हिन्द महासागर और भारत

Indian Ocean and India

Hello दोस्तो ज्ञानउदाय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति विज्ञान में हिंद महासागर और भारत के बारे में । हिंद महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो विश्व के 20.3 प्रतिशत समुद्री क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके विस्तार तथा महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह ऑस्ट्रेलिया, एशिया और अफ्रीका तक विस्तृत और महत्वपूर्ण आवागमन और व्यापार का मार्ग उपलब्ध कराता है । यह महासागर 47 राज्यों के तट से लगा हुआ है । पूर्व से लेकर पश्चिम तक, ऑस्ट्रेलिया से लेकर अफ्रीका तक और उत्तर से लेकर दक्षिण में कैप कोमोरिन से लेकर अटलांटिक महादीप तक फैला हुआ है ।

अमेरिकी नौसेना विशेषज्ञ अल्फ्रेड महान ने 19वीं सदी के आरंभ में कहा था कि-

“जो भी देश हिंद महासागर को नियंत्रित करता है, वह एशिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करेगा । यह महासागर सात समुद्रों की कुंजी है । 21वी सदी का भाग्य निर्धारण इसकी समुद्री सतह पर होगा ।”

माहन का यह विचार न केवल ब्रिटेन के लिए बल्कि अमेरिका, चीन, भारत और ऑस्ट्रेलिया समेत अनेक विश्व शक्तियों के लिए नौसैनिक और अन्य गतिविधियों का निर्धारण करता आ रहा है ।

पढें :: राष्ट्र, राष्ट्रियता और राज्य में अंतर यहाँ Click करें ।

इस प्रकार विश्व के अनेकों प्रकार के खनिज जैसे 37% तेल, 90% रबड़, 70% टिन, 79% सोना, 28% मैग्नीज, 27% क्रोमियम, 10% जिंक, 98% हीरे और 60% यूरेनियम इस क्षेत्र में पाए जाने वाले की संभावना रहती है । इसके समुद्री सतह पर उपलब्ध स्रोतों विशेषकर ऊर्जा स्रोतों की कमी नहीं है ।

भौगोलिक स्थिति और संरचना के कारण हिंद महासागर का महत्व और भी बढ़ जाता है । यह न केवल जलमार्ग के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कच्चे माल का भी प्रमुख स्रोत माना जाता है । इसका जलमार्ग और पूर्व और पश्चिम की जीवन रेखा है । जिसके बंद होने या विरोधी का वर्चस्व स्थापित हो जाने पर जीवन मरण का प्रश्न पैदा हो सकता है । हिंद महासागर के गर्भ में उत्पन्न कच्चे माल के भंडार महा शक्तियों की प्रतिबद्धता का कारण है ।

भारत की विदेश नीति-कूटनीति के बारे में Detail में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

हिंद महासागर न केवल अपने जलमार्ग और प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से अपितु सामरिक दृष्टि से लैस द्वीपों और प्रवाल द्वीपों के कारण भी अत्यंत महत्व रखता है । हिंद महासागर में सैकड़ों बड़े और छोटे दीपों की उपस्थिति इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है । हिंद महासागर यूरोप, पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी दक्षिणी और दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया व ओशेनिया का आपस में जोड़ने का कार्य करता है । इसके द्वारा अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ने के कारण जल मार्गों का सबसे घना जाल तैयार होता है । संसार के हाँकरो से ढोये जाने वाले खनिज तेल का 57% परिवहन यहीं से होता है ।

हाल के वर्षों में अंटार्कटिका के महत्व में भारी वृद्धि हुई है । अंटार्कटिका के संसाधनों के आर्थिक दोहन के दौर में इसका महत्व और भी बढ़ेगा । इस कारण इस क्षेत्र में शांति और सहयोग का वातावरण बनाना तथा ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करना बहुत जरूरी है । जिससे सभी राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुरूप महासागर का उपयोग कर सकें ।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति व्यवस्था का सिद्धान्त पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का केंद्र

