राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां

Emergency Powers of President it’s Importance and Criticism

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां, आलोचना और महत्व

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करेंगे राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों के बारे में और साथ ही साथ जानेंगे इसकी आलोचना और शक्तियों का महत्व । इससे पहले वाली Post में हमने जाना कि ‘राष्ट्रपति का चुनाव कैसे किया जाता है और राष्ट्रपति की शांतिकालीन शक्तियों’ के बारे में । अगर आप राष्ट्रपति का चुनाव और शांतिकालीन शक्तियों के बारे में जानना चाहते हैं, तो link पर Click करें ।

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परिचय : आपातकाल की व्यवस्था

किसी देश में  सामान्य जीवन के  दौरान उत्पन्न कोई संकट या आपत्ति (Emergency Situation) को आपातकाल कहते हैं । प्रत्येक देश में आपातकाल का सामना करने के लिए एक विशेष व्यवस्था की जाती है । उदाहरण के लिए इंग्लैंड में राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाता है तथा अमेरिका में राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं । इसी प्रकार भारत में भी आपातकाल का सामना करने का दायित्व राष्ट्रपति को सौंपा गया है । राष्ट्रपति गृह युद्ध, बाहरी आक्रमण, संवैधानिक संकट, वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर संपूर्ण राष्ट्र या राष्ट्र के किसी भी भाग में आपातकाल की घोषणा करने की शक्ति रखता है । भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 से लेकर 360 तक निम्नलिखित प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था की गई है ।

1 आक्रमण या सशस्त्र होने की स्थिति (अनुच्छेद 352)

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 में यह व्यवस्था की गई है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि संपूर्ण भारत अथवा भारत के किसी एक भाग की सुरक्षा, युद्ध या आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में हैं, तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति संपूर्ण भारत अथवा उसके किसी भी भाग में आपातकाल लागू कर सकता है । परंतु इसके लिए मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश का होना आवश्यक है । यह घोषणा संसद की स्वीकृति के बिना केवल 1 महीने तक लागू रह सकती है ।

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यदि संसद राष्ट्रपति शासन को स्वीकृति प्रदान कर देती है, तो छह- छह महीने करके इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है । लोकसभा भंग होने की स्थिति में राज्यसभा की अनुमति आवश्यक है । क्योंकि राज्यसभा एक स्थाई सदन है । ऐसी स्थिति में उसे संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिए राज्य सूची में शामिल किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है ।

लोकसभा जब बहुमत से आपातकाल समाप्ति की घोषणा कर दे, तो यह घोषणा समाप्त हो जाती है । आपातकाल के समय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना संभव नहीं है । इसलिए आपातकाल की घोषणा होने पर लोकसभा की अवधि 2 वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकती है । परंतु आपातकाल समाप्त होने के पश्चात 6 महीने के अंदर दोबारा चुनाव कराना आवश्यक है । 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय इस प्रकार का आपातकाल लागू किया गया था ।

घोषणा का प्रभाव

अनुच्छेद 352 के अंतर्गत की गई आपातकाल की घोषणा का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है ।

अ) संसद की राज्य सूचियों में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है |

ब) केंद्र सरकार राज्य सरकार को निर्देश दे सकती है ।

स) मौलिक अधिकारों में जीवन व दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य सभी स्वतंत्रता समाप्त हो जाती हैं ।

द) अनुच्छेद 32 में वर्णित संवैधानिक उपचारों का अधिकार भी स्थगित कर दिया जाता है ।

इ) लोकसभा की अवधि 6-6 महीने करके बढ़ाई जा सकती है । परंतु आपातकाल समाप्त होने के पश्चात 6 महीने के अंदर अंदर नए चुनाव कराना जरूरी है ।

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2 राज्य में संवैधानिक अवस्था विफल होने पर (अनुच्छेद 356) ।

