बेंथम और मिल के उपयोगितावाद में अंतर

उपयोगितावाद में संशोधन J.S. Mill

Hello दोस्तों ज्ञान उदय आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, पश्चिमी राजनीतिक चिंतन में जे. एस. मिल (John Stuart Mill) द्वारा उपयोगितावाद में संशोधन के बारे में और साथ ही साथ जानेंगे बेंथम और मिल के उपयोगितावाद में अंतर के बारे में । हालांकि उपयोगितावाद का सिद्धांत बेंथम में दिया था ।

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आइये जानते हैं बेंथम और मिल के उपयोगितावाद में अंतर ।  जे. एस. मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में क्या-क्या संशोधन किए हैं ।

परिचय

जे. एस. मिल एक उदारवादी विचारक थे, जिनका जन्म 20 मई 1806 लंदन में हुआ था । बचपन से ही वह तेज़ बुद्धि के छात्र रहे हैं । 16 वर्ष की आयु में उपयोगितावादी सोसाइटी के सदस्य रहे और 17 वर्ष की आयु में ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क के पद पर काम किया । 25 वर्ष की आयु में जे. एस. मिल का परिचय श्रीमती हैरियट टेलर से हुआ, जिसको उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण मित्रता कहा जाता है । सन 1865 में जे. एस. मिल ब्रिटिश संसद के सदस्य भी निर्वाचित हुए और इस तरह उनकी मृत्यु सन 1870 में हुई ।

जे. एस. मिल को व्यक्तिवाद और स्वतंत्रता का महान समर्थक माना जाता है । मिल ने स्वतंत्रता पर अपने महत्वपूर्ण विचार दिए । उदारवादी चिंतन के क्षेत्र में उनकी सबसे महान देन यह है कि उसने समय के अनुरूप स्वतंत्रता की संकल्पना को बदल दिया ।

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जे. एस. मिल के पिता ने बेंथम के कार्य में बहुत सहयोग दिया । जिसके कारण मिल के पिता में बेंथम के प्रति श्रद्धा भाव थे । इस कारण जे. एस. मिल एक कट्टर उपयोगितावादी बन गए । लेकिन मिल ने बेंथम की उपयोगितावादी सिद्धांतों की आलोचना से बचने के लिए उसमें इतना परिवर्तन कर दिया कि उपयोगितावाद का मूल सिद्धांत ही समाप्त हो गया । जे. एस. मिल ने उपयोगितावाद के स्थान पर व्यक्तिवाद पर बल दिया । इसी कारण राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में जे.एस. मिल को अंतिम उपयोगितावादी तथा प्रथम व्यक्तिवादी माना जाता रहा है ।

जे. एस. ने बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत की पुन: समीक्षा की है और बेंथम के उपयोगितावाद में अंतर निम्नलिखित हैं ।

जे. एस. मिल ने बेंथम द्वारा प्रतिपादित उपयोगितावादी सिद्धांत को एक दर्शन, विश्वास और धर्म के रूप में लिया और इसके प्रचार को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया । लेकिन जे. एस. मिल का भावनात्मक आधार बेंथम से कहीं अधिक व्यापक था . जिसके कारण मिल का उपयोगितावाद बेंथम के उपयोगितावाद से अलग हो गया ।

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मिल ने उपयोगितावाद के संबंध में जो विचार दिए हैं, वह मिल के प्रख्यात निबंध उपयोगितावाद में उपलब्ध हैं ।

जे. एस. मिल द्वारा बेंथम के सुख वाद को स्वीकार किया गया । लेकिन कालांतर में जे. एस. मिल के विचारों में क्रांति आई । जिसकी वजह से मिल के उपयोगितावाद और बेंथम में कई मूलभूत अंतर आ गए ।

सुखों में केवल मात्रात्मक अंतर ही नहीं, बल्कि गुणों का भी अंतर मिलता है । जैसा कि आप जानते हैं कि बेंथम ने सुखों में केवल मात्रा का अंतर देखा था, गुणों का नहीं । लेकिन मिल ने गुणात्मक अंतर को भी स्वीकार किया । मिल का मानना था कि सुखों का मूल्यांकन केवल मात्रा के आधार पर करना अनुचित और बेकार है ।

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कुछ सुख मात्रा में कम होने के बावजूद इसलिए प्राप्त करने योग्य हैं, क्योंकि वह श्रेष्ठ और उत्कृष्ट हैं । इसी आधार पर मिल का मानना है कि कीटस और वर्ड्सवर्थ की रचनाओं का आनंद गुल्ली डंडा खेलने के आनंद से कहीं अधिक उत्तम है ।