द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व हिंद महासागर के अधिकांश तटवर्ती क्षेत्रों पर ब्रिटेन का कब्जा था । इस कारण हिंद महासागर को ब्रिटेन की झील कहा जाता था । द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों से ब्रिटेन का प्रमुख प्रभुत्व समाप्त होने लगा । 1966 में जब ब्रिटेन ने स्वेज़ से पूर्व स्थित अपने नौसैनिक अड्डों को समाप्त करने की घोषणा कर दी । उसके बाद से यह क्षेत्र महा शक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया । इस संबंध में तीन दृष्टिकोण प्रचलित है ।

1 अमेरिका का मानना है कि वह इस क्षेत्र से ब्रिटेन के रिक्त पदों को भरने का प्रयास कर रहा है, जबकि हिंद महासागर में अमेरिकी हित उसकी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा से प्रेरित है ।

2 विद्वानों का मानना है कि हिंद महासागर में महा शक्तियों की रुचि की शीतयुद्ध का विस्तार है । जिसने इस क्षेत्र में शक्ति प्रतिद्वंदता को जन्म दिया है ।

3 किसिंगर आदि अमेरिकी रणनीतिकारों का मत है कि सोवियत रूस इस क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित करने को लालायित है । इस कारण अमेरिका बेवजह सोवियत प्रसारवाद का भूत खड़ा करता है ।

राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर किसी तटवर्ती देश के पास बड़ी नौसेना नहीं है और भारत और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना भी बाहरी शक्तियों की नौसेनाओं की तुलना में कमजोर है । बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप के कारण भी यह क्षेत्र कमजोर और असुरक्षित ही होता है ।

वर्तमान में हिंद महासागर विश्व का ऐसा क्षेत्र है, जो स्थिर और अशांत है । राजनीतिक हलचल और महा शक्तियों की प्रतिबद्धता इस क्षेत्र की मूल विशेषता मानी जाती है । नौसैनिक महत्व विशेषकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह क्षेत्र तनाव, संघर्ष, टकराव का केंद्र बन गया है । अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए महा शक्तियां विशेषकर अमेरिका और रूस अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है ।

हिंद महासागर में अमेरिका की स्थिति 1949 से है । जब उसने साम्यवाद के प्रतिरोध की नीति अपनाई । 1966 में एक संधि के पश्चात ब्रिटेन ने अमेरिका को डिएगो गार्सिया अड्डे की रक्षा उद्योग हेतु विकसित करने का अधिकार दे दिया था । इस द्वीप को अमेरिका अपने प्रमुख अस्त्र-शस्त्र से पूर्ण कर के महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डे के रूप में कर रहा है तथा नाभिकीय और रासायनिक अस्त्र रखे गए हैं । इस अड्डे का विस्तार करके अमेरिका, एशिया और अफ्रीका महाद्वीप पर अपना प्रभाव का विस्तार कर रहा है । सोवियत संघ भी 1967 से लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति बनाए हुए हैं । लगभग 20 से 40 जहाज लगातार इस क्षेत्र में उपस्थित हैं । परंतु सोवियत रूस ने कोई नौसैनिक अड्डा नहीं बनाया है ।

गुटनिरपेक्षता के बारे में अधिक जानने के लिए व video देखने के लिए यहाँ Click करें ।

शीतयुद्ध के बारे में पढ़ने व Video के लिए यहाँ Click करें ।

इसके अलावा चीन भी अपने विस्तार वादी नीति के परीक्षण में लगातार अपने प्रभाव को बढ़ाने में लगा हुआ है । एक तरफ वह पाकिस्तान में गवादर में बंदरगाह निर्माण किया है, तो वही कोको द्वीप व श्रीलंका के हबबनटोटा में बंदरगाह निर्माण कर के भारत की समुंद्र घेराबंदी करने में लगा हुआ है । इसे महाशक्तियों की मनमानी कही जाएगी कि वह तटवर्ती देशों के हितों की उपेक्षा करके अपने निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए हिंद महासागर के शांत जल को अशांत बनाने में लगे हुए हैं ।

