लोकतंत्र पर नेहरू जी के विचार

Nehru’s views on Democracy

Hello दोस्तो Gyaan Uday में आपका स्वागत है । आज हम बात करते लोकतंत्र पर नेहरू जी के विचारों के बारे में । जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 में इलाहाबाद के एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ । उनके पिता मोतीलाल नेहरू एक मशहूर वकील थे । अपने पिता की तरह नेहरु जी ने भी वकालत की । 1915 में नेहरू कांग्रेस में शामिल होकर देश की सेवा में जुट गए और अपने आखिरी दम तक कांग्रेस के साथ ही जुड़े रहे ।

नेहरु जी आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले बहुत ही महत्वपूर्ण नेता थे । और आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से नेहरू जी को जेल भी जाना पड़ा और अपनी जिंदगी के तकरीबन 11 साल जेल के अंदर बिताने पड़े । नेहरू जी ने जेल में रहकर एक किताब लिखी । द डिस्कवरी ऑफ इंडिया (The Discovery of India) और इस किताब में अपने विचार दिए । उनके विचारों को पढ़ने से पता चलता है कि उनके विचार समाजवाद और लोकतंत्र के ऊपर दिए गए हैं ।

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गांधीजी और नेहरू जी के संबंध

सबसे पहले हम जानते हैं गांधी जी और नेहरू जी के संबंधों के बारे में । जवाहरलाल नेहरू लगभग 30 सालों तक गांधी जी के साथ रहे । लेकिन वह गांधी जी की तरह धार्मिक नेता नहीं बन सके । गांधी जी और नेहरू जी दोनों मानवतावादी थे । गांधीजी के अहिंसा के विचारों से नेहरू जी बहुत ही आकर्षित हुए । क्यों ? क्योंकि, गांधीजी ने अहिंसा की शक्ति का इस्तेमाल करके जबरदस्त कामयाबी हासिल की । यानी अहिंसा के मार्ग पर सफलता हासिल की । लेकिन नेहरू जी गांधी जी के इस विचार से सहमत नहीं थे कि अहिंसा ही सत्य है । नेहरू जी का यह मानना था राज्य को हिंसा का इस्तेमाल करना पड़ता है । क्योंकि राज्य को समाज चलाना पड़ता है और समाज के अंदर व्यवस्था को बनाना पड़ता है । इसलिए राज्य को हिंसा का इस्तेमाल करना ही पड़ता है । आक्रमण का सामना करने के लिए सेना का इस्तेमाल करना पड़ेगा । इसी तरीके से समाज के अंदर समाज विरोधी गतिविधियां कम करने के लिए या दबाने के लिए बल प्रयोग की आवश्यकता होती है ।

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नेहरू जी के लोकतंत्र पर विचार

1 नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन

2 संसदीय लोकतंत्र का समर्थन

3 आर्थिक लोकतंत्र का समर्थन

नेहरु जी ने लोकतंत्र पर अपने विचार दिए । नेहरु जी ने कई किताबें लिखीं, लेख लिखें और बहुत सारे भाषण भी दिए । अगर हम उनकी किताबों को पढ़ते हैं, या उनके लेखों को पढ़ते हैं, या फिर उनके भाषणों को सुनते हैं, तो इससे पता लगता है कि नेहरू जी ने अपने ज्यादातर विचार लोकतंत्र के बारे में दिए हैं । नेहरु जी ने लोकतंत्र का समर्थन करते हुए तीन चीजों पर बल दिया । सबसे पहली चीज है,

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1 नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन

नेहरु जी ने सबसे पहले नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन किया और बल दिया । नेहरू जी का मानना था कि लोकतंत्र की स्थापना के लिए स्वतंत्रता का होना जरूरी है । जब तक नागरिकों को स्वतंत्रता नहीं दी जाएगी तब तक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती । नेहरु जी का यह भी कहना था कि अगर कोई सरकार नागरिकों की आजादी पर पाबंदी लगाती है और उन्हें मनमाने ढंग से जेल के अंदर डाल देती है । तो ऐसी सरकार को बनाए रखना गलत है । ऐसी सरकार को खत्म कर देना चाहिए । इसलिए नेहरू जी अंग्रेजों के भी खिलाफ थे ।

