राजनीति में समानता और इसके प्रकार

Equality and its types in Political Science

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका स्वागत है और आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में समानता के बारे में । साथ ही साथ जानेगे कानूनी समानता, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता के बारे में ।

समानता का अर्थ

हालाँकि समानता को लेकर सभी विचारक एकमत नहीं है, फिर भी सामान्य बोलचाल में समानता का अर्थ बराबरी से लिया जाता है । चूँकि समाज में प्राचीन काल से ही समानता की मांग की जाती रही है । इसके लिए अनेक सैद्धांतिक और बौद्धिक आधार भी प्रस्तुत किए जाते हैं । लेकिन विषमताओं में परिवर्तन के साथ साथ समानता का स्वरूप भी बदला है ।

“आसमान लोगों के साथ समान व्यवहार करना उतना ही अन्यायपूर्ण है, जितना की समान लोगों के साथ आसमान व्यवहार करना ।”

व्यक्ति समाज मे रहता है । समाज के सभी व्यक्तियों का दर्ज़ा एक बराबर हो और सभी को एक समान सुविधाएं मिलें । परंतु यह पूर्णता वास्तविक नहीं है । प्रकृति के हिसाब से सभी मनुष्य एक समान नहीं हैं । सभी की शारीरिक रचना, रंगरूप अलग अलग है । यानी प्रकृति के  आधार पर व्यक्तियों में असमानता पाई जाती है । जिस तरह हाथ की सभी उंगलियां एक समान नहीं हो सकती, उसी प्रकार समाज के सभी व्यक्ति एक समान नहीं हो सकते । समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान संपत्ति मिले । संपत्ति के बंटवारे का आधार भी शारीरिक और बौद्धिक असमानता है । अतः प्रत्येक व्यक्ति को समान संपत्ति नहीं मिल सकती ।

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इस प्रकार लास्की के अनुसार

“समानता मूल रूप से समानीकरण की एक प्रक्रिया है । इसलिए समानता का अभिप्राय विशेष अधिकारों के अभाव तथा सभी व्यक्तियों को विकास हेतु प्राप्त समान अवसरों से है ।”

लास्की ने कहा है कि समाज के अंतर विभिन्नताएं होती है, जो कि प्राकृतिक हैं । और इन भिन्नताओं को स्वीकार करना ही पड़ेगा ।

समानता का वास्तविक अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को अपने विकास के समान अवसर प्राप्त हो तथा जाति, जन्म, संपत्ति, लिंग तथा वर्ण के आधार पर व्यक्तियों में भेद ना किया जाए । राज्य व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के उसके वृद्धि तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए समुचित अवसर प्रदान करें ।

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समानता के लिए तीन बातें या तीन शर्तों का होना महत्वपूर्ण है ।

1 किसी जाति नागरिक समुदाय वर्ग के बीच कोई वैधानिक अंतर नहीं होनी चाहिए ।

2 सभी को विकास के समान अवसर मिलने चाहिए ।

3 सभी को शिक्षा, रहना, खाना व अन्य प्राथमिक सुविधाओं को प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है ।

समानता की व्याख्या करते हुए लास्की ने कहा है कि

“प्रथम समाज में कोई विशेष हित ना हो तो, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता और शक्ति के पूर्ण प्रयोग का समान अवसर प्राप्त हो ।”

प्राचीन काल में ही समानता के सिद्धांत का जन्म हो गया था । जब प्राचीन तथा मध्यकालीन युग में संपन्न तथा विशेष अधिकारों से युक्त वर्ग के अधिकारों का विरोध हुआ । प्राचीन काल में समानता की मांग सोफिस्ट तथा स्ट्राइक चिंतन में मिलती है । मध्य युग में समानता की जो धारणा दी गई है । वह आध्यात्मिक तथा आलोकित थी । क्योंकि राज्य तंत्र तथा कुलीन तंत्र के कारण समानता दूर की बात थी । अतः केवल यह ईश्वर के समक्ष समानता तक ही सीमित रही ।

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आधुनिक काल में समानता के विचार का प्रारंभ अमेरिकी क्रांति 1776 तथा फ्रांस की क्रांति 1789 की देन है । अमेरिकी स्वतंत्रता घोषणापत्र में कहा गया है कि

