशील देशों की संस्कृति के लिए भी खतरा पैदा हो गया है और आज पूरी दुनिया की संस्कृति को अमेरिका की संस्कृति की तरह ढाला जा रहा है । जैसे कि दुनिया के अंदर ज्यादातर लोग पिज़्ज़ा खाने लगे हैं । बर्गर खाने लगे हैं । अमेरिकी पहनावा या जींस पहनने लगे हैं ।

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वैश्वीकरण की वजह से विश्व संस्कृति भी बढ़ रही है यानी संस्कृतियों की जो दूरी थी, वह कम होने लगी है और मिली-जुली संस्कृति पैदा होने लगी है । जैसे आज पूरी दुनिया में अमेरिका ने जींस पहनना सिखा दिया है । लेकिन हमारी संस्कृति भी आज अमेरिका में अपनाई जाती है । जैसे बहुत सारे लोग जींस की पेंट पर खादी कुर्ता पहनते हैं । हम उनकी संस्कृति को ज्यादा अपना रहे हैं और वह हमारी संस्कृति को बहुत कम अपना रहे हैं । इसलिए उनका सांस्कृतिक वर्चस्व बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है ।

3 राजनीतिक पक्ष

वैश्वीकरण का तीसरा राजनीति पक्ष भी है । वैश्वीकरण का राजनीतिक पक्ष हमें यह बताता है कि वैश्वीकरण की वजह से सरकार की नीतियों कार्य और भूमिका में तेजी से बदलाव आया है । वैश्वीकरण के वजह से सरकार भी जनकल्याण और आर्थिक सहायता की नीति बहुत सीमित हो गई है और वैश्वीकरण की वजह से सरकार ने उद्योगों पर से प्रतिबंध हटा दिए हैं । अब निजीकरण को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है और वैश्वीकरण की बदौलत ही सरकार के पास उच्च तकनीक है । जिसके जरिए नागरिकों पर पहले से और भी ज्यादा बेहतर तरीके से नेतृत्व किया जा सकता है और वैश्वीकरण के आने के बाद भी सरकार की भूमिका में कोई बदलाव नहीं आया है । यानी राज्य आज भी अपनी सीमाओं में सर्वोच्च है । बहुत ज्यादा शक्तिशाली है ।

भारत और वैश्वीकरण

अब हम जरा वैश्वीकरण को लेकर भारत के नजरिए को जानते हैं । हमारा देश भारत ब्रिटेन का गुलाम था और जब भारत ब्रिटेन का गुलाम था, तब ब्रिटिश सरकार भारत से कच्चा माल ले जाती थी और तैयार माल भारत में लाकर बेच देते थे । जिससे भारत पिछड़ा जा रहा था । लेकिन जब हमें 1947 में आजादी मिली तो ब्रिटेन की गुलामी से सबक लेते हुए हमने यह फैसला लिया कि हम खुद विकास करेंगे और विदेशी उद्योगों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे क्योंकि हमने ब्रिटेन के तजुर्बे से गुलामी के तजुर्बे से बहुत कुछ सीखा था । लेकिन भारत का पूरी तरीके से विकास नहीं हो पाया क्योंकि हमने अपने दरवाजे बंद कर लिए और दुनिया के बाकी देश आगे बढ़ते गए और हम उसी जगह रह गए । यानी हम अपने देश तक ही सीमित रहे और दुनिया के साथ नहीं बदल पाए । जैसे दुनिया तरक्की करके बहुत आगे बढ़ गई । दुनिया हवाई जहाज उड़ाने लगी । हम कबूतर उड़ाने में लगे हुए थे । दुनिया बंदूक चलाने लगी थी और हम तलवार और लाठियां चलाने में ही व्यस्त थे ।

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तो फिर भारत ने 1991 में फैसला किया लिया । महसूस किया कि भारत का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया, दरवाजे खोलने पड़ेंगे और दुनिया के साथ चलना पड़ेगा और दुनिया के साथ बदलना पड़ेगा इसलिए 1991 में नई आर्थिक नीतियों को अपनाया ।

