हॉब्स का संप्रभुता का सिद्धांत

Theory of Sovereignty by Hobbes

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हॉब्स के संप्रभुता संबंधी विचार और सिद्धांत के बारे में । (Theory of Sovereignty by Thomas Hobbes in Hindi) इस Post में हम जानेंगे हॉब्स द्वारा प्रतिपादित संप्रभुता का सिद्धांत, उसकी विशेषताएं और साथ ही साथ जानेंगे इसकी आलोचनाओं के बारे में भी । तो जानते हैं, आसान भाषा में ।

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हॉब्स के अनुसार संप्रभु शासक (सत्ताधारी) की शक्ति असीमित है । उसके ऊपर किसी भी तरह का कोई उत्तरदायित्व नहीं है । उसके ऊपर किसी तरह का कोई दवाब नहीं है और न ही उसको किसी उत्तरदायित्व के लिए बाध्य किया जा सकता । उस पर ईश्वरीय इच्छा, संविधान, प्राकृतिक विधि का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता । शासक अपने विवेक, सहनशीलता और धैर्य के अनुसार ही कार्य करता है और किसी व्यक्ति को यह बताने का अधिकार नहीं है कि उसे क्या करना चाहिए अथवा क्या नहीं । शासक अपने कार्य मे किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहता ।

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हॉब्स के संप्रभुता सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि उसने राज्यों को अपरिमित और असीमित संप्रभुता प्रदान करता की है और इस कारण व्यक्तियों को सभी परिस्थितियों में राज्य के आदेशों का पालन करना आवश्यक है । हॉब्स के अनुसार संप्रभु की उपाधि उस व्यक्ति को दी जानी चाहिए, जिससे लोग अपने अधिकार हस्तांतरित करते हैं ।

हॉब्स के अनुसार संप्रभुता एक सामाजिक संविदा (Contract) है । इस Contract के आधार पर ही ही इसे प्राप्त किया जा सकता है । संप्रभुता को हासिल करने के लिए सामाजिक संविदा आवश्यक तत्व है । इस संविदा के फलस्वरुप यह अस्तित्व में आया है ।

विचारक लेवायाथन के अनुसार-

“एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न शासक पूर्णत निरंकुश है । उसका प्रत्येक कार्य न्याय पूर्ण है और उसका आदेश ही उसका कानून है ।”

लेवायथन के द्वारा एक संप्रभु शासक का कोई कार्य अवैधानिक नहीं हो सकता । क्योंकि वह स्वयं समस्त विधियों का स्रोत है । उसके द्वारा ही सभी विधियां और कानून बनाए जाते हैं । व्यक्तियों के लिए कानून का निर्माण करने की एक मात्र शक्ति संप्रभु शासक के पास होती है ।

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विचारक लेवायथन की तरह हॉब्स से पहले एक विचारक बोद्दा द्वारा संप्रभुता के समस्त विधिआत्मक कानूनों के स्रोत की धारणा का प्रतिपादन कर चुका था । परन्तु बाद में हॉब्स द्वारा उसे और अधिक स्पष्ट और सुनिश्चित बना दिया । साथ ही साथ बोद्दा द्वारा लगी उन सभी सीमाओं को हटा दिया गया जो उसके लिए बाधा थी ।

संप्रभुता सिद्धांत की विशेषताएं

आइए अब बात करते हैं, हॉब्स के संप्रभुता सिद्धांत की विशेषताओं के बारे में । हालाँकि इस सिद्धांत को हॉब्स द्वारा स्पष्ट और आसान बनाया ।

1) हॉब्स के अनुसार संप्रभु को असीमित शक्ति और अधिकार प्राप्त हैं और वह सर्वशक्तिमान है । संप्रभु का जन्म संविदा से होता है । अतः उसके ऊपर कोई संवैधानिक बंधन नहीं है । उसकी शक्ति निरपेक्ष है । संप्रभु कानूनों का निर्माणकर्ता और उनको लागू भी करवाता है । इस तरह उसके ऊपर कोई संवैधानिक बंधन नहीं है ।

2) संपत्ति का निर्माण यानी कि कानूनी अधिकार का श्रेय राज्य की उत्पत्ति के बाद संप्रभु को है । प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति के पास जो कुछ था उस पर उसका केवल अधिपत्य था । किंतु उसके ऊपर कोई अधिकार तथा स्वामित्व ना था । यानी वे उस चीज को इस्तेमाल तो कर सकता था । लेकिन उस पर उसका स्वामित्व नहीं था ।  इस कारण संपत्ति का सृष्टिकर्ता होने के कारण संप्रभु (शासक) जब चाहे राज्य हित में उसे वापस ले सकता है । इस तरह उसे किसी से सहमती या परामर्श की आवश्यकता नहीं,  वह किसी भी वस्तु पर कर आदि वसूल सकता है ।

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3) हॉब्स ने संप्रभु को ही न्याय का सूत्र माना है तथा दूसरे देशों से युद्ध अथवा संधि करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पूरी तरह से स्वतंत्र है । इन सब के लिए उसे किसी की अनुमति या आदेश लेने की आवश्यकता नहीं है ।

4) संप्रभुता की एक विशेषता यह भी है कि संप्रभुता के प्रयोग में किसी को भागीदार नहीं बनाया जा सकता । ऐसा करने से संप्रभुता नष्ट हो जाएगी ।  संप्रभु के अधिकार अपरिवर्तनीय और अहस्तांतरणीय हैं । यानी वह अपने अधिकार किसी को ट्रांसफर नहीं कर सकता । संप्रभुता अविभाज्य है । इसको बांटा नहीं जा सकता ।

संप्रभुता सिद्धान्त की आलोचना

जिस तरीके से हॉब्स ने संप्रभुता के सिद्धांत की विशेषताएं बताई हैं । हॉब्स ने संप्रभु को सर्वशक्तिमान माना है, जो कि संभव हैं । इसी आधार पर हॉब्स के इस सिद्धांत की आलोचना की जाती है जो कि निम्नलिखित हैं ।

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हॉब्स के संप्रभुता की सिद्धान्त में एक गंभीर समस्या यह है कि एक और तो वह संप्रभु की सर्वोच्चता और उसकी शक्ति का प्रतिपादन करता है । परंतु दूसरी ओर वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आज्ञा का उल्लंघन, अवज्ञा का अधिकार देता है । अगर संप्रभु जनता को उन वस्तुओं के इस्तेमाल से माना करे जो उसके लिए आवश्यक हैं, और जीवित रहने के लिए ज़रूरी हैं । तो वह संप्रभु की अवज्ञा कर सकता है, क्योंकि संप्रभु का प्रमुख कर्तव्य व्यक्ति के जीवन की रक्षा करना है ।

हॉब्स द्वारा प्रतिपादित संप्रभुता सिद्धांत में कोई भी वास्तविक संप्रभु ऐसी निरंकुश शक्तियां नहीं रखता है । हॉब्स भी यह कहता है, लेकिन वह यह निर्धारित करना चाहता है कि संप्रभु या शासक के पास कौन-कौन सी शक्तियां होती हैं ।

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अगर निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो हॉब्स का संप्रभुता का सिद्धान्त पूर्ण रूप से अविभाज्य, असीमित है । लेकिन हॉब्स निरंकुश संप्रभुता या निरंकुश राजतंत्र का समर्थन इस कारण करता है क्योंकि वह इससे सुरक्षा तथा व्यक्ति के कल्याण के लिए आवश्यक मानता है ।

तो दोस्तो ये था, हॉब्स का संप्रभुता का सिद्धांत उसकी विशेषताएं और आलोचना । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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