अनुच्छेद 356 में यह है बताया गया है कि यदि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजें अथवा राष्ट्रपति स्वयं यह अनुभव करें कि किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था विफल हो चुकी है और संविधान के अनुसार कानून चलाना संभव नहीं है । तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति संवैधानिक संकट की घोषणा करके वहां का शासन अपने हाथ में ले सकता है । यह संसद की स्वीकृति के बिना 2 महीने तक जारी रह सकता है, तथा इस अवधि को संसद की स्वीकृति के बिना छह-छह महीने करके आगे बढ़ाया जा सकता है ।

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इस प्रकार आपातकाल की घोषणा अक्सर देखने को मिलती है । जैसे कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति खराब होने के कारण उत्तर प्रदेश सरकार को भंग कर दिया गया था और राष्ट्रपति का शासन लागू कर दिया गया था ।

घोषणा का प्रभाव

अ) संकट काल के दौरान उस राज्य के लिए कानूनों का निर्माण संसद द्वारा किया जाता है ।

ब) उस राज्य की संपूर्ण शासन व्यवस्था पर राष्ट्रपति का नियंत्रण हो जाता है ।

स) राज्य की संपूर्ण शक्ति पर राष्ट्रपति का नियंत्रण हो जाता है ।

द) इस घोषणा का उच्च न्यायालय की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

3 वित्तीय संकट की स्थिति में आपातकाल (अनुच्छेद 360) ।

अनुच्छेद 360 के अंतर्गत कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि भारत अथवा उसके किसी भाग में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है । तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है । यह घोषणा संसद की स्वीकृति के बिना 2 महीने तक चलती है तथा संसद की स्वीकृति के बाद अनिश्चितकाल तक चल सकती है ।

घोषणा का प्रभाव

अ) सार्वजनिक कर्मचारियों व न्यायाधीशों के वेतन में कटौती की जा सकती है ।

ब) केंद्र सरकार राज्य सरकारों को वित्तीय मामलों पर विशेष निर्देश दे सकती है ।

स) राष्ट्रपति राज्यों के धन विधायकों को अपनी स्वीकृति के लिए मंगा सकता है ।

राष्ट्रपति की शक्तियों की आलोचना

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां शुरू से ही आलोचना का विषय रही है । यह शक्तियां संघवाद और लोकतंत्र के विपरीत हैं । तथा इनमें राष्ट्रपति के निरंकुश होने का भय रहता है । नागरिकों के मौलिक अधिकार स्थगित हो जाते हैं । जिससे उनका विश्वास रुक जाता है । आपातकालीन शक्तियों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जा सकती है ।

A) संघात्मक शासन के विरुद्ध

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्ति संस्थागत शासन के विरुद्ध हैं । इन शक्तियों के द्वारा संगठनात्मक शासन का ढांचा नष्ट हो जाता है तथा शासन की संपूर्ण शक्ति केंद्र सरकार के पास चली जाती है । राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है और राज्य सरकारें केंद्र की प्रत्येक बात को मानने के लिए बाध्य हो जाती हैं ।

B) लोकतंत्र के विरुद्ध

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां लोकतंत्र के विरुद्ध हैं क्योंकि इन शक्तियों के कारण जनता की चुनी हुई सरकार भंग हो जाती है नागरिकों के मौलिक अधिकार स्थगित हो जाते हैं तथा स्वतंत्र समय समाप्त हो जाती हैं और संवैधानिक उपचारों का मौलिक अधिकार भी स्थगित कर दिया जाता है इसलिए आपातकाल लोकतंत्र के विरुद्ध है |

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C) संसदीय शासन के विरुद्ध

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां संसदीय शासन प्रणाली के विरुद्ध हैं । क्योंकि संसदीय शासन में राष्ट्रपति औपचारिक प्रधान होता है । परंतु आपातकालीन शक्तियां राष्ट्रपति की शक्ति में वृद्धि कर देती हैं । जिससे वह वास्तविक शासक बन जाता है । जो संसदीय शासन के लिए उचित नहीं है ।