1991 (L.P.G.) नई अर्थी नीति

इन नीतियों के अंदर तीन अलग-अलग नीतियों को शामिल किया जाता है । जिन्हें हम एलपीजी (L.P.G.) के नाम से जानते हैं । लिबरलाइजेशन प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन ( Liberalization, Privatization and Globalization) यानी उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण । इस तरीके से भारत ने 1991 में वैश्वीकरण की नीति को अपनाया था । भारत कई कारणों से वैश्वीकरण का समर्थन करता है । वैश्वीकरण के जरिए तीसरी दुनिया के औद्योगिक विकास को तेज़ी से बढ़ावा दिया जा सकता है और वैश्वीकरण के जरिए विकसित देशों के लाभ का फायदा विकासशील देशों को भी मिल सकता है । वैश्वीकरण के जरिए विकासशील देशों में रोजगार को बढ़ावा मिला है । गरीबी दूर हो गई है और वैश्वीकरण की वजह से प्रतियोगिता बड़ी है । चीजें ज्यादा बनने लगी हैं । जिससे वस्तुओं की कीमतें बहुत तेजी से कम हुई है और गरीबी में भी तेजी से कमी आई है ।

वैश्वीकरण की वामपंथी और दक्षिणपंथी आलोचना

तो वैश्वीकरण बहुत सारे फायदे हैं । लेकिन आज दुनिया के ज्यादातर देशों के अंदर वैश्वीकरण की आलोचना भी की जाती है और भारत के अंदर वैश्वीकरण की आलोचना 2 तरीके से की जाती है । दो तरह के लोग करते हैं । दक्षिणपंथी और वामपंथी । दक्षिणपंथी वह हैं, जो पूंजीवाद का समर्थन करते हैं । वामपंथी वह हैं जो साम्यवाद का समर्थन करते हैं तो दक्षिणपंथी लोग वैश्वीकरण की आलोचना करते हैं । भारत के अंदर बहुत सारी समाजसेवी संस्थाएं हैं और दक्षिणपंथी दल हैं । टीवी के चैनलों पर विदेशी प्रोग्राम दिखाए जाने के खिलाफ हैं, क्योंकि उनका यह मानना है कि जिस संचार साधनों के जरिए विकसित देश अपने सांस्कृतिक वर्चस्व को बढ़ावा देते हैं और कभी-कभी संचार के साधनों से ऐसे दृश्य भी दिखाते हैं । जिन्हें भारत के अंदर अश्लील समझा जाता है । जिससे भारतीय संस्कृति पर प्रभाव पड़ रहा है और भारतीय संस्कृति बहुत बुरी होती जा रही है । धीरे-धीरे करके और सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी बिगड़ रही है । इसलिए बहुत सारे दक्षिणपंथी दल वैश्वीकरण के खिलाफ हैं ।

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वामपंथी विचारधारा के समर्थक शुरू से ही वैश्वीकरण के खिलाफ हैं । उनका यह कहना है कि वैश्वीकरण से फायदा कम है और नुकसान ज्यादा है । वैश्वीकरण के कारण अमीर और ज्यादा अमीर हो रहा है और गरीब और ज्यादा गरीब हो रहा है । गरीबों को, किसानों को, मजदूरों को वैश्वीकरण का बिल्कुल भी फायदा नहीं मिल पा रहा है और छोटे-छोटे उद्योग बंद हो रहे हैं और प्रतियोगिता बढ़ने की वजह से मजदूरों के शोषण में तेजी से वृद्धि हो रही है । इसलिए वामपंथी विचारधारा के समर्थक शुरू से ही वैश्वीकरण के खिलाफ हैं ।

अब वैश्वीकरण के फायदे भी हैं और बहुत सारे नुकसान भी हैं । तो क्या करें वैश्वीकरण को अपनाएं या ना अपनाएं ? अगर नहीं अपनाते तो दिक्कत है ! अपनाएंगे तो दिक्कत है ! क्योंकि अगर हम वैश्वीकरण को नहीं अपनाते तो दुनिया तरक्की कर करके आगे बढ़ जाएगी । हम बहुत पीछे रह जाएंगे और अगर अपनाते हैं तो जो बाहर की बुराइयां हैं, वह हमारे देश के अंदर आ जाएंगी ।

