रूसो का सामान्य इच्छा सिद्धांत

Conception of General Will of Rousseau

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक विचार के अंतर्गत रूसो की सामान्य इच्छा सिद्धांत (Conception of General Will of Rousseau in hindi) के बारे में । इस Post में हम जानेंगे रूसो की सामान्य इच्छा का अर्थ, निर्माण, विशेषताएं व प्रमुख अलोचनाओं के बारे में । साथ ही साथ जानेंगे सामान्य इच्छा सिद्धांत के महत्व को । तो चलिए शुरू करते हैं आसान भाषा में ।

सामान्य इच्छा का अर्थ

दोस्तों रूसो का सामान्य इच्छा सिद्धांत राजनीतिक चिंतन में अपना विशेष स्थान रखता है । रूसो का जो सामान्य इच्छा का सिद्धांत है, ये रूसो द्वारा प्रतिपादित है और यह राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है और रूसो के राजनीतिक दर्शन में सबसे महत्वपूर्ण उसका सामान्य इच्छा का सिद्धांत है । सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में रूसो की अमर देन है और रूसो ने अपने इस धारा में स्वतंत्रता और सत्ता हित और कर्तव्य और सर्व व्यापकता में सामंजस्य प्रस्तुत किया है ।

सामान्य इच्छा का निर्माण

कुछ विचारक मानते हैं कि यह लोकतंत्र की आधारशिला है । कुछ विचारको के अनुसार जो रूसो का सामान्य इच्छा है वह लोकतंत्र की आधारशिला है । हालांकि लोकतंत्र समर्थकों ने जहां इसका स्वागत किया है, वहीं निरंकुश शासकों ने इसके आधार पर जनता से मनमाने अत्याचार भी किए हैं । इस कारण यही भी कहा जाता है कि शायद ही कोई सिद्धांत इतना विवादस्पद होगा जितना की सामान्य इच्छा का सिद्धांत ।

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अपने सामाजिक समझौता सिद्धांत में रूसो ने बताया है कि समझौते के द्वारा समाज के लिए व्यक्ति अपने शक्ति को जो परित्याग करता है, उससे उसकी व्यक्तिगत इच्छा का स्थान एक सामान्य इच्छा यानी कि General Will ले लेती है । सामान्य इच्छा की व्याख्या करने के लिए रूसो ने यथार्थ और आदर्श इच्छाओं में अंतर बताया है ।

रूसो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की दो प्रमुख इच्छाएं होती हैं ।

यथार्थ इच्छा (Actual Will)

आदर्श इच्छा (Reach Will)

सामान्य रूप में यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का एक ही अर्थ लिया जाता है । लेकिन रूसो के द्वारा इन दोनों का ही प्रयोग अलग-अलग और विशेष अर्थों में किया गया है । रूसो कहता है यथार्थ इच्छा मानव की इच्छा का वह भाग है जिसका लक्ष्य व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति करना होता है । इसमें सामाजिक हित की अपेक्षा व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना प्रबल होती है । जब मनुष्य केवल अपने लिए सोचता है, तब वह यह यथार्थ इच्छा के वशीभूत होता है । जो यह इच्छा भावना प्रधान इच्छा होती है, जो वशीभूत होकर मनुष्य विवेक से कार्य करता है । व्यक्ति की यह क्रांतिकारी इच्छा होती है और इसमें व्यक्ति का दृष्टिकोण संकीर्ण और अंतद्वन्द से युक्त होता है ।

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आदर्श इच्छा मानव की वह इच्छा है, जिसका लक्ष्य संपूर्ण समाज का कल्याण हो । यह वह इच्छा है जो विवेक, ज्ञान और सामाजिक हित पर आधारित होती है । इस इच्छा के अनुसार मानव स्वयं के हित को सामाजिक हित का अभिन्न अंग मानता है तथा सम्पूर्ण समाज के हित को ध्यान में रखते हुए कार्य करता है । इस इच्छा में व्यक्तिगत स्वार्थ का सामाजिक हित के साथ-साथ सामंजस्य तथा व्यक्तिगत स्वार्थ पर सामाजिक हित की प्रधानता होती है । रूसो के अनुसार यही एकमात्र श्रेष्ठ है तथा स्वतंत्रता की घटक है ।

