सभ्यताओं का संघर्ष

Clash of Civilization

Hello दोस्तो Gyaanuday में आपका स्वागत है । आज हम जानते हैं, राजनीति विज्ञान में सभ्यताओं के संघर्ष के बारे में । इस Post में हम जानेंगे, सैमुअल पी. हंटिंगटन के सभ्यताओं के संघर्ष के विषय में, इसकी धारणा और इसके विश्लेषण के बारे में ।

सभ्यताओं के संघर्ष का अर्थ

पूरे विश्व में शीत युद्ध के उपरांत कई राष्ट्रों के बीच आपसी संघर्ष बहुत तेजी से बढ़ने लगा और इस संघर्ष का मूल कारण उन देशों की विचारधाराओं में मतभेद था, जो कि देश की नीति और उद्देश्य को प्रभावित कर रही थी और साथ ही साथ सभ्यताओं के बीच संस्कृतिक और धार्मिक अंतर बहुत तेजी से बढ़ने लगा । सभ्यताओं का संघर्ष मशहूर अमेरिकी राजनीतिक विचारक और विश्लेषक सैमुअल हटिंगटन द्वारा प्रतिपादित महत्वपूर्ण सिद्धांत है ।

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सैमुअल ने सभ्यताओं के संघर्ष को अच्छी तरह से विश्लेषित किया है । सन 1993 में सैमुअल द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘The Clash of Civilization’ यानी सभ्यताओं का संघर्ष । इस पुस्तक को लिखने के बाद पूरी दुनिया मे इस विषय पर पूरी दुनिया में व्यापक बहस और चर्चा शुरू हो गई ।

सभ्यताओं के संघर्ष की धारणा

इसमें हटिंगटन ने तर्क दिया कि पारंपरिक रूप में प्रारंभ में राष्ट्रों के बीच संघर्ष हुआ । उसके बाद विश्व में विचारधाराओं के बीच टकराव देखा गया और शीतयुद्ध के बाद आने वाले समय में यह संघर्ष सभ्यताओं के बीच होगा । अर्थात यह संघर्ष सांस्कृतिक धार्मिक भाषा के आधार पर होगा ।

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इसके बाद हटिंगटन में सन 1996 में अपनी अगली रचना ‘The Clash of Civilizations and The Remarking of World Order’ पुस्तक को प्रकाशित किया । हटिंगटन अनुसार शीतयुद्ध के बाद का सबसे अधिक और हिंसक रूप का संघर्ष वैचारिक मतभेदों के बजाय सांस्कृतिक रूप में होगा, क्योंकि शीतयुद्ध का संघर्ष एक वैचारिक संघर्ष था, जो विचारधारा के आधार पर पूंजीवादी पश्चिम और साम्यवादी पूर्व के मध्य लड़ा गया ।

सभ्यताओं के संघर्ष का विश्लेषण

आइए आप जानते हैं, सभ्यताओं के संघर्ष के विश्लेषण के बारे में । अपने विश्लेषण में हटिंगटन ने आठ सभ्यताओं की बात बताई है, जो कि एक दूसरे से सांस्कृतिक आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है, जोकि निम्नलिखित हैं ।

1) पश्चिम

2) सिनिक (चीनी)

3) इस्लामिक

4) रूढ़िवादी ईसाई

5) लैटिन अमेरिकी

6) जापानी

7) हिन्दू

8) अफ्रीकी

हटिंगटन द्वारा बताया गया है, कि वह दौर समाप्त हो चुका है । जब राज्यों को सार्वभौमिक मानकर, उनपर चिंतन किया जाता था और उसी के अनुरूप नीतियां बनाई जाती थी । वर्तमान में चल रहे घटनाक्रम को समझने के लिए रणनीतिकारों और विशेषज्ञों को विभिन्न संस्कृतियों में चल रहे द्वंद को समझना और उनका समय के अनुसार विश्लेषण करना जरूरी है और तभी पश्चिमी राष्ट्रों अपनी शक्ति और प्रभुता को बनाए रख सकते हैं ।

