शीतयुद्ध का दौर Cold War Era in Hindi

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है, आज हम बात करते हैं, 12th Class के पहले Chapter शीतयुद्ध के दौर के बारे में Chapter को बहुत ही आसान भाषा मे समझाया गया है | जिसको पढ़ कर आप आसानी से अद्धयाय पर अपनी पकड़ बना सकते है, और परीक्षा में अच्छे Number ला सकते हैं |

तो चलिए शुरू करते हैं शीतयुद्ध का दौर

दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में दो विचारधाराएं सामने आई पहली पूंजीवाद और दूसरी साम्यवाद और इन दोनों विचारधाराओं के बीच लंबे समय तक संघर्ष चलता रहा, इसी संघर्ष को दिखाने के लिए हम शीत युद्ध शब्द का इस्तेमाल करते हैं |

शीत युद्ध का मतलब होता है | (Meaning of Cold War)

“जब दो देश या दो गुट एक दूसरे पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण नहीं करते बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे को नीचा दिखाने या नुकसान पहुंचाने और कमजोर करने का प्रयास करते हैं, जिससे युद्ध ना होते भी एक तनावपूर्ण स्थिति बनी रहती है, इसे ही शीत युद्ध कहते हैं” |

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शीत युद्ध सोवियत संघ के साम्यवाद गुट और संयुक्त राज्य अमेरिका के पूंजीवादी गुट के बीच हुआ था |

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शीतयुद्ध 1945 से 1990 तक चलता रहा | शीतयुद्ध का पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ा, शीत युद्ध की वजह से दुनिया दो गुटों में बट गई, शीत युद्ध की वजह से गुटनिरपेक्षता का उदय हुआ, शीतयुद्ध की वजह से हथियारों की होड़ बढ़ने लगी, शीत युद्ध की वजह से सैनिक संगठन बनने लगे और शीत युद्ध की वजह से दुनिया में तनावपूर्ण वातावरण पैदा हुआ | और उसी तनावपूर्ण वातावरण का महत्वपूर्ण उदाहरण है |

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क्यूबा मिसाइल संकट

क्यूबा मिसाइल संकट 1962 में हुआ | क्यूबा उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित एक छोटा सा दृपिय देश है, जो अमेरिका का पड़ोसी है | क्यूबा की दोस्ती सोवियत संघ से थी, और सोवियत संघ को इस बात की चिंता थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा पर हमला कर देगा और वहां के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो का तख्तापलट कर देगा | इसीलिए सोवियत संघ ने चोरी चुपके क्यूबा के अंदर परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी, अमेरिका को इस बात की भनक पूरे 3 हफ्ते बाद पता लगी की कि क्यूबा में सोवियत संघ ने परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी है | जिससे अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया और परमाणु युद्ध का भी खतरा पैदा हो गया | इसे ही क्यूबा मिसाइल संकट कहते हैं |

शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों ने छोटे-छोटे और कमजोर देशों के साथ दोस्ती  की और संबंध बनाएं, क्योंकि महा शक्ति सैनिक अड्डों की स्थापना करने चाहती थी, महत्वपूर्ण खनिज और संसाधन पाना चाहती थी, अपने प्रभाव में वृद्धि करना चाहती थी, और अपने सैनिक खर्च के अंदर कटौती करना चाहती थी, इसलिए इन महा शक्तियों ने तीसरी दुनिया के देशों के साथ दोस्ती वाले संबंध बनाए | वहीं पर तीसरी दुनिया के कुछ देशों ने महा शक्तियों से बचने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया |

गुटनिरपेक्षता की नीति

अब इन महा शक्तियों से बचने के लिए तीसरी दुनिया के देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया, उसके भी कई कारण थे | तीसरी दुनिया के देश अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहते थे, और शीत युद्ध और तनाव से दूर रहना चाहते थे, हथियारों की होड़ से बचना चाहते थे, और अगर किसी एक गुट में चले जाते तो दूसरे गुट से उनकी दुश्मनी हो जाती तो दोनों गुटों से सहायता हासिल करने के लिए तीसरी दुनिया के देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया |

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गुटनिरपेक्षता का अर्थ

अब हम जानते हैं कि गुटनिरपेक्षता आखिर है क्या, दूसरे विश्व युद्ध के बाद एशिया और अफ्रीका के बहुत सारे देश आजाद हुए | पूंजीवादी और साम्यवादी, दोनों ही गुट इन नव स्वतंत्र देशों देशों को अपने गुट के अंदर शामिल करना चाहते थे | नव स्वतंत्र देशों ने महा शक्तियों की गुटबाजी से दूर रहने का फैसला किया | इस तरीके से गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत हुई | गुट निरपेक्ष आंदोलन के अंदर 5 देशों के नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई |

भारत के प्रधानमंत्री नेहरू

घाना के प्रधान मंत्री एनाकुर्मा

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो

मिस्र के राष्ट्रपति नासिर और

युगोस्लाविया के राष्ट्रपति मार्शल टीटो

इन पांचों नेताओं की कोशिशों की वजह से पहला शिखर सम्मेलन बेलग्रेड में हुआ, जिसमें 25 देशों ने भाग लिया | इस तरीके से गुट निरपेक्ष आंदोलन सफल रहा, और आज वर्तमान में 118 देश गुटनिरपेक्षता के सदस्य हैं |