2 संसदीय लोकतंत्र का समर्थन

संसदीय लोकतंत्र के अंदर संसद होती है और संसद के में बहुत सारे नेता आपस में विचार विमर्श करते हैं । नेहरू जी विपक्ष के नेताओं के भाषणों को बहुत ध्यान से सुना करते थे । नेहरू जी प्रश्नकाल यानी कि Question Answer Session में गहरी रूचि लेते थे । नेहरू जी एक ऐसे नेता थे जो विपक्ष का बहुत आदर देते थे और उनको इज्जत देते थे और उनका सम्मान भी करते थे । आजकल विपक्ष का सम्मान बहुत कम ही देखने को मिलता है ।

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3 आर्थिक लोकतंत्र का समर्थन

आर्थिक लोकतंत्र के समर्थन पर नेहरू जी ने बहुत अधिक बल दिया है । आर्थिक लोकतंत्र पर नेहरू जी का यह मानना था कि राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है, जब आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में समस्याओं का समाधान हो सके । नेहरू जी कहा करते थे कि एक व्यक्ति जो गरीब है, भूँखा है और उसके पर पहनने को कपड़े नहीं हैं । उसके लिए वोट डालने का कोई खास महत्व नहीं है । नेहरू जी के अनुसार लोकतंत्र का मतलब है ।

“लोगों को ज्यादा से ज्यादा आगे बढ़ने के अवसर दिया जाए यानी कि समान अवसर दिए जाएं और इसके लिए लोगों को कुछ अधिकार दिए जाएं”

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जैसे कि लोगों के पास अधिकार होना चाहिए । काम करने का अधिकार या फिर उचित वेतन पाने का अधिकार शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार । राजनीति क्षेत्र में राजनीतिक लोकतंत्र में आर्थिक लोकतंत्र का होना भी बहुत जरूरी है । अगर राजनीतिक लोकतंत्र में आर्थिक लोकतंत्र को शामिल नहीं किया जाएगा तो ऐसा लोकतंत्र बेकार है । वह लोकतंत्र किसी काम का नहीं है ।

नेहरु जी द्वारा सामाजिक न्याय का समर्थन

नेहरू जी ने लोकतंत्र का समर्थन करने के लिए और लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक न्याय का भी समर्थन किया है । समाज के अंदर जब तक सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं की जाएगी तब तक लोकतंत्र भी नहीं आ सकता । सामाजिक न्याय की स्थापना करने के लिए जातिवाद को, सांप्रदायिकता को और लैंगिक भेदभाव को खत्म करना बहुत आवश्यक है । जब तक इन बुरी प्रथाओं को खत्म किया नहीं जाता तब तक सामाजिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती और इसलिए नेहरू ने सबसे पहले सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई ।

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1 जातिवाद का विरोध

2 साम्प्रदायिकता का विरोध

3 लैंगिंग भेदभाव का विरोध

1 जातिवाद का विरोध

नेहरु जी ने जात-पात पर प्रहार किया है । क्योंकि जात पात को खत्म किए बिना लोगों को समान अवसर नहीं मिल सकते । और ना ही सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है । एक अच्छा लोकतंत्र तो तब आ सकता है, जब हर क्षेत्र में लोकतंत्र हो । यानी सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र में लोकतंत्र का आना काफी नहीं है बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी लोकतंत्र होना चाहिए । सामाजिक क्षेत्र में भी लोकतंत्र होना चाहिए । यानी हर क्षेत्र के अंदर लोकतंत्र होना चाहिए, तभी एक अच्छा लोकतंत्र आ सकता है । जब तक जातिवाद को नहीं मिटाया जाएगा, तब तक अच्छी तरीके से लोकतंत्र ही नहीं सकता । लोकतंत्र और जातिवाद एक दूसरे के विरोधी हैं । दोनों में से सिर्फ एक चीज आ सकती है । दोनों में सांप और नेवले जैसी दुश्मनी है । या तो लोकतंत्र आ सकता है या फिर जात पात को अपनाया जा सकता है । यानी जब तक जात-पात को जड़ से खत्म नहीं किया जाता, तब तक अच्छी तरह से लोकतंत्र की स्थापना भी नहीं हो सकती ।

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2 साम्प्रदायिकता का विरोध

नेहरु जी ने सामाजिक न्याय के लिए सांप्रदायिकता के खिलाफ भी आवाज उठाई और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया । नेहरू जी ने खुद अपनी आंखों से सांप्रदायिकता को देखा था । उन्हें पता था कि सांप्रदायिकता देश के लिए कितना बड़ा खतरा है । क्योंकि जब हमारा भारत आजाद हुआ था तो भारत के आजादी के तुरंत बाद दंगे फसाद हो गए थे । उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे तो नेहरु जी ने सांप्रदायिक दंगों को खुद अपनी आंखों से करीब से देखा था । वह जानते थे कि सांप्रदायिकता देश के लिए कितना बड़ा खतरा है । इसलिए नेहरु जी ने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया । नेहरू जी ने ऐसे धर्मनिरपेक्ष राज्य का सपना देखते थे जिसमें सभी को अपने धर्म का पालन करने की पूरी पूरी आज़ादी हो । नेहरू जी का यह मानना था कि हिंदू और मुसलमानों के जो संबंध खराब हुए हैं, वह अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो की नीति की वजह से खराब हुए हैं । यानी हिंदू और मुसलमानों में संबंधों में जो बिगाड़ आया है । उसके लिए अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति ही जिम्मेदार है ।

