संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका

Role of India in United Nation Organisation

Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम जानेंगे संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका के बारे में । यह Topic राजनीति विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय संबंध (International Relations) के पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ साथ सामान्य अध्ययन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । ये Topic अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और सम्मेलन के अंतर्गत आता है । संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका (Role of India in United Nation Organisation) बहुत महत्वपूर्ण है, जी अक्सर Exams मर पूँछ लिया जाता है । तो आइए जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका के बारे में ।

संयुक्त राष्ट्र क्या है ? इसकी स्थापना क्यों हुई थी ? इसके बारे में हम पहले ही बता चुके हैं । अगर इसके बारे में जानना चाहते हैं । तो नीचे दिए Link पर Click करके पढ़ सकते हैं ।

संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए यहाँ Click करें ।

जैसा कि आप जानते हैं । संयुक्त राष्ट्र विश्व के देशों का एक प्रतिनिधि संगठन है । जिसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन जो कि 1 जून 1945 जो कि हुआ था । उसमें एक Charter पर 51 देशों के हस्ताक्षर हुए, जिसका उद्देश्य विश्वभर में शान्ति व्यवस्था बनाये रखना और भविष्य में विश्वयुद्ध जैसी घटनाओं को रोकना था । भारत की विदेश नीति के उद्देश्य और सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य और सिद्धांतों के अनुकूल हैं तथा संयुक्त राष्ट्रीय संघ के जो लक्ष्य उद्देश्य और सिद्धांत हैं । उसको पूरा करने के लिए भारत प्रतिबद्ध भी है ।

भारत की विदेश नीति के सिद्धांत

चलिए एक नज़र डाल लेते हैं, भारत की विदेश नीति के सिद्धांत पर जो कि निम्नलिखित हैं :

अ) विश्वभर में शांति की स्थापना करना ।

ब) अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण तरीकों से समाधान करना ।

स) परतंत्र राष्ट्रों को आत्मनिर्भर बनाने में निर्णय का समर्थन करना ।

द ) जातिवाद, भेदभाव की समाप्ति करना ।

ई) ग़रीब राष्ट्रों यानी जो तीसरी दुनिया के राष्ट्र हैं । उनके विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक सहयोग करना ।

फ़) गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत,

ज) सार्वभौमिक निशस्त्रीकरण और

ह ) पंचशील के नियम ।

यह सारे भारत की विदेश नीति के अंग और उद्देश्य हैं ।और यह सभी संयुक्त राष्ट्र संघ व्यवस्था के भी अंग हैं । यहां तक कि भारत अपने संविधान में नीति निदेशक सिद्धांतों के अंतर्गत इसमें से कई सिद्धांतों को स्थान प्रदान किया है । शुरुआत से भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की नीति और कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाता रहा है और उसका भरपूर समर्थन भी करता रहा है । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र के नाम अपने प्रथम संबोधन सितंबर 1946 में कहा था कि “भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की चार्टर की भावना के और उसके शब्दों के प्रति पूर्ण सहयोग करने तथा निसंदेह पालन करने हेतु प्रतिबद्ध है ।” और यह परम्परा लगातार 70 वर्षों से जारी है ।

तो चलिए समझते हैं  कि, संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका किस तरह से बेहतर हुई है ।

भारत में शासन परिवर्तन के बावजूद भी भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की नीति का पालन करता आ रहा है और संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के सहयोग का विश्लेषण करने हेतु शायद ही कुछ विशेष क्षेत्रों जैसे उपनिवेशवाद की समाप्ति, रंगभेद नीति का विरोध, निशस्त्रीकरण, शांति सेनाओं में भारत की भूमिका और गरीब देशों के विकास से संबंधित मुद्दे, मानव अधिकार, आतंकवाद की समाप्ति, जैसे मुद्दे इसमें भारत की भूमिका की विवेचना आवश्यक है ।