“हम इस सत्य को सत्य स्वीकार करते हैं कि सभी मनुष्य समान हैं ।”

फ्रांसीसी क्रांति ने नारा दिया कि

“मनुष्य स्वतंत्र और सम्मान उत्पन्न हुए हैं तथा वे अपने अधिकारों के विषय में भी स्वतंत्र और समान हैं ।”

इसमें तीन प्रमुख आदर्श स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व का नारा दिया, जो आगे के आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा सूत्र के रूप में उपस्थित हुआ ।

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उल्लेखनीय है कि 18 सदी तक समानता की धारणा मुख्यत कानूनी पक्ष तक ही सीमित थी । पूंजीवाद की उत्पत्ति ने तो असमानता के दायरे को और भी बढ़ा दिया । आर्थिक समानता की मांग के साथ राजनीतिक समानता की भी मांग की गई ।18

आइए अब जानते हैं समानता के रूप के बारे में ।

समानता को नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों रूपों में व्यक्त किया जा सकता है ।

नकारात्मक रूप में समानता

इससे अभिप्राय यह है कि विशेष अधिकारों का ना होना । अर्थात किसी व्यक्ति को जाति, धर्म, भाषा के आधार पर कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिए । इसका तात्पर्य यह है कि समानता नहीं है । क्योंकि सभी व्यक्ति एक समान नहीं हो सकते । हर व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उस में अंतर पाया जाता है । यहां तक कि उनकी आवश्यकताएं भी अलग-अलग होती हैं । इस तरह किसी भी विषमता को वही तक दूर करने की मांग की जाती है । जहां तक वह अनुचित तथा अन्याय पूर्ण प्रतीत होती है ।

सकारात्मक रूप में समानता

समानता का वास्तविक रूप सकारात्मक है । इसमें प्राकृतिक असमानताओं को स्वीकार करते हुए, सामाजिक विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है । इस तरह सकारात्मक समानता से अभिप्राय है कि सभी व्यक्तियों को अपने विकास के पूर्ण समान अवसर प्राप्त हो । सकारात्मक स्वतंत्रता केवल विशेष अधिकारों की समाप्ति नहीं है, बल्कि व्यक्तियों को समान अवसर तथा सुविधाएं प्राप्त कराने से है, ताकि उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास हो सके ।

समानता के सिद्धांत को जीवन के सभी क्षेत्रों पर समान रूप से लागू किया जा सकता है । इसके निम्नलिखित आयाम है ।

कानूनी समानता

आधुनिक युग में कानूनी समानता की मांग ही सबसे पहले समानता के अधिकार के अंतर्गत की गई । कानूनी अधिकारों की मांग मध्यम वर्ग द्वारा की गई । जो विशेष अधिकार वंशानुगत असमानता के विरुद्ध थे । इनका विश्वास था कि यदि राज्य इन विषमताओं को दूर कर देता है, तो व्यक्तिगत हित का रास्ता साफ हो सकता है ।

कानूनी समानता के दो पक्ष हैं ।

1 कानून के समक्ष समानता तथा

2 कानून के समान संरक्षण

कानून के समक्ष समानता का मतलब है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए समान कानून बनाएगा तथा उन्हें उन को समान रूप से लागू करेगा । डायसी ने इसे स्पष्ट किया है कि

“कानून के समक्ष समानता का अर्थ है यह है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति कानून के उल्लंघन का समान रूप से दोषी होगा चाहे वह प्रधानमंत्री हो या साधारण नागरिक ।”

इस प्रकार कानूनी समानता का अर्थ है कि सभी नागरिक समान रूप से कानून के अधीन होंगे और सभी को कानून का समान संरक्षण प्राप्त होगा ।

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इसी प्रकार कानून के समान संरक्षण का आशय यह है कि राज्य किसी वर्ग विशेष के लिए कोई कानून न बनाएं तथा सभी व्यक्तियों को कानून का समान संरक्षण प्राप्त हो । कानून के प्रयोग में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाए । परंतु यदि किसी विशेष अवसर के लिए कानून की आवश्यकता हो तो राज्य उसका निर्माण कर सकता है । परंतु उसे समान रूप से लागू होना चाहिए राज्य तर्कसंगत आधार पर भेदभाव कर सकता है । परंतु शर्त यह है कि यह भेदभाव समानता लाने में सहायक होनी चाहिए । उस का हनन करने के लिए नहीं ।

