मार्क्स का वर्ग संघर्ष सिद्धान्त

Conflicts Theory of Marx

Hello दोस्तो Gyaanuday में आपका स्वागत है, आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष सिद्धांत के बारे में । (Conflicts Theory of Karl Marx in Hindi). यह Topic B.A. Political Science के विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । इस Post में हम जानेंगे वर्ग संघर्ष का अर्थ, उसकी विशेषताएं और वर्ग संघर्ष की प्रमुख आलोचनाओं के बारे में । तो शुरू करते हैं आसान भाषा में ।

मार्क्स के अनुसार राजनीति वर्ग संघर्ष को रोकती है और वर्ग संघर्ष की वजह से ही राजनीति पैदा हुई है । मार्क्स की विचारधारा में वर्ग संघर्ष की धारणा को विशेष महत्व दिया गया है । साम्यवादी घोषणा पत्र ( Communist Manifesto) के अनुसार-

“आज तक के संपूर्ण समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है ।”

मार्क्स ने राजनीति को आर्थिक और भौतिक दोनों ही संदर्भों में स्पष्ट किया है । मार्क्स ने इतिहास की आर्थिक व्याख्या या आर्थिक नियतिवाद के सिद्धांत में वर्ग संघर्ष की धारणा का प्रतिपादन किया था । समाज में हमेशा ही विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहा है । मार्क्स के अनुसार एक वर्ग वह है, जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है । स्वामित्व वर्ग सदैव दूसरे वर्ग का शोषण करता रहता है और यह समाज के शोषक और शोषित वर्ग सदा ही आपस में संघर्ष करते रहते हैं ।

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वर्ग संघर्ष क्या है ? What is Class Conflicts ?

वर्ग व्यक्तियों के उस समूह को कहते हैं, जो उत्पादन (Production) की किसी विशेष प्रक्रिया में लगा हुआ हो और जिसके उद्देश्य और साधारण हित एक हो ।

मार्क्स के इस सिद्धांत के अनुसार समाज में दो वर्ग बताये गए हैं । पहला उत्पादन (Production) वर्ग तथा दूसरा वितरण (Distribution) वर्ग । जो अपने विरोधी हितों के कारण परस्पर संघर्ष करते रहते हैं । वर्गों के रूप में भले ही अंतर आता रहे किंतु समाज में एक वर्ग उत्पादन के साधनों भूमि और पूंजी पर अधिकार रखता है । इसे जमीदार या पूंजीपति वर्ग कहते हैं । दूसरा उन पर आश्रित रहने वाला तथा कठोर परिश्रम करने वाला वर्ग यानी मज़दूर का होता है ।

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इस तरह से पहला वर्ग दूसरे वर्ग के शोषण करता है और फायदा उठाता है तथा मज़दूर वर्ग का शोषण करता है । वही दूसरा वर्ग मेहनत मजदूरी करने के बावजूद जीवन की अनिवार्य आवश्यकता पूरी करने के साधन नहीं जुटा पाता है और लगातार शोषित होता रहता है । इस तरह से पहले वर्ग को शोषक (फायदा उठाने वाला) और दूसरे को शोषित (मज़दूरी करने वाला) वर्ग कहा जा सकता है ।

उत्पादन की करने की इस प्रणाली में समाज में हमेशा ऐसे दो विरोधी गुट पैदा हो जाते है । जिसके कारण हमेशा होते हैं । पूंजीपति तथा श्रमिक दोनों को एक दूसरे की जरूरत होते हुए भी इनके हितों में परस्पर टकराव होता रहता है । पूंजीपति स्वाभाविक रूप से श्रमिकों को कम से कम मजदूरी देना चाहता है । जिससे उसे अधिक से अधिक लाभ हो और मजदूर अधिक से अधिक मजदूरी लेना चाहता है । खेतों में परस्पर विरोध के कारण दोनों में संघर्ष आरंभ हो जाता है । यही वर्ग संघर्ष का आधार है और इसी कारण वर्ग संघर्ष हमेशा से चला आ रहा है ।

