भारत के राज्यों और संघ का पुनर्गठन

Reorganization of Indian States

Hello दोस्तों Gyaanuday में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम जानेंगे भारतीय संविधान में भारतीय राज्यों और संघ के पुनर्गठन के बारे में । इसमें हम जानेंगे राज्यों का पुनर्गठन किस आधार पर हुआ । राज्यों के पुनर्गठन के लिए कौन कौन से आयोग और समितियाँ बनी ।

जैसा कि आप सभी जानते हैं, आज़ादी के बाद भारत को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा । भारत के सामने 3 सबसे बढ़ी चुनौतियां थी ।

1 एकता व अखंडता की चुनौती

2 लोकतंत्र की स्थापना की चुनौती

3 विकास की चुनौती

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राज्यों के पुनर्गठन की समस्या

अब भारत में राज्यों के बनाने और सीमांकन की समस्या पैदा हुई और अंग्रेजों ने जितने भी राज्य बनाए थे । वह अपनी सुविधा के अनुसार बनाए थे । भारत की जनता अंग्रेजों के जरिए बनाए गए राज्यों से संतुष्ट और सहमत नहीं थी । भारत की जनता तो भाषा के हिसाब से राज्य बनाना चाहती थी । क्योंकि 1920 में कांग्रेस में यह घोषणा पहले से ही कर दी थी कि अगर भारत को आजादी मिलती है, और कांग्रेस की सरकार बनती है, तो हम भाषा के हिसाब से राज्य बनाएंगे । 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया । और कांग्रेस की सरकार भी बन गई ।

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भाषा के आधार पर गठन कितना उचित

लोगों ने कांग्रेस की सरकार से कहा अपने वादों को पूरा करो । आप की सरकार है और आजादी मिल गई है । तो अब भाषा के आधार पर राज्य बनाए जाए । लेकिन सरकार नहीं चाहती थी कि भाषा के आधार पर राज्य बनाए जाएं । क्योंकि अगर भाषा के आधार राज्य बनाए जाते, तो इससे भाषाई विवाद पैदा हो जाता ।

भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं । इसकी जांच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के retired न्यायाधीश के S.K. Dhar की अध्यक्षता में 4 सदस्य आयोग की नियुक्ति की । इस आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासन की सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया । Dhar आयोग के निर्णयों की परीक्षा करने के लिए कांग्रेस कार्यसमिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया की एक समिति का गठन किया । इस समिति ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग को खारिज कर दिया ।

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परंतु मजबूरी में इंसान को कुछ भी करना पड़ सकता है और सरकार के सामने भी ऐसी मजबूरी पैदा हुई थी । सरकार को मजबूरी में भाषा के नाम पर राज्य बनाने पड़े और इस मजबूरी की शुरुआत दक्षिण भारत में तेलुगु भाषा वाले लोगों ने सबसे पहले अलग राज्य की मांग की और तेलुगु भाषा वाले लोग आंध्र प्रदेश के नाम से अपना एक राज्य बनाना चाहते थे और दक्षिण भारत में कांग्रेसी नेता श्री रामलू अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए । और जब तक मांग पूरी नहीं होती । तब तक भूख हड़ताल पर बैठ रहे । 56 दिन की भूख हड़ताल के बाद 15 दिसम्बर 1952 को  उनकी मौत हो गई और इससे हालात बहुत खराब हो गए और आखिरकार सरकार को मजबूरी में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तेलुगु भाषियों के लिए 1 अक्टूबर 1953 में आंध्र प्रदेश के नाम से राज्य बनाना पड़ा । यह राज्य भाषा के आधार पर अलग होने वाला पहला राज्य था। उस समय आंध्र प्रदेश की राजधानी करनूल थी ।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम जुलाई 1956 ई. में पास किया गया । राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली थे ।  इसके अनुसार भारत में 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया ।

नए बनाए गए राज्यों का ब्यौरा इस तरह है ।

आंध्र प्रदेश 1 अक्टूबर 1953

महाराष्ट्र 1 मई 1960

गुजरात 1 मई 1960

नागालैंड 1 दिसंबर 1963

हिमाचल प्रदेश 25 जनवरी 1971

मेघालय 21 जनवरी 1972

मणिपुर 21 जनवरी 1972

त्रिपुरा 21 जनवरी 1972

सिक्किम 26 अप्रैल 1975

मिजोरम 20 फरवरी 1987

अरुणाचल प्रदेश 20 फरवरी 1987

छत्तीसगढ़ 1 नवंबर 2000

उत्तराखंड 9 नवंबर 2000

झारखंड 15 नवंबर 2000

तेलंगाना 2 जून 2014

तो भाषा के आधार पर सबसे पहला आंध्र प्रदेश के नाम से एक राज्य बन गया । तो इस तरह भाषाई आंदोलन और तेज हो गया । गुजराती भाषा बोलने वाले लोग कहने लगे कि गुजरात बनाओ । मराठी भाषा बोलने वाले लोग कहने लगे कि महाराष्ट्र बनाओ । इस तरह कई सारे राज्यों का निर्माण हुआ । वर्तमान समय में भारत में 28 राज्य और 9 केंद्र शासित प्रदेश हैं । इनको ही संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया है ।

तो दोस्तो ये था आज़ादी के बाद राज्यों की पुर्नगठन की समस्या, किस तरह से अनेक राज्य बनें आदि के बारे में । अगर ये Post अच्छी लगी तो दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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