शक्ति संतुलन क्या है

Balance of Power in Hindi

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है और आज हम बात करेंगे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति संतुलन यानी बैलेंस ऑफ़ पावर (Balance of Power in Hindi) के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे इसका इसका मतलब, इसकी परिभाषा, विशेषताएं, प्रमुख साधन और महत्व के बारे में ।

शक्ति संतुलन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अनेक स्तरों पर एक महत्वपूर्ण अवधारणा रही है । यह देशों के बीच तालमेल बनाने में, शांति, सुरक्षा स्थापित करने में, राष्ट्रों के बीच संबंधों का निर्धारण करने में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबधों में स्थिरता लाने का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है । शक्ति संतुलन को महत्वपूर्ण और आधारभूत संकल्पना के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है ।

शक्ति संतुलन का अर्थ

शक्ति संतुलन का मतलब यह है कि किसी राज्य या देश के बीच शक्ति (Power) का बंटवारा इस तरह से करना कि किसी एक के पास इतनी ताकत न हो कि वह किसी को अन्य राज्य को दबा सके । यानी इतना शक्तिशाली न हो की दूसरे राज्य या देश के अधिकारों का हनन करे । यह सिद्धांत राज्यों के मध्य संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक सिद्धांत रहा है । यह सिद्धांत पिछले कई शताब्दियों तक यूरोप की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है । शक्ति संतुलन में राज्यो के बीच शक्ति का बंटवारा संतुलित आधार पर किया जाता है ।

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आइये जानते हैं, शक्ति संतुलन के बारे में कुछ विचारकों ने क्या कहा है ।

जार्ज श्वरजबर्जर के अनुसार,

“शक्ति संतुलन शक्ति संबंधों में संतुलन तुल्यभागिता या कुछ सीमा तक स्थिरता का नाम है, जो अनुकूल परिस्थितियों में राज्य द्वारा की गई संधि (Agreement) या किसी दूसरे साधनों में उत्पन्न होती है ।”

मार्टिन राइट के अनुसार,

“यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यथासंभव मूल सिद्धांत है ।”

आइनिस क्लाड के अनुसार,

“शक्ति संतुलन एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विभिन्न स्वतंत्र राष्ट्र अपने आपसी शक्ति संबंधों को बिना किसी बड़ी शक्ति के हस्तक्षेप के खुद ही स्वतंत्रता पूर्वक संचालित करते हैं ।”

फे (Fay) के अनुसार,

“शक्ति संतुलन का अर्थ राष्ट्रों के परिवार के सदस्यों की शक्ति न्याय पूर्ण तथा संतुलित, जो किसी राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रपति अपनी इच्छा लादने से रोक सके ।”

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शक्ति संतुलन की धारणा

शक्ति संतुलन की धारणा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में 18वीं और 19वीं शताब्दी की है । जहां पांच या छह मुख्य राष्ट्रीय कर्ता होते थे, जो शक्ति के लिए परस्पर संघर्षरत रहते थे । शक्ति संतुलन का अभिप्राय यह है कि विभिन्न राज्यों की शक्ति दो पक्षों में लगभग समान रूप से बढ़ती रहे । कोई भी एक पक्ष या एक राज्य अन्य राज्यों पर हावी ना हो या इतना शक्तिशाली ना हो कि वह दूसरे पर हमला करने या उसे दबाने या हराने में समर्थ हो । इस तरह विभिन्न राज्यों में संतुलन बना रहना चाहिए । ताकि कोई विवाद न उतपन्न हो ।

शक्ति संतुलन की विशेषताएं

आइए अब जानते हैं, शक्ति संतुलन की विशेषताओं के बारे में । शक्ति संतुलन की कोई एक परिभाषा ना होने के कारण हमें इसकी विशेषताओं के संबंध में जानना बहुत जरूरी है । पामर तथा पर्किन्स ने कुछ लक्षण बताएं हैं । जिससे हम शक्ति संतुलन के बारे में जान सकते हैं । जो निम्नलिखित हैं ।

1) शक्ति संतुलन का अर्थ है- बराबरी । संतुलन लेकिन शक्ति इतनी अस्थिर है कि इसको मापन बहुत ही कठिन है, शक्ति संबंध हमेशा बदलते रहते हैं । इसमें संतुलन के साथ अंतरराष्ट्रीय असंतुलन भी शामिल होता है । और इनमें तालमेल बनाया जाता है ।

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2) यह कहना अत्यंत कठिन है कि शक्ति संतुलन पूर्ण रूप से स्थापित हो गया है, क्योंकि शक्ति को मापना और स्थिर कर पाना असंभव है । इसका परीक्षण केवल एक ही स्थिति में किया जा सकता है । वह है, युद्ध । परंतु जब युद्ध शुरू होता है तो शक्ति संतुलन समाप्त हो जाता है और पुराने शक्तिशाली राष्ट्र शक्ति विहीन हो जाते हैं और नए देश शक्तिमान होकर उभरते हैं ।

3) शक्ति संतुलन की नीति यथापूर्व को ज्यों के त्यों बनाए रखने की नीति होती है । लेकिन शक्ति संतुलन की वहीं नीति सफल होती है, जो समय व परिस्थितियों के अनुरूप प्रगतिशील हो । अर्थात समय और परिस्थितियों के साथ उसमे संतुलन किया जा सके ।

4) शक्ति संतुलन को सक्रिय परियोजनों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और इसे प्राप्त करने के लिए राज्यों को हमेशा कोशिश करते रहना पड़ता है । यह कोई ईश्वरीय वरदान नहीं है, जो मांगा और मिल गया । इसके लिए राज्य को योजनाबद्ध तरीके से हमेशा कोशिश करते रहना होता है ।