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सभ्यताओं के संघर्ष की धारणा में यह विचार शामिल है कि विचारधाराओं के अंत के बाद अब संघर्ष या टकराव का कारण सांस्कृतिक हो गया है और विभिन्न संस्कृतियों अपनी सांस्कृतिक पहचान को स्थापित और उसे कायम रखने की भरपूर कोशिश करेंगे और इसी के आधार पर हम आगामी विश्व और विश्व व्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं, कि उसका स्वरूप कैसा होगा । शीत युद्ध के बाद विश्व में एक नए प्रारूप में प्रवेश कर चुका है । जिसमें अलग अलग देश विभिन्न सभ्यताओं में बंट चुके हैं, जो निम्नलिखित हैं ।

1. पश्चिमी सभ्यता का प्रतिनिधित्व :- अमेरिका, कनाडा, पश्चिम यूरोप आदि ।

2. सिनिक (चीनी) सभ्यता :- चीन, कोरिया, ताइवान, वियतनाम आदि ।

3. इस्लामिक सभ्यता :- ग्रेटर मिडल ईस्ट, पश्चिमी अफ्रीका, ब्रूनेई, ईरान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, मालदीप आदि ।

4. रूढ़ीवादी ईसाई सभ्यता :- रूस, बुलगारीया, साइप्रस, ग्रीस रोमानिया आदि ।

5. लैटिन अमेरिकी सभ्यता :- सेंट्रल अमेरिका, दक्षिण अमेरिका (गुयाना, सूरीनाम को छोड़कर) क्यूबा और मेक्सिको आदि ।

6. जापानी सभ्यता :-  जापान

7. हिंदू सभ्यता :- भारत, भूटान, नेपाल आदि ।

8. अफ्रीकी सभ्यता :- सब सहारा, अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका, पूर्वी अफ्रीका, कैपेवर्ड, घाना, आइवरी कोस्ट आदि ।

इसके अतिरिक्त हाटिंगटन ने बताया है कि प्रत्येक सभ्यता के अंतर्गत एक और कोर स्टेट होगा । जो उस सभ्यता के महत्वपूर्ण लक्षण या विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करेगा तथा वह बहुत ही शक्तिशाली होगा । यहां तक कि वह एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होगा । इन सभी सभ्यताओं के नेतृत्व कर्ताओं का उद्देश्य मुख्य रूप से अपनी संस्कृति तथा विशेषताओं को अन्य संस्कृतियों पर हावी करना होगा ।

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सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष इस्लामिक और पश्चिमी सभ्यता पश्चिमी और चीन सभ्यता में माना जाता है ।

सभ्यताओं का टकराव

आइए अब जानते हैं सभ्यताओं के संघर्ष में इनके टकराव के मुख्य कारण । सभ्यताओं के टकराव के कारणों में मुख्य रूप से इतिहास, भाषा, संस्कृति, परंपरा, मान्यता और मुख्य रूप से धर्म को माना जाता है । हालांक ये अंतर शताब्दियों में विकसित हुए हैं और इतनी जल्दी समाप्त नहीं होंगे । साथ ही पश्चिमी सभ्यता के मूल्य आर्थिक संपन्नता के कारण भी अन्य सभ्यता है । इसे संतुलित करने का प्रयास करेंगे ।

सभ्यताओं के संघर्ष की आलोचना

आइए अब बात करते हैं सभ्यताओं के संघर्ष की आलोचना के बारे में । अनेक विचारकों और विश्लेषकों ने हफिंगटन की अवधारणा की आलोचना भी की है और कुछ विचार है उनका मानना है कि वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में किसी प्रकार के सांस्कृतिक सीमा रेखा में बंटवारा नहीं किया जा सकता और सभ्यताओं का संघर्ष एक भ्रामक सिद्धांत है । वर्तमान में सभ्यताओं में संवाद की बात की जा रही है । ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति ने 2001 में वैश्विक स्तर पर उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2001 में सभ्यताओं के संवाद के वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की ।

तो दोस्तो ये था, सभ्यताओं के संघर्ष के बारे में । साथ ही साथ हमने जाना इसका अर्थ, महत्व, विश्लेषण और इसकी आलोचनाओं के बारे में । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें तब तक के लिए धन्यवाद !!

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