स्पष्ट है कि कानूनी न्याय लाने के लिए कानूनी समानता एक हथियार है । परंतु अशिक्षा, गरीबी तथा न्याय प्रक्रिया खर्चीली होने के कारण अनेक लोग न्याय पाने से वंचित रह जाते हैं । अतः जब तक घोर विषमता व्याप्त रहेंगी तथा तब तक कानून के समान संरक्षण का लक्ष्य अधूरा रहेगा । यह तभी सार्थक होगा जब गरीबी के आधार पर कोई सुनवाई से वंचित ना रहे ।

राजनीतिक समानता

राजनीतिक समानता का अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो । जैसे मत देने, शासन प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार । समाज में कोई ऐसा विशेष अधिकार युक्त वर्ग नहीं होगा, जिसका संपूर्ण शासन व्यवस्था पर अधिकार हो । इस प्रकार यह जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक समानता की प्राप्ति केवल लोकतंत्र में ही की जा सकती है ।

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लोकतंत्र की स्थापना से पूर्व व्यक्तियों के राजनीतिक अधिकार विद्वान नहीं थे, क्योंकि शासन पर किसी विशेष वर्ग का अधिकार था तथा सभी नागरिक नागरिकों को शासन तथा निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं था । क्योंकि लोकतंत्र जनता का शासन है । अतः इसमें लोगों को समान रूप से मत देने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक नियुक्तियों तथा विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के माध्यम से राजनीतिक समानता संभव हो सके ।

क्योंकि राजनीतिक समानता का विचार प्रारंभ से ही उदारवादी लोकतंत्र की स्थापना के साथ हुआ । परंतु यह सिद्धांत जिस रूप में है । व्यवहार में उतनी प्रभावी नहीं है । क्योंकि सभी लोग राजनीति में भागीदारी नहीं करते और ना ही उनकी स्थिति को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित करती है । जिसके कारण शासन पर एक विशेष वर्ग का प्रभुत्व हो जाता है । साथ ही पूंजीवाद के उदय ने पूंजी पतियों को चुनावों में उन लोगों को जिताने के लिए प्रेरित किया । जिससे उनके आर्थिक हितों की पूर्ति हो सके । इस प्रकार व्यापक सामाजिक और आर्थिक विषमता के कारण राजनीतिक समानता का अधिकार केवल एक कोरी कल्पना मात्र बनकर रह जाता है ।

सैद्धान्तिक रूप से उदारवादी लोकतंत्र में सत्ता रहती तो किसी और के पास है परंतु उसको पूंजीपति ही चलाते हैं ।

सामाजिक आर्थिक समानता

सामाजिक आर्थिक समानता की दृष्टि में समानता के सामाजिक आर्थिक पक्ष एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं । यदि कानूनी राजनीतिक समानता का विचार आरंभिक उदारवाद का नारा था, तो सामाजिक आर्थिक समानता का विचार समाजवाद के लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया ।

सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में रहने वाले व्यक्तियों के आपसी संबंधों में समानता का पालन किया जाए । प्रत्येक व्यक्ति समाज की सम्मानित इकाई है । अतः इसमें किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए । परंतु ऐतिहासिक तौर पर यह बात सत्य है कि समाज में किसी भी समय समानता नहीं रही है और विषमता ही सदैव विद्यमान रही हैं । परंतु जैसे-जैसे मानवीय चेतना का विकास हुआ । तो स्पष्ट हुआ कि यह विषमता मानव निर्मित है । अतः सामाजिक समानता को लाया जा सकता है और लाया जाना चाहिए । इसके लिए राष्ट्रीय स्तर तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक प्रयास किए गए हैं । 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानव अधिकारों की घोषणा इसी दिशा में प्रयास था । और संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) इस दिशा की ओर अग्रसर है ।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना, अंग और उद्देश्य के लिए Click करें ।

तो दोस्तों ये था राजनीति विज्ञान में समानता के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद ।।

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