3 लैंगिंग भेदभाव का विरोध

नेहरु जी ने लिंग के आधार पर भी जो भेदभाव किया जाता है, उसके खिलाफ भी जोरदार आवाज उठाई । लोकतंत्र का मतलब होता है । सबका शासन । लोकतंत्र का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि अमीरों का शासन या गरीबों का शासन, ऊंची जाति का शासन या फिर नीची जाति का शासन । नहीं बल्कि लोकतंत्र का मतलब है, सबका शासन । कभी-कभी यह भी माना जाता है कि लोकतंत्र एक तरीके का पुरुष तंत्र है । जिसमें पुरुषों की ही चलती है । लेकिन लोकतंत्र का मतलब सिर्फ पुरुषों का शासन नहीं है । पंडित नेहरू का तो यह भी मानना था कि यह बहुत अफसोस की बात है कि पुरुषों ने अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए नारियों का शोषण किया है । नेहरू जी स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उनको कुछ अधिकार भी देना चाहते थे और महिलाओं को जो उनके अधिकार दिए जा सकते हैं । वह शिक्षा के जरिए दिए जा सकते हैं । प्रचार के जरिए उनको जागरूक किया जा सकता है । अगर महिलाओं को पढ़ाया लिखाया जाएगा । उनको शिक्षित किया जाएगा और प्रचार करके उनके अधिकार के बारे में बताया जाएगा तो इस तरीके से वह अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होकर अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती हैं । वह भी पुरुषों के समान आगे बढ़ सकती हैं ।

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नेहरू जी का यह मानना था कि लोकतंत्र तब बेहतर तरीके से काम कर सकता है, जब समस्याओं का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान किया जाए । लोकतंत्र के अंदर विचारों के आदान-प्रदान से सरकार बनती है । और सभी समस्याओं का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से किया जाता है । नेहरू जी शांतिपूर्ण उपायों का समर्थन करते थे और हिंसात्मक तरीकों के खिलाफ थे । हालांकि समाज के अंदर बुराइयों को दूर करने के लिए बल प्रयोग की आवश्यकता होती है । जैसे की जाति प्रथा को दूर करना है, छुआछूत को जड़ से खत्म करना है, दहेज प्रथा को खत्म करना है या समाज के अंदर नैतिकता को बढ़ावा देना है । तो इसके लिए बल प्रयोग की आवश्यकता है । लेकिन इससे ज्यादा जरूरी यह है कि लोगों को जागरूक किया जाए । लोगों को कानूनों के महत्व के बारे में बताया जाए ताकि लोग खुद ही कानून का पालन करने लगे । अगर लोगों से जबरदस्ती कानूनों का पालन करवाया जाएगा तो वह अपनी इच्छा से कानूनों का पालन नहीं करेंगे । लेकिन अगर लोगों को कानून के महत्व के बारे में बताया जाएगा उनके सहयोग को हासिल किया जाएगा, तो लोगों से कानूनों का पालन करवाना आसान हो जाएगा । और

नेहरु जी ने आखरी में एक बहुत बड़ी चेतावनी दी है । नेहरू जी ने यह कहा कि लोकतंत्र यह नहीं कि लोग अपनी मनमानी करें बल्कि लोकतंत्र के लिए अनुशासन का होना बहुत जरूरी है । अगर अनुशासन (Discipline) होगा तो लोकतंत्र बेहतर तरीके से काम करेगा । अगर लोगों के अंदर अनुशासन नहीं है तो लोकतंत्र बेहतर तरीके से काम नहीं कर सकता ।

तो दोस्तों यह थे लोकतंत्र पर नेहरू जी के विचार (Thoughts of Nehru on Democracy) अगर आपको यह Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और अगर आपको इस Topic से Related detailed Notes चाहिए तो आप हमारे Whatsapp 9999338354 पर सम्पर्क कर सकते हैं ।

तब तक के लिए धन्यवाद !!

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