5) शक्ति संतुलन मूल रूप से शांति स्थापित करने वाला सिद्धान्त नहीं है, बल्कि यह युद्ध को संतुलन करने का स्थाई साधन भी माना जाता है । इतिहासकार शक्ति संतुलन को वस्तुनिष्ठ दृष्टि में देखता है और राजनीतिज्ञ व्यक्ति उद्देश्य (Subjective) दृष्टि से । अर्थात दोनों की संतुलन के प्रति भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं ।

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6) शक्ति संतुलन व्यवस्था तभी कार्यान्वित होती है, जब बहुत सी बड़ी शक्तियां हो जिनमें से प्रत्येक शक्ति अपने संबंधों में संतुलन कायम करने के लिए निश्चित दृढ़ संकल्पित हो । राष्ट्र की अधिक संख्या तथा युद्ध में किसी भी इकाई को समाप्त ना करने का नियम दोनों ही शक्ति संतुलन के मूल लक्षण है । शक्ति संतुलन के खेल में केवल बड़े राष्ट्र ही खिलाड़ी होते हैं और छोटे राष्ट्र या तो इसका शिकार बनते हैं इस ये दर्शक की भूमिका निभाते हैं ।

7) शक्ति संतुलन के लिए 1918 से लेकर 1914 तक का समय सुनहरा युग था । इस दौरान इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का मौलिक अधिकार कानून भी माना जाता रहा है । 1914 के बाद अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था तथा शक्ति संतुलन में संरचनात्मक परिवर्तन होने के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का व्यावहारिक नियम बना दिया गया । सन 1945 के बाद से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसकी भूमिका बहुत हद तक सीमित ही है ।

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शक्ति संतुलन की मौलिक मान्यताएं

आइए अब जानते हैं शक्ति संतुलन की मान्यताओं के बारे में । शक्ति संतुलन की अनेक मान्यताएं मौलिक तथा अंतर्निहित है । जो निम्नलिखित हैं ।

1) यह तो सभी जानते हैं कि प्रत्येक राज्य अपने सभी साधनों का इस्तेमाल युद्ध सहित अपने हितों तथा अधिकारों की सुरक्षा के लिए करता रहा है ।

2) असुरक्षा की भावना किसी भी देश के लिए होना आम बात है । राष्ट्रों के हितों को खतरा हो सकता है, यदि ऐसा न होता तो राज्य को उसकी रक्षा करने के प्रयत्न की कोई आवश्यकता नहीं होती ।

3) वर्तमान समय में हर राज्य और देश में प्रबंधन और तकनीक की सहायता से राज्य की शक्ति का ठीक-ठीक मूल्यांकन किया जा सकता है और भविष्य में उनकी शक्ति क्या होगी इसका भी अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है ।

4) शक्ति संतुलन की स्थिति या तो खतरा उत्पन्न करने वाले राष्ट्र को आक्रमण करने से रोक सकती है । अगर आक्रमण हो तो शिकार राष्ट्रों को बचा सकती है ।

5) राजनीतिज्ञ अपनी विदेश नीति का निर्णय सूझबूझ तथा शक्ति संबंधी तथ्यों के आधार पर ही लेते हैं । क्योंकि हर देश को अपनी शक्ति के बारे में पता होता है और सुरक्षा का अपना बजट होता है ।

इस प्रकार शक्ति संतुलन की आधारभूत अवधारणा यह है कि व्यवस्था में यदि कोई राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्रों के लिए खतरा बन जाए तो, शक्ति द्वारा उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है । किसी भी राष्ट्र को इतना आगे नहीं बढ़ने दिया जाता कि वह अन्य राष्ट्रों के लिए खतरा बन जाए ।

शक्ति संतुलन स्थापित करने के मुख्य साधन

आइए अब जानते हैं उन साधनों के बारे में जो शक्ति संतुलन की स्थापना करते हैं जोकि निम्नलिखित हैं |

1) क्षतिपूर्ति या मुआवजा

2) हस्तक्षेप

3) मध्यवर्ती राज्य या खंड

4) सशक्तिकरण तथा निशस्त्रीकरण

5) बांटो और शासन करो

6) मैत्री संधियाँ

7) संतुलन की अवधारणा

आइए अब बात करते हैं, शक्ति संतुलन के महत्व और उनके लाभों के बारे में ।

शक्ति संतुलन का महत्व

जैसा कि जम सभी जानते हैं, शक्ति  संतुलन का मुख्य उद्देश्य शांति तथा सुरक्षा की स्थापना करना है । इसके साथ यह माना जाता है कि यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में स्थिरता का कारक है । यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति के बिल्कुल अनुरूप होता है । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे छोटे राज्यों की स्वाधीनता भी बनी रहती है और यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शांति का स्रोत भी माना जाता है । जब राष्ट्रों में शक्ति का समान वितरण होता है, तो कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण नहीं करेगा । इस तरह शक्ति संतुलन कायम होगा ।

अगर निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो शक्ति संतुलन का सिद्धांत विश्व संबंधों का संपूर्ण निर्धारक तत्व रहा है । परंतु वर्तमान में इसकी प्रसंगिकता कम हुई है । लेकिन अगर ध्यान दिया जाए तो, यह आज भी किसी ना किसी रूप में विद्यमान है ।

तो दोस्तों यह था, शक्ति संतुलन उसका अर्थ, विशेषताओं, साधन और महत्व के बारे में । अगर यह Post आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

This Post Has 2 Comments

  1. Ram babu

    Political science core 8 ka question answer sab upload kijiye sir Kal se exam h

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