बहुलवाद और इसकी प्रमुख मान्यताएं

What is Pluralism and it’s Assumptions

Hello दोस्तों ज्ञानउदय ने आपका एक बार फिर से स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में बहुलवाद (Pluralism) के बारे में । साथ ही साथ हम जानेंगे बहुलवाद की प्रमुख मान्यताओं, और इसकी आलोचनाओ के बारे में । तो जानते हैं आसान भाषा में ।

बहुलवाद क्या है ?

बहुलवाद को एक ऐसा सिद्धान्त माना जाता है, जिसके अंतर्गत समाज मे अपनी आज्ञा का पालन कराने के लिए शक्ति को एक ही जगह केंद्रित नहीं किया जाता, बल्कि उस शक्ति को अलग अलग जगह विकेंद्रीकरण करके इस्तेमाल किया जाता है । संप्रभुता का विरोधी दृष्टिकोण इसके अनुसार संप्रभुता न तो निरंकुश है और ना ही अविभाजित । अन्य समुदायों में भी संप्रभुता कई अन्य समुदाय में विभाजित होती है । इस सिद्धान्त के अनुसार समाज मे रह रहे लोगों की अलग अलग जरूरतों को पूरा भी किया जाता है ।

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आधुनिक राजनीति में जर्मन के समाजशास्त्री गियार्क और ब्रिटिश के विचारक मेटलेंड ने बहुलवाद को सर्वप्रथम एक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया ।

बहुलवादी दृष्टिकोण के विचारक

आइए अब जानते हैं, बहुलवादी विचारकों के बारे में जिन्होंने अपने विचार बहुलवादी के आधार पर दिए हैं । संप्रभुता के बहुलवादी सिद्धांत के लिए अनेक विचारक जैसे लास्की,ब्लंटश्ली, क्रेब, लिंडसे, बार्कर, डीगवी आदि को मुख्य रूप से इसका समर्थक माना जाता है । सबसे पहले हम जानते हैं, लास्की ने बहुलवाद के बारे में क्या कहा है ? लास्की के अनुसार-

“समाज के संरचना को पूर्ण होने के लिए उसे संघात्मक होना चाहिए ।”

इसी तरह ब्लंटश्ली से बहुलवाद के बारे में कहते हैं कि-

“राज्य सर्वशक्तिमान नहीं है, क्योंकि वह बाहरी क्षेत्र में अन्य राज्यों के अधिकारों से सीमित है और आंतरिक क्षेत्र में स्वयं अपनी प्रकृति तथा नागरिकों के अधिकारों से सीमित है ।”

इसी तरह हैसियो ने बहुलवाद के बारे में कहां है कि-

“बहुलवादी राज्य ऐसा राज्य है, जिसमें सत्ता का केवल एक ही स्रोत नहीं है । यह विभिन्न क्षेत्र में विभाजनीय है ।”

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बहुलवाद की प्रमुख मान्यताएं

राज्य केवल एक समुदाय है । एकमात्र समुदाय नहीं है ।

समाज और राज्य में अंतर है ।

राज्य में ऐसी मित्र शक्ति नहीं होती है ।

संप्रभुता विभाज्य है ।

कानून राज्य से ऊपर होता है ।

शक्ति का विकेंद्रीकरण हितकर है ।

इसका लोकतंत्र में विश्वास होता है ।

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बहुलवाद की आलोचना

आइये अब जानते हैं, बहुलवाद की आलोचना के बारे में । बहुलवाद से समाज में अराजकता का खतरा उत्पन्न होता है । यह समाज को तोड़ने का कार्य करती है । इसमें राज्य का नियंत्रण होना आवश्यक है । बहुलवाद द्वारा काल्पनिक संप्रभु पर आक्रमण होता है । इससे अंतरविरोधियों से युक्त माना जाता है । बहुलवाद देशभक्ति का विरोधी है । इससे कानून संबंधी अवधारणा का गलत इस्तेमाल किया जाता है । बहुलवाद के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय का सही आकलन नहीं किया जा सकता ।

इसी तरह से बहूलवादियों द्वारा संप्रभुता की आलोचना भी की गई है । इसमें विशेषकर ऑस्टिन के सिद्धांत की आलोचना की गई है । लिंडसे कहते हैं कि संप्रभुता के सिद्धांत का अंत हो चुका है । यह सभी समुदायों के कार्य महत्वपूर्ण हैं । इसमें कानून के पीछे अनेक शक्तियां हैं । यह अंतरराष्ट्रीयता, संप्रभुता के अनुकूल नहीं है ।

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अगर निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो, संप्रभु राज्य के विरुद्ध प्रतिक्रिया की जा सकती है । परंतु स्वीकार योग्य नहीं है । बहुलवादियों के विरोध के बावजूद ना तो राज्य के संप्रभुता सिद्धांत को खत्म किया गया है और ना ही इसको समाप्त किया जा सकता है ।

तो दोस्तों यह था बहुलवाद के बारे में । हमने जाना बहुलवाद की प्रमुख मान्यताएं, बहुलवाद की आलोचना और उसका अर्थ । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्त के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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