D) तानाशाही का भय

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों के बारे में आलोचकों का कहना है कि आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति इतनी शक्तियां प्राप्त कर लेता है कि वह तानाशाही बन जाता है । वह 2 माह तक संसद की स्वीकृति के बिना आपातकाल को जारी रख सकता है । वह संकट की आशंका से ही आपातकाल की घोषणा कर सकता है । जिसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती । अतः इस अवस्था में तानाशाही की झलक देखने को मिलती है ।

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E) राज्यों की स्वायत्तता का अंत

आपातकाल की स्थिति में राज्यों पर राष्ट्रपति का नियंत्रण हो जाता है तथा राज्यों में आपातकाल के कारण सरकार भी निष्क्रिय हो जाती है । आलोचकों का मानना है कि वित्तीय आपातकाल से राज्य की वित्तीय स्वायत्तता नष्ट हो जाती है । क्योंकि राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल के दौरान राज्य सरकारों को विशेष निर्देश दे सकता है । जिसे राज्यों को स्वीकार करना ही होगा । इस प्रकार आपातकाल में राज्यों की स्थिति केंद्र की अपेक्षा बहुत कम हो जाती है ।

F) विरोधी दलों को दबाने का प्रयास

आलोचकों का मानना है कि आपातकाल के दौरान सरकार विरोधी दल को दबाने का प्रयास करती है, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है । जब किसी राज्य में विरोधी दल की सरकार बन जाती है, तो केंद्र सरकार वहां राष्ट्रपति शासन लागू करने का भरपूर प्रयास करती है । जैसे 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर विरोधी दल के नेताओं को जेल में बंद करा दिया था ।

आपातकालीन शक्तियों का महत्व या औचित्य

1 राष्ट्र की सुरक्षा के लिए जरूरी

आपातकालीन शक्ति का महत्व इस बात से प्रकट होता है कि देश की सुरक्षा आवश्यक सभी परिस्थितियों से अधिक महत्वपूर्ण है तथा राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का उद्देश्य संगठनात्मक ढांचे को नष्ट करना ना होकर राष्ट्र की रक्षा करना है तथा संघात्मक ढांचे के स्थान पर राष्ट्र की सुरक्षा अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण है ।

2 राष्ट्रपति का तानाशाह बनना असंभव

भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई है । अतः आपातकालीन स्थिति में राष्ट्रपति का तानाशाह बनना संभव नहीं होगा । क्योंकि संसदीय शासन के कारण वह प्रत्येक कार्य संसद की स्वीकृति से करता है और सरकार चलाने के लिए उसे बजट भी संसद में पारित करना होता है । अतः राष्ट्रपति के निरंकुश बनने की संभावना ना के बराबर है ।

3 आर्थिक संकट के समय आवश्यक

आर्थिक संकट का सामना करने के लिए भी केंद्रीय सरकार की शक्तियां में वृद्धि करना जरूरी है । क्योंकि राज्य सरकार ने वित्तीय संकट को दूर कर पाने में समर्थ नहीं होती और अधिकतर आर्थिक गतिविधियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है । अध्ययन संपूर्ण राष्ट्र अथवा भारत के किसी एक बार को आर्थिक संकट से निकालने के लिए वित्तीय आपातकाल का प्रावधान अत्यंत आवश्यक है ।

4 मौलिक अधिकारों की अपेक्षा राष्ट्र महत्वपूर्ण

आपातकालीन शक्तियों की इस आधार पर आलोचना करना ठीक नहीं है कि इनके कारण मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया जाता है । क्योंकि संकट काल के दौरान व्यक्तिगत अधिकारों की अपेक्षा राष्ट्र की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण होती है ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि राष्ट्र की सुरक्षा के लिए तथा राष्ट्र को संकट से निकालने के लिए राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां महत्वपूर्ण और उचित है ।

तो दोस्तो ये थी राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां, आलोचना और महत्व । अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । राजनीति विज्ञान से सम्बंधित Videos के लिए आप हमारे Youtube channel पर भी जा सकते हैं । तब तक के लिए धन्यवाद !!

This Post Has 2 Comments

  1. Shafaque

    Very nice sir aap bhut easy way m defined kiye h

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