1 उपनिवेशवाद की समाप्ति

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के समय एशिया और अफ्रीका के कई देश उपनिवेशवाद का शिकार थे । भारत ने सबसे पहले दिल्ली में आयोजित एशियाई सम्मेलन में और 1955 में इंडोनेशिया के वान्डुग शहर में आयोजित ‘एशिया अफ्रीका के राष्ट्रों के सम्मेलन’ में इन राष्ट्रों की स्वतंत्रता की माँग उठाई । भारत की स्वतंत्रता ने भी दूसरे ग़ुलाम देशों की आज़ादी की माँग व आंदोलन को प्रेरित किया ।

भारत ने शुरुआत से ही उपनिवेशवाद का विरोध करता रहा है । और इसे विश्व शांति व सुरक्षा के लिए खतरा मानता है । इसके लिए भारत में 1960 में महासभा में उपनिवेश ओं की स्वतंत्रता हेतु ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा । इस प्रस्ताव को गुलाम देशों की स्वतंत्रता के लिए मील का पत्थर माना जाता है । परिणाम स्वरूप इस प्रस्ताव को पारित करने के लिए महासभा द्वारा 17 सदस्य कमेटी का अध्यक्ष भारत को बनाया गया । संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रयासों द्वारा 1960 में अफ्रीका के 16 देशों स्वतंत्र कर दिया गया । तथा वहां उपनिवेशवाद के अंत की लहर दौड़ गई ।

2 रंगभेद तथा जातीय भेदभाव का विरोध

रंगभेद  तथा जातीय भेदभाव की नीति  भारत की विदेश नीति का  एक प्रमुख अंग है । भारत ने ही सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली महासभा में 1946 में भेदभाव का मुद्दा रखा । दक्षिण अफ्रीका व रोड एशिया जिंबाब्वे की सरकारी देसी काले लोगों के विरुद्ध रंगभेद की नीति के शिकार थे भारत व अन्य देशों के समर्थन से महासभा ने 1946 में यह प्रस्ताव पारित किया कि रंगभेद की नीति संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के विरुद्ध है भारत में नेल्सन मंडेला द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया ।

भारत में रंगभेद की नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार से 1946 को ही व्यापक व्यापारिक और कूटनीति संबंध तोड़ दिए । जब तक इस समस्या का समाधान नहीं हुआ । भारत में संबंध तोड़े रखें । इस तरह भारत ने 10 दिसंबर 1948 को महासभा द्वारा घोषणा की  गई कि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का समर्थन किया, क्योंकि इस घोषणा में सभी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों का समर्थन किया गया था । तथा जातीय भेदभाव की मनाई की गई थी ।

3 निशस्त्रीकरण

संयुक्त राष्ट्र संघ व्यवस्था के अंतर्गत तथा उसके बाहर भारत निशस्त्रीकरण विशेषकर परमाणु शस्त्रों के निशस्त्रीकरण का प्रबल समर्थक रहा है । 28 अक्टूबर 1959 को जब महासभा में सामान्य व पूर्ण निशस्त्रीकरण का प्रस्ताव आया, तो भारत ने उसका पूरा समर्थन किया । कृष्ण मेनन के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पूर्ण निशस्त्रीकरण के सोवियत रूस व इंग्लैंड के प्रस्ताव का समर्थन किया । जिसमें व्यापार निशस्त्रीकरण की बात कही गई थी । भारत में भविष्य में गठित होने वाली 10 सदस्य निशस्त्रीकरण समिति को प्रभावी बनाने हेतु सुझाव दिया । भारत के सुझावों को प्रस्ताव में सभी की सहमति से स्वीकार किया गया । भारत ने भावी शास्त्रों के नियंत्रण और अस्तित्व से बने हुए शस्त्रों के निशस्त्रीकरण दोनों को साथ साथ लागू करने पर जोर दिया ।

भारत न केवल विशेष अस्त्रों के बल्कि भारत पूरी तरह से निशस्त्रीकरण का पक्षधर है ताकि विश्व में शांति तथा सुरक्षा और सहयोग की भावना विकसित हो सके । भारत महाशक्तियों के युद्ध पूर्ण होड़ में शामिल नहीं होना चाहता था और तीसरी दुनिया के राष्ट्रों के साथ मिलकर विकास का नया मानक स्थापित करना चाहता है । भारत निशस्त्रीकरण के इसी कारण एन टीवी और सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है ।