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इस तरह से शक्तिशाली लोग जब संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेते हैं । तो उसके बाद वह गरीब और कमज़ोर वर्ग से लाभ उठाते हैं । जनता एक दूसरे का विरोध करते तथा अन्य वर्ग सभी मुक्त करता था । कभी खुलकर संघर्ष चलाते रहे हैं । इस संघर्ष की परिणति या तो हर बार समाज क्रांतिकारी पुनर्निर्माण से हुई है या संघर्ष करने वाले वर्गों के सर्वनाश से । कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष मनुष्य के जीवन के साथ चलने वाली प्रक्रिया है ।

कार्ल मार्क्स की इस धारणा के अनुसार वर्ग संघर्ष के द्वारा पूंजीवाद अपने अंत की ओर जा रहा है । मार्क्स के अनुसार पूंजीवादी प्रणाली में स्वयं अपने विनाश के बीज बो रहा हैं । जो उसके कर्म के अनुसार उसे मिलने वाला है ।

पूंजीवादी प्रणाली में उद्योगों में उत्पादन अधिक हो जाने पर इसकी खपत के लिए दूसरे देशों में मंडियां तलाश की जाती हैं । विकसित पूंजीवादी देशों के पूंजीपति दूसरे देशों में भी निवेश करते हैं । जिसके कारण पूंजीवाद विश्वव्यापी और अंतरराष्ट्रीय रूप ग्रहण कर लेता है ।

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क्योंकि हर पूंजीपति अधिक से अधिक उत्पादन करके उसपे लाभ अर्जित करना चाहता है । जिसके कारण धन कुछ ही व्यक्तियों तक सीमित हो जाता है । इस तरह से पूंजीपतियों की संख्या में लगातार कमी तथा श्रमिकों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है । पूंजीपति अपने आर्थिक लाभों के कारण एक ही स्थान पर अधिक से अधिक उद्योग लगाते हैं । श्रमिकों के एक साथ काम करने से श्रमिक संगठित होते हैं तथा उनमें वर्गीय चेतना का विकास होता है । जब यह मजदूर संगठन बड़ा होता है, तो यह पूंजीवादी प्रणाली के विरुद्ध हो जाता है ।

अंत में जैसे-जैसे श्रमिक वर्ग की शक्ति में वृद्धि होती है और पूंजीवादी शक्ति का ह्रास होता है । तो यह संघर्ष एक क्रांति का रूप धारण कर लेता है । यह संघर्ष पहले राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय होता जाता है । पूंजीवादी वर्ग को पराजित कर श्रमिक वर्ग स्थाई रूप से अपना अधिनायकत्व स्थापित कर लेता है ।

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यह सार्वभौमिक सत्य है कि सभी देशों के श्रमिक समान रूप से पूंजीवाद के शोषण और अत्याचारों से पीड़ित होते हैं । इस कारण श्रमिक आंदोलन बहुत अधिक संगठित हो जाता है, तो पूंजीवाद इस संगठित आंदोलन के सामने टिक नहीं पाता है और इस प्रकार पूंजीवाद स्वयं अपने विनाश का कारण बन जाता है और इस प्रकार श्रमिक वर्ग का जो संघर्ष होता है । वह अनिवार्य रूप से पूंजीवाद का विनाश और श्रमिक वर्ग के विजयी बनाने में लगा रहता है ।

कार्ल मार्क्स का विश्वास था कि जब श्रमिक वर्ग पर अत्याचार अधिक हो जाएगा तब धीरे-धीरे पूंजीपति वर्ग के अंतिम अवशेष हुई समाप्त कर दिए जाएंगे और उसके पश्चात एक वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज की स्थापना होगी । इसके लिए मार्क्स क्रांति की कल्पना करता है और मार्क्स के अनुसार वास्तविक समाजवाद की स्थापना के लिए श्रमिक वर्ग की क्रांति का होना एक मुख्य शर्त है ।