इस तरह जे. एस. मिल के अनुसार उनका एक प्रसिद्ध कथन है ।

“एक संतुष्ट सूअर की अपेक्षा असंतुष्ट मानव होना श्रेष्ठ है । एक संतुष्ट मूर्ख की अपेक्षा असंतुष्ट सुकरात होना श्रेष्ठ है । यदि सूअर और मूर्ख कामत इसके विपरीत है, तो इसका कारण यह है कि केवल वह अपने पक्ष को जानते हैं । जबकि मानव और सुकरात दोनों पक्षों यानी दोनों प्रकार के सुखों को जानते हैं ।”

बेंथम सुख की मात्रा को सुखवादी मूल्यांकन पद्धति से मापना चाहता था कि कौन सा कार्य अधिक सुख देता है । लेकिन ऐसा तब था जब सुखों में केवल मात्रा का अंतर हो । सुखों में मात्रा और गुणों का अंतर मान लेने पर इसकी गणना करना आसान नहीं होता ।

बेंथम ने बाह्य सुख के सूत्र बताए हैं, जैसे प्राकृतिक, राजनीतिक, धार्मिक और अलौकिक । जबकि मिल इसके अलावा आंतरिक, कार्य, कर्तव्य, भावना को भी सुख का स्रोत सूत्र माना है । भावनाओं को भी वह सुख-दुख के स्रोतों में शामिल करता है । जब वह कहता है कि जब हम कोई अनुचित कार्य करते हैं, तो हमारी भावनाओं को आघात पहुंचता है और अच्छा काम हमें आंतरिक सुख देता है ।

मिल का उपयोगितावाद नैतिकता की भावना के दिए हुए हैं क्योंकि बेंथम जहां अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित को राजनीतिक सिद्धांत मानकर उसे कानून और प्रशासन के क्षेत्र में लागू करना चाहता था, जबकि मिल का सिद्धांत व्यक्तिगत नैतिकता का सिद्धांत है । राज्य का उद्देश्य उपयोगिता नहीं बल्कि व्यक्ति के नैतिक गुणों का विकास करना है ।

मिल ने स्वतंत्रता को उपयोगिता से अधिक उचित स्थान और श्रेष्ठता प्रदान की है जबकि बेंथम ने अपने विचारों में उपयोगितावाद को स्वतंत्रता से अधिक उस स्थान दिया है । मिल व्यक्तियों के व्यक्तित्व विकास के लिए स्वतंत्रता को अनिवार्य मानता है ।

बेंथम के विचारों में यह तथ्य निहित है कि व्यक्ति अपना सुख चाहता है और दूसरे के सुख दुख को नहीं समझता । जबकि मिल मानता है, मानव जीवन का लक्ष्य अपने सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ अन्य व्यक्तियों का सुख भी है । मिल का विचार बेंथम से अधिक नैतिक समझा जाता है ।

इसके अलावा बेंथम ने उपयोगितावाद के भौतिक पक्ष पर बल देते हुए बाध्य कारकों पर अधिक ध्यान दिया है । जबकि जे. एस. मिल ने अंतकरण और आंतरिक पक्ष पर ज्यादा बल दिया है । बेंथम ने अंतकरण की उपेक्षा की है जबकि मिल का मानना है कि हमारा अंत करण भी सुख दुख का अनुभव करता है ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि बेंथम का उपयोगितावाद मात्र सुखवादी और भौतिकवादी विचारधारा है । जबकि मिल ने इस भौतिकवादी विचारधारा में नैतिक तत्वों का भी समावेश किया है ।

बेंथम के विचारों यानी उपयोगितावाद के संशोधन करने और उसकी आलोचनाओं को दूर करने के क्रम में जे. एस. मिल ने उसकी मूल मान्यताओं पर ही प्रहार किया और अपने सुख के सिद्धांत में नैतिकता का सिद्धांत जोड़ दिया । जिसके कारण मिल बेंथमवाद में एक शक्तिशाली परिवर्तन लाता है और मिल बेंथम से अधिक उपयोगितावादी विचारक सिद्ध हुआ । साथ ही उपयोगितावाद में संशोधन के द्वारा मिल ने एक प्रकार से उपयोगितावाद का मूल स्वरूप नष्ट कर दिया । लेकिन बेंथम और अपने पिता मिल निष्ठा व सम्मान के कारण अपने आपको उपयोगिता वादी ही समझता रहा ।

तो दोस्तो ये था जे. एस. मिल द्वारा बेंथम के उपयोगितावाद सिद्धांत में संशोधन के बारे में । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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