4 तीसरी दुनिया के विकासशील देशों का हित और विकास

भारत इस भेदभाव का विरोधी रहा है । संयुक्त राष्ट्र में तीसरी दुनिया के विकासशील देशों का विकास संयुक्त राष्ट्र संघ की चार्टर की प्रस्तावना के अनुसार इसका उद्देश्य सभी राष्ट्रों के सामाजिक व आर्थिक प्रगति तथा उनके विकास में सहयोग प्रदान करना है । इस दृष्टि से भारत की मंशा यह रही है कि जो तीसरी दुनिया के विकासशील राष्ट्र हैं । वह खुद अपने भीतर सहयोग करके अपना विकास करें । इसके अलावा जो महाशक्तियां हैं, उनसे सहयोग के माध्यम से भी उनका विकास किया जा सके । इस दृष्टि से जो सहयोगी संस्थाएं है जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, यूनिडो अंक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन इसके लिए भारत इस मुद्दे पर प्रतिबद्ध है कि विकासशील देशों का कल्याण हो सके ।

1 स्पष्ट रणनीति होनी चाहिए कि विकसित देशों से विकासशील देशों को तकनीक हस्तांतरण हो ।

2 दूसरा यह है कि विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय संसाधनों का प्रबंध हो ।

3 अंतरराष्ट्रीय व्यापार के साधन के रूप में प्रयोग करना ।

और भारत इस मुद्दे पर प्रगतिशील है कि विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक विकास का जो मुद्दा है । वह विकसित देशों के एक समझौताकारी रणनीति है । उस पर आधारित ना हो । भारत नई आर्थिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर रहा है । ताकि जो विकसित राष्ट्र हैं । विकासशील देशों को तकनीकी प्रदान करें, ताकि वह अपना आर्थिक सुरक्षा, आर्थिक विकास कर सकें ।

5 अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा

भारत शुरू से ही अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का पक्षधर रहा है । कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध भारत की अग्रणी कूटनीति व्यवस्था रही है और भारत ने संयुक्त राष्ट्र की शांति सेनाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है तथा विश्व के तमाम देशों में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है । भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में 59 स्थानों पर अपनी शांति सेनाएँ भेज चुका है । और भारत के सर्वाधिक सैनिक संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में कार्यरत हैं । भारत किसी भी देश के लिए अशान्ति या उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति नहीं अपनाता । भारत का प्रमुख उद्देश्य है कि दुनिया के सभी राष्ट्र संघर्ष से मुक्त हो और सहयोग की भावना में कार्य करें और अधिकांश मामलों में भारत इस शांति और सुरक्षा के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र का पूरी तरह से समर्थन करता है । तथा उसका सहयोग भी करता है ।

वर्तमान में मुद्दे क्या है ? प्रमुख मुद्दे हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी निशस्त्रीकरण, मानव अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, व्यापार बाधाएं तथा आतंकवाद की समाप्ति करना है । इन सब मुद्दों पर भारत की भूमिका विभिन्न मुद्दों पर विकासशील देशों के पक्ष । इस तरीके से प्रस्तुत करने है, भारत सभी मुद्दों में विकासशील देशों के अपने हितों को ध्यान में रखते हुए बहुपक्षीय सार्वभौमिक व समानता कोण तथा भेदभाव रहित दृष्टिकोण का समर्थक है । ताकि कोई भी देश किसी भी देश का सामाजिक आर्थिक शोषण न कर सके तथा सभी राष्ट्रों को उनके विकास के पूर्ण अवसर प्रदान हो । भारत यदि सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनता है, तो संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका और योगदान और भी प्रभावी हो सकता है । भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से भी संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सदस्य के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करता रहा है और हम आशा करते हैं कि आगे भारत जब सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य का विस्तार होता है तो भारत को उस में अहम भूमिका अदा करने का अवसर अवश्य मिलेगा ।

तो दोस्तों यह था संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका का चैप्टर इसको हमने संक्षेप में ही लिया है । अगर post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ Share ज़रूर करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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