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गुटनिरपेक्षता का मतलब होता है |

“जब कोई भी देश किसी भी सैनिक गुट में शामिल नहीं होता, बल्कि विभिन्न गुटों से एक समान दूरी बनाए रखता है और मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखता है तो इस नीति को ही गुटनिरपेक्षता की नीति कहते हैं”|

शीतयुद्ध के दौर में तीसरी दुनिया के देशों ने, गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया |

गुटनिरपेक्षता और तटस्था

गुटनिरपेक्षता और तटस्था में बहुत बड़ा अंतर है, तटस्था अलगाव की नीति है, जबकि गुटनिरपेक्षता अलगाव की नीति नहीं है, तटस्थता विश्व शांति को बढ़ावा नहीं देती, जबकि गुटनिरपेक्षता विश्व शांति को बढ़ावा देती है | तटस्थता नैतिकता के आधार पर समर्थन और विरोध नहीं करती, जबकि गुटनिरपेक्षता समर्थन और विरोध दोनों ही करती है |

जब शीत युद्ध चल रहा था, तब हथियारों की होड़ पैदा हुई, और हथियारों पर नियंत्रण भी पैदा हुए |

अब हम जानते हैं कि हथियारों की होड़ क्यों पैदा हुई, दोनों ही गुट एक दूसरे से ज्यादा हथियार बनाकर अपनी तकनीक को दिखाना चाहते थे | एक दूसरे को समाप्त करना चाहते थे | और किसी भी तरीके से अपनी शक्ति को सर्वोच्च बनाकर रखना चाहते थे, जिससे हथियारों की होड़ को बढ़ावा मिला |

लेकिन शीत युद्ध के दौरान हत्यारों पर नियंत्रण भी हुआ, क्योंकि दोनों यह समझ चुके थे कि एक छोटी सी गलती भयंकर विनाश का कारण बन सकती है, जिससे हथियारों पर नियंत्रण को बढ़ावा मिला | तीसरी दुनिया के देशों ने विश्व शांति को बढ़ावा दिया इससे भी हथियारों के नियंत्रण को बढ़ावा मिला | दोनों ही गुट बहुत हथियार बना चुके थे | अब पैसा अपनी जनता के ऊपर खर्च करना चाहते थे | इस तरीके से शीत युद्ध में हथियारों की होड़ भी हुई और हथियारों पर नियंत्रण भी हुआ |

गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता

अब 1991 में जब शीत युद्ध खत्म हो गया, तो एक सवाल पैदा हुआ कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन को आज भी बनाए रखना चाहिए या नहीं | यानी गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता है, या नहीं | गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता और अप्रासंगिकता पर कई प्रकार से तर्क दिए जा सकते हैं |

पहले हम जानते हैं कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन अप्रसांगिक क्यों हुआ | दरअसल गुटनिरपेक्षता की शुरुआत शीत युद्ध की वजह से हुई थी, लेकिन 1991 में शीत युद्ध खत्म हो गया, इसलिए गुटनिरपेक्षता की कोई जरूरत नहीं थी | तीसरी दुनिया के देशों ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया था, अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए लेकिन आज वर्तमान में किसी देश की स्वतंत्रता को कोई खतरा नहीं है, इसलिए गुटनिरपेक्षता को खत्म कर देना चाहिए और दुनिया में तनावपूर्ण वातावरण भी नहीं है, इसलिए गुटनिरपेक्षता को खत्म कर देना चाहिए और अब दुनिया के सामने सिर्फ पूंजीवाद रह गया है | क्योंकि साम्यवाद शीतयुद्ध के साथ ही खत्म हो गया, इसीलिए गुटनिरपेक्षता की कोई जरूरत ही नहीं है, और इस को भी खत्म कर देना चाहिए | लेकिन कुछ लोगों का यह कहना है कि

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गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता अभी भी बनी हुई है, हालांकि शीतयुद्ध खत्म हो चुका है, लेकिन गुटनिरपेक्षता की वजह से तीसरी दुनिया के देशों में आपसी सहयोग बना हुआ है, इसलिए गुटनिरपेक्षता को बनाए रखना बहुत जरूरी है | इसी तरीके से दुनिया में एक महाशक्ति अमेरिका रह गई है, तो अमेरिका को नियंत्रित करने के लिए गुटनिरपेक्षता को बनाए रखना बहुत जरूरी है, और अब दुनिया के अंदर बार बार आक्रमण होते रहते हैं और अमेरिका का बर्ताव आक्रमणकारी हो गया है, तो अमेरिका को नियंत्रित करने के लिए गुटनिरपेक्षता को बनाए रखना बहुत जरूरी है |

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तो दोस्तों यह था आपका 12वीं Class का पहला Chapter शीतयुद्ध का दौर, अगर आपको इस Chapter के Detail में Notes चाहिए तो आप हमारे WhatsApp वाले नंबर 9999338354 पर Contact कर सकते हैं | आप इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ Share करें |

धन्यवाद

This Post Has One Comment

  1. Aush

    Very nice information. Thank you sir

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