वर्ग संघर्ष सिद्धांत की आलोचना

आइए अब जानते हैं, वर्ग संघर्ष की आलोचना के बारे में । इतिहास को समझने तथा सामाजिक विकास की प्रक्रिया को समझने के लिए मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है । परंतु इसकी कई आधारों पर आलोचना भी की गई है । जो कि निम्नलिखित है ।

1) कार्ल मार्क्स की इस धारणा को नहीं स्वीकार किया जा सकता । क्योंकि संघर्ष ही सामाजिक जीवन का मूल तत्व है । मानव जीवन का संचालन तत्व संघर्ष ना होकर प्रेम, सहयोग और सामाजिक भावना है । जो कि मार्क्स की एक बहुत बड़ी भूल है । उसने एक पक्ष के ऊपर ज़ोर दिया है ।

2) मार्क्स की इस धारणा में एक कमी यह भी है कि उसने सामाजिक और आर्थिक दोनों वर्गों को एक ही माना है, जबकि वर्गों को केवल आर्थिक आधार पर बांटना सही नहीं है । समाज का सही विश्लेषण जाति, धर्म, व्यवसाय, शिक्षा सभी के आधार पर किया जाना चाहिए ।

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3) मार्क्स ने समाज में केवल दो ही वर्ग पूंजीपति तथा श्रमिक वर्ग के बारे में बताया है । इसके अलावा अन्य वर्ग जैसे मध्यमवर्गीय, बुद्धिजीवी वर्ग आदि भी है । जिसकी मार्क्स में अवहेलना की है । इस वर्ग ने समाज के विकास के विकास के निर्माण में भूमिका महत्वपूर्ण निभाई है ।

4) मार्क्स के वर्ग संघर्ष में श्रमिक वर्ग के क्रांति की बात की गई है । जबकि इतिहास में जो भी क्रांतियां हुई हैं, उनका नेतृत्व श्रमिक वर्ग द्वारा नहीं बल्कि बुद्धिजीवी और मध्यम वर्ग द्वारा हुआ है ।

5) मार्क्स  का यह भी मानना है कि संसार का संपूर्ण इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है । जो कि ऐतिहासिक दृष्टि से सही नहीं है । धर्म, शक्ति की इच्छा, दुर्भावना, न्याय और अधिकार आदि । संघर्ष के कारण रहे हैं । जो कि मार्क्स की धारणा में नही मिलता ।

6) मार्क्स ने अपने सिद्धांत में पूंजीवाद के अंत और समाजवाद की स्थापना की जो संभावना को व्यक्त किया है । वह पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि पूंजीवाद ने स्वयं को बदली परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लिया है । जैसे कि मजदूरों के काम के घंटे बना दिये, उनके वेतन में वृद्धि की, अवकाश, उनके लिए पेंशन आदि जैसी सुविधाएं दी गई है ।

7) मार्क्स की यह भविष्यवाणी सही नहीं हुई कि पूंजीवाद के विनाश के बाद सत्ता श्रमिक वर्ग के हाथ में आ जाएगी यदि ऐसा हुआ तो सत्ता किसके हाथ जाएगी ?  फासीवाद, अधिनायकवाद जैसे और भी विकल्प हैं, जिनको अनदेखा किया गया है ।

अगर बात की जाए तो कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत पूरी तरह तर्क पर आधारित जो कि उस समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है । हालांकि यह सिद्धांत वैज्ञानिक नहीं है फिर भी मार्क्सवादी चिंतन में इसका विशेष महत्व माना जाता है ।

तो दोस्तो ये था कत्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत इसका इतिहास और आलोचना । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

This Post Has One Comment

  1. Rakesh Verma

    क्या कार्ल मार्क्स के वर्ग सिद्धांत को इंग्लिश भाषा में नहीं दिया गया आपने ?

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