रूसो के अनुसार

“यह व्यक्ति की उत्कृष्ट इच्छा होती है, जो स्वार्थ हीन और कल्याणकारी होती है और यह इच्छा व्यक्ति में स्थाई रूप से निवास करती है ।”

सामान्य इच्छा समाज के व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का योग होती है, यह मानव की इच्छाओं का वह श्रेष्ठ भाग है जो संपूर्ण समाज के लिए आवश्यक रूप में हितकर हो । सामान्य इच्छा निष्काम होती है । इसका उद्देश्य हमेशा ही सामान्य हित होता है । इसका संबंध सार्वजनिक बातों से होता है, व्यक्तिगत बातों से नहीं और सामान्य हित की बातों में यह हमेशा जनसेवा और लोकहित के भाव से प्रभावित होती है । यदि समाज के सदस्य सामान्य हित की समस्याओं पर व्यक्तिगत अथवा किसी वर्ग विशेष के दृष्टिकोण से विचार करते हैं, तो उसका परिणाम सामान्य इच्छा नहीं हो सकता ।

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रूसो का कहना है कि सामान्य इच्छा समस्त नागरिकों की सर्वश्रेष्ठ इच्छाओं का योग है । अतः वह सर्वसाधारण की पूर्व प्रभुता संपन्न इच्छा है और इस इच्छा का पालन अवश्य ही करना चाहिए,

“यदि मैं किसी स्वार्थ व शिक्षा को पूरा करता तो समस्त समाज की सामान्य इच्छा मुझे मजबूर कर सकती है कि मैं उसके अनुसार आचरण करूं । यदि कोई व्यक्ति सामान्य इच्छा की अवहेलना करेगा तो, समस्त समाज उसके ऊपर दबाव डालेगा ।”

सामान्य इच्छा की पूर्णता के संबंध में रूसो का मानना है कि जिस अनुपात में लोग सार्वजनिक हित को सामने रख सकेंगे और जिस अनुपात में भी अपनी व्यक्तिगत हितों को भुला सकेंगे उसी अनुपात में सामान्य इच्छा पूर्ण होंगी ।

सामान्य इच्छा का निर्माण किस प्रकार होता है, इसके बारे में रूसो ने बताया है कि सामान्य इच्छा के निर्माण की प्रक्रिया सर्वसाधारण की इच्छा से प्रारंभ होती है । व्यक्ति समस्याओं को सबसे पहले अपने स्वयं के दृष्टिकोण से देखते हैं । जिसमें उनकी यथार्थ एवं आदर्श दोनों इच्छाएं शामिल होती हैं । यदि ऐसा समाज सभ्य और सुसंस्कृत हो उसमें नागरिकता की भावना हो तो विचारों के आदान-प्रदान की इस प्रक्रिया में व्यक्तियों की स्वार्थमय अशुद्ध तथा अनैतिक भाग समाप्त हो जाता है और इस प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप सामान्य इच्छा का उदय होता है । सामान्य इच्छा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति मनुष्य में निहित है और सामान्य इच्छा के निर्णय शुभ और आदर्श होते हैं जिनका पालन सभी व्यक्ति करते हैं ।

सामान्य इच्छा का महत्व

रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धांत की अनेक विशेषताएं और उसके अपने महत्व हैं । उनके महत्व के बारे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि दूसरों के सामने इच्छा सिद्धांत राजनीतिक विचारधारा के लिए उसकी महत्वपूर्ण दिन है । रूसो की सामान्य इच्छा ने आदर्शवादी विचारधारा की नींव डाली है, जिसे आधार मानकर ग्रीन ने राज्य का मुख्य आधार बल को ना मानकर इच्छा को माना है । इसके अलावा सामान्य इच्छा का विचार प्रजातंत्र या लोकतंत्र को बल देने वाला है, क्योंकि उसका यह मानना है कि सत्ता का आधार जन स्वीकृति है और समप्रभुता का अंतिम सूत्र जनता है तथा विधि निर्माण में शामिल शासन को जनता के प्रति उत्तरदाई होना चाहिए । अपने सिद्धांत के द्वारा दूसरों ने व्यक्तिगत स्वार्थ की अपेक्षा सामान्य हित को प्रतिष्ठित किया है और यह बताया है कि सामान्य जनता के आदर्श इच्छाओं का योग और प्रमुख उद्देश्य होता है । पुरुषों की सामान्य इच्छा राजनीतिक कार्यों के पथ प्रदर्शन का कार्य करती है और उसके अनुसार सामान्य इच्छा का प्रमुख कार्य विधि निर्माण और शासन तंत्र की नियुक्ति और उसे भंग करना है ।

