लास्की का संपत्ति सिद्धान्त

Theory of Property by Laski in hindi

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, “संपत्ति पर लास्की के विचारों की (Views of Ladki on Property in hindi)। लास्की का पूरा नाम Harold Joseph Laski है । यह ब्रिटैन के मशहूर राजनीतिक सिद्धान्तकार, अर्थशास्त्री और लेखक रहे । लास्की ने संपत्ति के बारे में व्यवहारिक विचार पेश किए हैं । लास्की ने उदारवाद और समाजवाद दोनों सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, संपत्ति की समस्या का समाधान करने का प्रयास किया है । लास्की के विचारों में उदारवाद और मार्क्सवाद दोनों के लक्षण देखे जा सकते हैं । इसीलिए लास्की के विचारों को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है ।

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संपत्ति का अर्थ (meaning of property)

लास्की ने संपत्ति की वर्तमान व्यवस्था को स्पष्ट किया है । लास्की के अनुसार संपत्ति का अर्थ है सुरक्षा यानी Security । ‘सुरक्षा’ क्योंकि संपत्ति के माध्यम से व्यक्ति भूख के डर से बच सकता है । अपनी मर्जी के मुताबिक काम कर सकता है और अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है । लेकिन समाज में संपत्ति केवल कुछ ही लोगों के पास होती है । संपत्ति के माध्यम से पूंजीपति मजदूरों पर नियंत्रण करते हैं । अपने हितों को बढ़ावा देते हैं । और गरीबों का शोषण करते हैं ।

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पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य लाभ कमाना कमाना होता है । इसके लिए वह नैतिक और अनैतिक सभी साधनों का प्रयोग करते हैं । इसलिए लास्की ने संपत्ति की पूंजीवादी व्यवस्था को पूरी तरह से स्थापित नहीं किया । लास्की के अनुसार संपत्ति से व्यक्ति के अंदर कुछ अच्छे गुण भी पैदा होते हैं । जैसे व्यक्ति के अंदर दान पूण्य के कार्य करना, धार्मिक कार्य या बधाई के गुण पैदा होते हैं । लेकिन पूंजीवाद के अंदर संपत्ति कुछ ही लोगों के पास होती है । और यह गुण सभी लोगों के अंदर पैदा नहीं होता ।

सम्पत्ति का समर्थन (Favour of Property)

लास्की ने नैतिक आधार पर संपत्ति का समर्थन किया है । लास्की के अनुसार हर व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकता पूरी होनी चाहिए । इसके अलावा संपत्ति का अधिकार सामाजिक कर्तव्यों से भी जुड़ा होना चाहिए ।  लास्की के अनुसार

“अगर समाज मुझे कुछ देता है । तो मेरा यह कर्तव्य है, मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इस कर्ज को चुका दूँ”

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व्यक्ति को अपनी संपत्ति का प्रयोग समाज के हितों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए । लास्की का यह भी कहना है कि किसी भी व्यक्ति को बिना काम किए संपत्ति रखने का नैतिक अधिकार नहीं है । और लास्की ने वंशानुगत संपत्ति का भी विरोध किया है । जो लोग बिना काम किए संपत्ति का इस्तेमाल करते हैं । वह इस पृथ्वी पर बोझ हैं । और जो लोग ऐसे लोगों का या ऐसे संपत्ति स्वामियों का सम्मान करते हैं, उन लोगों के अंदर भी नैतिकता की कमी है । वंशानुगत संपत्ति सिर्फ उन लोगों के लिए ही बेहतर है जो नैतिक हैं, विधावाएं हैं, या बच्चे हैं ।

श्रम के बदले पुरस्कार

लास्की ने यह सवाल भी उठाया था कि व्यक्ति को उसके श्रम के बदले कितना पुरस्कार मिलना चाहिए । लास्की ने पुरस्कारों के प्रचलित सिद्धांतों को अस्वीकार कर दिया ।

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पुरस्कार का पहला सिद्धांत है साम्यवाद ।

जिसमें सभी को एक समान वेतन दिया जाता है । लेकिन लास्की ने साम्यवाद सिद्धांत को नहीं स्वीकार किया । क्योंकि हर एक कार्य के लिए अलग परीक्षम और अलग योग्यता की आवश्यकता होती है ।

पुरस्कार का दूसरा सिद्धांत मांग और पूर्ति का है ।

लेकिन मांग और पूर्ति का सिद्धांत भी गलत है क्योंकि मजदूर और पूंजीपति एक समान नहीं होते । मांग और पूर्ति के समझौते से मजदूर को कभी उचित वेतन नहीं मिलता । और

पुरस्कार का तीसरा सिद्धांत मज़दूर को उचित वेतन का है ।

इस सिद्धान्त के अनुसार मजदूर को उसकी आवश्यकता के अनुसार उचित वेतन मिलना चाहिए । लेकिन आवश्यकताओं का कोई अंत नहीं होता । इसलिए लास्की ने संपत्ति के बारे में और पुरस्कार के बारे में अपने विचार दिए हैं । लास्की का कहना है कि

“महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि व्यक्ति और समाज के हित में तालमेल बैठाया जाए और व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी की जाए ।”

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इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को कम से कम इतना वेतन दिया जाए कि उसकी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो जाए लेकिन वेतन इतना ज्यादा भी ना हो कि उत्पादन भी ना हो । वेतन इतना होना चाहिए कि व्यक्ति की मूलभूत ज़रूरतें पूरी हो जाए और हर काम के लिए योग्य व्यक्ति मिल सके । यानी वेतन ऐसा होना चाहिए या इतना होना चाहिए कि व्यक्ति अपना विकास कर सके । और समाज के विकास में भी अपना योगदान दे सके ।

लास्की ने संपत्ति के उदारवादी सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया क्योंकि निजी संपत्ति नैतिक रूप से गलत है । इसमें संपत्ति उसे प्राप्त हो जाती है, जो कुछ कार्य नहीं करता या कुछ भी मेहनत नहीं करता । और बहुत सारे लोग जो परिक्षम करते हैं उन्हें उनका सही हक नहीं मिलता । इसीलिए लास्की निजी संपत्ति का विरोध करता है । लास्की ने संपत्ति के बारे में उदारवादी सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया ।

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क्योंकि उसका कहना है की निजी संपत्ति व्यक्ति के अंदर आवश्यक गुणों को पैदा नहीं करती । इसलिए संपत्ति उसे प्राप्त हो जाती है, जो कुछ भी मेहनत नहीं करता या योगदान नहीं देता इसके विपरीत जो व्यक्ति मेहनत करता है या अपना बहुत ज्यादा योगदान देता है । उन्हें उनका उचित अधिकार नहीं मिल पाता और इससे गरीबों का शोषण भी होता है । इसलिए संपत्ति वही उचित है जो व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत प्रयासों का अनुसार मिले और संपत्ति ऐसी भी होनी चाहिए जिससे व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूरी की जा सके । और हर कार्य के लिए सही व्यक्ति भी मिल सके ।

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तो दोस्तों यह था आपका लास्की का संपत्ति सिद्धांत (Laski views on Property in Hindi) अगर आपको इस Chapter के Detailed Notes चाहिए तो आप हमारे Whatsapp 9999338354 पर सम्पर्क कर सकते हैं ।

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