राजनीति में साम्प्रदायिकता

Communalism in Indian Politics

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, एक महत्वपूर्ण Topic, जो है । राजनीति में सांप्रदायिकता यानी Communalism in Indian Politics.

भारत में सांप्रदायिकता का इतिहास लगभग 100 साल पुराना है । बीसवीं शताब्दी के शुरू में भारत में सांप्रदायिकता का उदय हो चुका था । इसके बाद सांप्रदायिकता की राजनीति, बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिकता देश की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है और वर्तमान में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है । सबसे पहले हम सांप्रदायिकता का अर्थ जानते हैं ।

साम्प्रदायिकता का अर्थ

सांप्रदायिकता का अर्थ होता है । अपने धर्म को बेहतर समझना और दूसरे धर्मों के लोगों से नफरत की भावना रखना । इसी सोच को सांप्रदायिकता कहते हैं । सांप्रदायिकता के कारण व्यक्ति अपने राष्ट्रीय हितों की जगह अपने धार्मिक हितों को अधिक महत्व देता है और खुद को राष्ट्र से पृथक मानता है ।

सांप्रदायिकता का उदय

भारत में सांप्रदायिकता के उदय के कई कारण हैं । बीसवीं शताब्दी के शुरू में बंगाल विभाजन, मुस्लिम लीग की स्थापना और हिंदू महासभा को सांप्रदायिकता की उदय का कारण माना जाता है । इसके बाद 1909 में मुसलमानों को अलग प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देना, मुस्लिम लीग का पाकिस्तान का प्रचार और धर्म के नाम पर देश के बंटवारे से सांप्रदायिकता को और भी तेजी से बढ़ावा मिला । आजादी के बाद भी सांप्रदायिकता एक गंभीर समस्या बनी हुई है ।

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अगर भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर नजर दौड़ाई तो हम जान सकते हैं कि सांप्रदायिकता कितना गंभीर मुद्दा है । गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग 5000 सांप्रदायिकता की हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं । 1977 तक जितनी भी हिंसात्मक घटनाएं हुई उनमें से 11.6% सांप्रदायिकता की वजह से हुई । 1982 में यह प्रतिशत बढ़ गया था । 17.6% हो गया और 1982 के बाद तेजी से बड़ा और 50% तक हो गया ।

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इस तरीके से सांप्रदायिकता की समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है । देश में 61 जिलों को गड़बड़ी वाला गड़बड़ी वाला इलाका माना गया था । 1990 में ऐसे जिलों की संख्या 100 तक पहुंच गई और इनमें से 36 जिले अकेले उत्तर प्रदेश में थे । यूपी में मेरठ जिला सबसे ज्यादा संवेदनशील है । जहां पर अब तक 12 बड़े-बड़े सांप्रदायिक दंगे हो चुके हैं और सबसे भयंकर दंगे 1987 में मेरठ में ही हुए थे । गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक और भी कई सांप्रदायिक घटना हुई है । 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराया गया । जिससे देश में बहुत बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए । जनवरी 1993 में मुंबई में हिंसा भड़क उठी । जिसमें 600 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 50 हज़ार लोग बेघर हो गए थे और 2.5 लाख लोग भुखमरी का शिकार हो गए ।

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गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी और मार्च 2002 में गुजरात में दंगे हुए, जिसमें 692 लोग मारे गए । 58 लोग जिंदा जला दिए गए हालांकि इसके बाद भी छोटी मोटी सांप्रदायिक घटनाएं होती रही हैं । लेकिन इस तरह की घटना कब बड़ा रूप ले ले, यह पक्का नहीं कहा जा सकता ।