हमें जरूरत है एक ऐसे चौकीदार की जो गेट पर खड़ा होकर अच्छाइयों को तो अंदर आने दे और बुराइयों को बाहर ही रोक दें यानी हमें अपने देश के लिए एक ऐसा सिस्टम बनाना पड़ेगा कि वैश्वीकरण के जरिए जो अच्छी-अच्छी जो चीजें हैं, उनको देश के अंदर लाया जाए और देश की तरक्की की जाए और जो बुरी बुरी चीजें हैं उन्हें बाहर ही रोक दिया जाए । इस तरीके की नीतियां बनाई जाएंगी तो हम वैश्वीकरण से बहुत ज्यादा फायदा उठा सकते हैं ।

अब हम जरा कुछ कार्टूनों पर नजर डाल लेते हैं

यह जो पहला कार्टून है

इसके अंदर सांस्कृतिक वर्चस्व को दिखाया गया है कि किस तरीके से विकसित देश नए बाजारों पर कब्जा जमाते हैं । इस कार्टून में वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव को दिखाया गया है । वैश्वीकरण से विश्व संस्कृति पैदा नहीं हो रही है, बल्कि विश्व संस्कृति के नाम पर दुनिया में यूरोप और अमेरिका की संस्कृति को लादा जा रहा है । किसी भी देश के लोग चाहे या ना चाहे उन्हें सांस्कृतिक वर्चस्व का सामना करना ही पड़ेगा । कार्टून में टीवी, कोक और संचार साधनों से हमला करते हुए दिखाया गया है । इसके जरिए यूरोप और अमेरिका के देश नए बाजारों पर कब्जा जमाते हैं ।

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दूसरा जो कार्टून है,

Digital अर्थव्यवस्था को दिखाता है । इस चित्र में वैश्वीकरण के तकनीकी पहलुओं को दिखाया गया है । तकनीकी क्षेत्र में क्रांति आने से जिससे, दुनिया एक छोटा सा गांव बन गई है । मोबाइल, टेलिफोन, कंप्यूटर, इंटरनेट यह संचार के साधन ऐसे हैं, जिसने दुनिया को जोड़ा है और तकनीक की वजह से आज विचारों, वस्तुओं, सेवाओं और इन सब का तेजी से आदान-प्रदान हो रहा है और जन संचार के साधनों से जिस तरीके से रेडियो, समाचार पत्रों से हमारी सोच भी प्रभावित होने लगी है ।

और यह जो तीसरा कार्टून है,

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इसके अंदर वैश्वीकरण की हानियों को दिखाया गया है और यह हानियां सिर्फ विकासशील देशों को ही नहीं बल्कि विकसित देशों को भी उठानी पड़ रही है । शुरू में वैश्वीकरण से विकसित और विकासशील दोनों देशों को फायदा हुआ क्योंकि वैश्वीकरण के जरिए विकसित देशों को सस्ते सस्ते मजदूर मिल गए । नया बाजार मिल गया । वहीं विकासशील देशों को नौकरी मिल गई और वस्तुओं की कीमत सस्ती होने लगी । गुणवत्ता में सुधार आने लगा । लेकिन जब वैश्वीकरण तेजी से फैला तो इससे जुड़े नुकसान भी सामने आने लगे और यह नुकसान सिर्फ विकासशील देशों को नहीं बल्कि बल्कि विदेशों की उठाने पड़े । विकसित देश स्थान पाने के लिए विकासशील देशों के लोगों को नौकरी देते हैं । जिससे विकसित देशों में नौकरी नहीं मिल पाती क्योंकि चीन और भारत के लोग उनकी नौकरियां खा रहे हैं ।

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तो दोस्तों यह था आपका वैश्वीकरण । अगर आपको इस Chapter से Related नोट्स चाहिए तो आप हमारे whatsapp वाले नम्बर पर contact कर सकते हो । इस post को अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हो । धन्यवाद !!

This Post Has 3 Comments

  1. vinod soni

    maine aajtak kisi bhi ese post par comment naihi kiya ha par mujhe really ye post bahut pasnd aaya i apriciatre your work`

  2. abhinav sharma

    itna ache se to bhi teachers explain nhi krte bhut bhut dhanyavaad

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