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रूसो ने एक ऐसे राज्य की स्थापना की बात की जिसमें नागरिक नैतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें और उनका मानना है कि स्वतंत्रता और नैतिकता सामान्य इच्छा के द्वारा प्राप्त हो सकते हैं । सामान्य शिक्षा के सिद्धांत ने इस विचार का पोषण किया कि राज्य एक नैतिक संगठन है । जो मानव की अनुचित एवं स्वार्थी प्रवृत्तियों को दूर करके सामूहिक कल्याण पर बल देता है । यह सिद्धांत समाज एवं व्यक्ति के शरीर तथा उसके अंगों का संबंध स्थापित करके मानक के सामाजिक स्वरूप को सिद्ध करता है ।

ओसवार्न का कथन है की

“रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक दर्शन के लिए उसका सबसे मौलिक ही नहीं बल्कि सबसे महत्वपूर्ण योगदान है ।”

सामान्य इच्छा की विशेषताएं

सामान्य इच्छा को स्पष्ट रूप से समझने के लिए उसकी विशेषताओं और लक्षणों के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है जोकि निम्नलिखित है ।

1) सामान्य इच्छा का प्रमुख लक्षण उसकी एकता और अखंडता है जैसा कि स्पष्ट है कि सामान्य इच्छा की विशेषता है कि विभिन्नता में एकता स्थापित की जाए । इसलिए विवेक युक्त और बुद्धि जन्य होने के कारण इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं होता है ।

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2) सामान्य इच्छा स्थाई और शाश्वत होती है । यह किसी भी प्रकार के भावनात्मक आवेश, आवेगो का परिणाम नहीं होती बल्कि मानव के जनकल्याण की अस्थाई प्रवृत्ति और विवेक का परिणाम होती है । इस कारण यह लोगों के चरित्र का अंश बन जाती है । इसका कभी अंत नहीं होता है और यह कभी भ्रष्ट नहीं होती है । यह अनित्य परिवर्तनशील और पवित्र होती है ।

3) सामान्य इच्छा की एक विशेषता यह है कि सामान्य इच्छा संप्रभुता धारी है । संप्रभुता के समान ही यह अविभाज्य और आधे है तथा संप्रभुता के समान ही सामान्य इच्छा निरपेक्ष है । प्रभुसत्ता सामान्य इच्छा में निहित है और इसका प्रमाण है कि जिस प्रकार किसी शरीर किसी व्यक्ति के शरीर में उसके प्राण को अलग नहीं किया जा सकता है वैसे ही प्रभुसत्ता को सामान्य इच्छा से अलग कर पाना संभव नहीं है ।

4) संप्रभुता भावनाओं और आवेश आवेग ऊपर नहीं बल्कि तर्क और विवेक पर आधारित और चित्र पूर्ण इच्छा होती है । यह सदैव शुभ उचित और कल्याणकारी होती है और हमेशा जनहित के उद्देश्य को लेकर चलते हैं यह सब की श्रेष्ठ आदर्श शिक्षाओं का योग होती है तथा सामान्य इच्छा कभी गलत नहीं हो सकती है । रूसो के शब्दों में सामान्य इच्छा हमेशा विवेकपूर्ण एवं न्याय संगत होती है, क्योंकि जनता की वाणी वास्तव में ईश्वर की वाणी है ।

5) सामान्य इच्छा स्थाई होती है और इसका उद्देश्य सदैव सामान्य हित होता है । साथ ही साथ यह सामान्य हित की बातों में लोक कल्याण के उद्देश्य से प्रेरित होती है । इसका उद्देश्य सदैव ही संपूर्ण समाज का कल्याण करना होता है ।