भारत मे साम्प्रदायिकता के उदय के कारण

भारत में सांप्रदायिकता के उदय के कई कारण माने जाते हैं । जिसमें सबसे पहला कारण है, ब्रिटिश नीतियां और पाकिस्तान का निर्माण । भारत में अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति के जरिए हिंदू मुस्लिम एकता को खत्म कर दिया और धर्म के नाम पर देश का बंटवारा हुआ । जिससे सांप्रदायिकता तेजी से बढ़ती चली गई और काफी सारे धार्मिक संगठन बढ़ने लगे थे । आजादी के बाद बीसवीं शताब्दी में कई धार्मिक संगठनों ने जैसे मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, राष्ट्रीय स्वसेवक संघ (R.S.S.) । इन संगठनों ने धार्मिक घृणा को बढ़ावा दिया जैसे मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग की और हिंदू महासभा ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास किया । इस तरीके से हिंदू और मुसलमान के संबंध बिगड़ने लगे । जिससे सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला और पाकिस्तान का प्रचार भी भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है ।

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भारत और पाकिस्तान के संबंध शुरू से ही तनावपूर्ण रहे हैं और पाकिस्तान ने भारत विरोधी गतिविधियों को हमेशा बढ़ावा दिया है और भारतीय मुसलमानों को आकर्षित करने का प्रयास किया है । इसलिए बहुत सारे हिंदू लोगों के मन में यह गलतफहमी बैठ जाती है कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान की वफादारी करते हैं । जिससे भारत में सांप्रदायिकता को तेजी से बढ़ावा मिलता है और बीच-बीच में होने वाले दंगे फसाद में भी सांप्रदायिक को तेजी से बड़ा मिलता है । जैसे 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई । जनवरी 1993 में मुंबई में  हिंसा हुई और 2002 में गुजरात में दंगे हुए थे । 2013 में मुजफ्फरनगर के अंदर धार्मिक दंगे भड़क उठे थे । इस तरीके से भारत में बीच-बीच में होने वाले दंगे फसाद सांप्रदायिकता को और भी तेजी से बढ़ा दिया है और यह घटना कब बड़ा रूप धारण कर ले यह कोई नहीं कह सकता ।

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दोस्तों हमने यह जाना कि सांप्रदायिकता से कितने सारे नुकसान होते हैं । कितने सारे लोग मारे जाते हैं । तो अब जानते हैं ।

साम्प्रदायिकता को खत्म करने के तरीके

सांप्रदायिकता को खत्म करना बहुत जरूरी है । सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए 3 तरीके हैं ।

1 शिक्षा

2 प्रचार और

3 कानून

शिक्षा के द्वारा सांप्रदायिकता के खिलाफ लोगों को शिक्षा दी जा सकती है । स्कूल में किताबों में के जरिए, कॉलेज में या शिक्षा संस्थाओं के द्वारा सांप्रदायिक की कमियों को पढ़ाया जा सकता है । ताकि लोग अपने आप सांप्रदायिकता से नफरत करने लगे ।

दूसरा है प्रचार । सांप्रदायिकता के खिलाफ प्रचार किया जा सकता है । कुछ ऐसी कहानियां बताई जा सकती है, जिसमें मुसीबत और मुसीबत के वक्त हिंदू मुसलमानों की मदद के बारे में बताया जा सकता है । इससे मेल जोल को बढ़ावा मिलेगा और सांप्रदायिकता खत्म हो जाएगी । लोगों को नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये, short फ़िल्म और विज्ञापन के जरिये भी लोगों को साम्प्रदायिकता के बारे में कमियों को बताया जा सकता है ।

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तीसरा है, कानून के जरिए । सरकार सख्त कानून बनाकर सांप्रदायिकता को खत्म कर सकती है । जैसे कोई नेता अगर धर्म नाम के नाम पर भाषण देता है या लोगों को भड़काने या उकसाने की कोशिश करता है तो, उसके खिलाफ सरकार सख्त से सख्त कानून बना सकती है । अगर कोई धार्मिक विषयों पर लोगों की शान्ति भांग करता है तो उनके लिये सरकार सख्त कानून बना सकती है, और कानून सभी के लिये बराबर हो किसी को कोई छूट न दी जाए । जिससे नेता या कोई भी इस प्रकार की गतिविधि न करे ।

इस तरीके से भारत में सांप्रदायिकता को खत्म किया जा सकता है । तो दोस्तों आपको यह Post कैसी लगी । अगर अच्छी लगी तो वेबसाइट को Subscribe करें और अपने दोस्तों को शेयर करें तब तक के लिए धन्यवाद !!

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