हिंद महासागर और भारत

आइए अब जानते हैं, हिंद महासागर और भारत की स्थिति के बारे में । हिंद महासागर भारत के लिए केंद्रीय महत्व का बिंदु है । इस संभव सागर की आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियां प्रारंभ प्रारंभ काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़ी हैं । हिंद महासागर में भारत के लगभग 1156 दीप हैं । जिनकी सुरक्षा और विकास का दायित्व भारत पर ही है इसके अलावा भारत का 98% अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिंद महासागर मार्ग से ही होता है ।

पंचशील समझौता क्या ? जानने के लिए यहाँ Click करें ।

प्रारंभ से ही भारतीय विदेश नीति अपने राष्ट्रीय सुरक्षा तथा राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए दक्षिण एशिया में बढ़ाए जाने वाले तनाव तथा हिंद महासागर में समीकरण का विरोध करती आ रही है । भारत की राजनीतिक स्थिति तथा भू सामरिक महत्व के दृष्टिकोण भी बड़ी शक्तियां इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए अपने वर्चस्व तथा प्रभाव में वृद्धि करना चाहती हैं । लेकिन इस क्षेत्र में महाशक्तियों की बढ़ती हलचल से भारत की चिंता स्वाभाविक हैं । इस प्रकार की सैन्य गतिविधियों से भारत के राष्ट्रीय हित पर सीधा असर पड़ता है । वस्तुत भारत के व्यापक राष्ट्रीय तथा सुरक्षात्मक और आर्थिक हित इसके शांत बने रहने पर निर्भर करते हैं ।

भारत से संबंधित हिंदमहासागर के कुछ महत्वपूर्ण बिंदू

1 भारत हिंद महासागर से 3 तरफ से घिरा हुआ है । इसके शांत और स्थिर रहने पर ही उसकी समुंद्री सीमाएं सुरक्षित हैं ।

2 हिंद महासागर के अनेक देशों जैसे श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस आदि में भारत के अधिकांश लोग निवास करते हैं । उनके हितों और अधिकारों की रक्षा भी बहुत जरूरी है ।

3 तेल और अन्य खनिज दोहन की संभावनाएं तथा मतस्य आदि सेवाएं, महासागर से जुड़ी हुई है । उनके लिए भी क्षेत्र का शांत रहना आवश्यक है ।

यथार्थवाद के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

इन्हीं चिंताओं के कारण भारत हिंद महासागर क्षेत्र को राजनीतिक संघर्ष का अड्डा बनने की बजाय शांति का क्षेत्र बनाए जाने का पक्षधर है । भारत के प्रयासों से 1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा अधिवेशन में हिंद महासागर को शांति क्षेत्र घोषित करने संबंधी घोषणा पत्र स्वीकार किया गया है । इसमें बड़े राष्ट्रों का आहवान किया गया है कि वह अपनी सैन्य गतिविधियों को इस प्रकार संचालित ना करें, जिससे किसी तटवर्ती देश की संप्रभुता, देश की क्षेत्रीय अखंडता व स्वतंत्रता खतरे में पड़े । भारत सदैव इस बात का समर्थन करता है कि हिंद महासागर को शांति क्षेत्र घोषित किया जाए तथा नाभिकीय व अन्य सशस्त्र ना लगाए जाए । कोई देश यहां सशस्त्र सेनाएं व शस्त्र आदि न रखें । इन प्रतिस्थापनाओं से ही हिंद महासागर वास्तव में शांति का क्षेत्र बन सकता है तथा अनेक तटवर्ती देशों के लिए आर्थिक विकास की संभावनाओं का द्वार खोल सकता है ।

तो दोस्तों यह था हिंद महासागर और भारत के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और महत्वपूर्ण जानकारी । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

This Post Has One Comment

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.