सामान्य इच्छा की आलोचना

रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक चिंतन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विवादास्पद विषयों में से एक है और इसे राजदर्शन को पुरुषों की एक अमूल्य देन मानी जाती है । फिर भी कुछ विचारकों की दृष्टि में सामान्य इच्छा का सिद्धांत यदि भयंकर रही है । तो साल ही अवश्य है वहीं कुछ विचारकों के लिए यह सिद्धांत लोकतंत्र और राजनीतिक दर्शन किया बुनियादी आधार है इसकी आलोचना मुख्य रूप से आधारों पर की जाती हैं ।

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1 रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धांत अत्यंत ही स्पष्ट और व्यवहारिक तथा जटिल है सामान्य इच्छा के संबंध में स्वयं रूसो भी पूर्ण निश्चित नहीं है और वह अपने ग्रंथ सोशल कॉन्ट्रैक्ट में इस संबंध में कई विरोधी वाली बात करता है सामान्य इच्छा का निवास कहां है इसके बारे में भी निश्चित नहीं है और ना ही रूसो ने सामान्य इच्छा का भौतिक रूप प्राप्त करने के लिए कोई साधन ही बताया है ।

2 रूसो का सामान्य इच्छा का विस्तार यथार्थ और आदर्श इच्छा के अंतर पर आधारित है जबकि आदर्श इच्छा तथा आदर्श इच्छा का अंतर व्यवहार में संभव नहीं है मानव में सदैव व्यक्तिगत स्वार्थ और लोकहित की जो प्रवृत्ति पाई जाती है उसे एक दूसरे से पूरी तरह अलग करना संभव नहीं है और यदि इन दोनों इच्छाओं में ऐसा कोई विभाजन कर भी लिया जाए तो यह निर्णय करना असंभव है कि कौन सी इच्छा यथार्थ है और कौन सी आदर्श ।

3 सामान्य इच्छा का विचार सामान्य हेतिया सार्वजनिक हित पर आधारित है लेकिन सामान्य हित की परिभाषा देना बहुत कठिन है सार्वजनिक क्षेत्र की व्याख्या हर कोई अपने अपने ढंग से कर सकता है और किसी भी कार्य के पूर्ण होने के पहले यह कैसे कहा जा सकता है कि कोई कार्य उचित है या अनुचित ।

4 सामान्य इच्छा का सिद्धांत बहुत ही भयावह है एक प्रकार से देखा जाए तो सामान्य इच्छा का प्रतिपादन का उद्देश्य जनता के अधिकारों की रक्षा करना है लेकिन यह धारणा कभी निरंकुश और अत्याचारी राज्य की पोषक भी बन सकती है दूसरों के सिद्धांत में व्यक्ति अपने समस्त अधिकार सामान्य इच्छा को समर्पित कर देता है जो सर्वोच्च शक्ति के रूप में व्यक्ति पर शासन करती है और किसी भी परिस्थिति में जनता को समाज के विरोध का अधिकार नहीं है तो ऐसी स्थिति में शासक वर्ग अपने स्वार्थ को ही सामान्य इच्छा का रूप दे सकता है और कहीं ना कहीं सामान्य इच्छा की धारणा निरंकुशता विवाद तथा अधिनायकवाद के पोषक का यंत्र बन जाता है ।

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5 रूसो का मानना है कि सामान्य इच्छा की सिद्धि के लिए सभी व्यक्तियों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सक्रिय रूप से भाग लिया जाना चाहिए लेकिन यह छोटे राज्यों में भले ही सफल हो सके पर आधुनिक विशाल और विविध खेतों से परिपूर्ण जनसंख्या वाले राज्यों में सफल नहीं हो सकता और वर्तमान समय में प्रतिनिधि आत्मक प्रजातंत्र में कतई संभव नहीं हो सकता है पुरुषों द्वारा प्रतिनिधित्व के सिद्धांत की अवहेलना एक प्रकार से लोकतंत्र की अवहेलना करना है ।

6 इसके अलावा रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धांत की गंभीर आलोचना यह है कि रूसो की सामान्य इच्छा ना तो सामान्य है और ना इच्छा ही की बल्कि एक निराधार और अमूर्त चिंतन मात्र है ।

तो दोस्तों इस Post में हमने जाना रूसो का सामान्य इच्छा के सिद्धांत के बारे में । (Conception of General Will of Rousseau) उसका अर्थ, विशेषताएं, महत्व और आलोचनाओं के बारे में । अगर आपको Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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