पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

Environment and Natural Resources

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, राजनीति विज्ञान 12वीं Class का आठवां अध्याय जिसका नाम है, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन । Chapter का नाम सुनकर आपको ऐसा लगा होगा कि यह तो भूगोल का विषय है, फिर इसे आखिर राजनीति विज्ञान में ही क्यों पढ़ाया जा रहा है । दोस्तों पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन को हमें सिर्फ भूगोल का विषय नहीं मानना चाहिए, बल्कि पर्यावरण को हमें राजनीति का विषय भी समझना चाहिए । अगर हम पर्यावरण के नुकसान पर या खतरों पर ध्यान दें, तो इस विषय के महत्त्व को बहुत आसानी से समझा जा सकता है ।

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पर्यावरण को बचाने के लिए जो नियम बनाये जाते हैं वह सरकार और कुछ संस्थाओं के द्वारा बनाये जाते हैं, इसलिए पर्यावरण को राजनीति का विषय माना जाता है ।

सीमित संसाधन

दुनिया में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, लेकिन कृषि भूमि में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है और वर्तमान में जो कृषि भूमि हैं, उसकी उत्पादन क्षमता भी प्रदूषण की वजह से बहुत कम हो गई है । दुनिया भर में समुंद्र में प्रदूषण की वजह से मछली उत्पादन भी बहुत कम हो गया है । इससे भविष्य में मनुष्य को खाद्य संकट पैदा होने की संभावना है । जब जमीन पर खाने के लिए कुछ नहीं उगेगा, समुंदर के अंदर भी खाने के लिए कुछ नहीं मिलेगा, तो इससे खाने-पीने की समस्या उत्पन्न होगी और दुनिया को भुखमरी का सामना करना पड़ेगा ।

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पर्यावरण का महत्त्व

वन पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन वन क्षेत्रों में बहुत तेजी से कमी आ रही है, जिससे प्रदूषण की समस्या बहुत ही गंभीर होती जा रही है । जल प्रदूषण और साफ-सफाई की कमी की वजह से हर साल दुनिया में लगभग 30 लाख बच्चों की मौत होती है । ओजोन परत लगातार नष्ट होती जा रही है, जिससे मानव जाति के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है और वैश्विक ताप वृद्धि की वजह से समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है । तो पर्यावरण को बचाना बहुत ही जरूरी है । अगर हम पर्यावरण को नहीं बचाएंगे, तो पूरी पृथ्वी बर्बाद हो जाएगी और पृथ्वी से जीवन की समाप्ति भी हो जाएगी ।

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पर्यावरण को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है । आपकी और मेरी जिम्मेदारी है । अगर पर्यावरण को एक देश बचाता है और बाकी देश नहीं बचाते, तो पर्यावरण नहीं बचने वाला । पर्यावरण तो तब बचेगा जब सब मिलकर इस को बचाएंगे और इसको बचाने के लिए जो नियम बनाए जाते हैं । वह सरकार के द्वारा या संस्थाओं के द्वारा बनाए जाते हैं ।

पृथ्वी या रियो सम्मेलन

पर्यावरण को बचाने के लिए सबसे पहली बैठक हुई थी, वह 1992 में हुई थी । 1992 में पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर एक सम्मेलन हुआ, ब्राजील के नगर रियो डी जेनेरियो में । इस सम्मेलन को रियो सम्मेलन या पृथ्वी सम्मेलन भी कहते हैं । इस सम्मेलन में लगभग 170 देशों ने और हजारों स्वयंसेवी संगठनों ने और अनेकों बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने हिस्सा लिया । यह पहला सम्मेलन था, जो पर्यावरण को लेकर हुआ था । रियो सम्मेलन में पर्यावरण के लिए नियम बनाए गए । एजेंडा 21 जारी किया गया । जिसके जरिए पर्यावरण के अनुकूल विकास के तरीके सुझाए गए थे ।

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रियो सम्मेलन में इस बात पर सहमति हुई थी कि आर्थिक विकास के लिए पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा यानी संतुलित विकास किया जाएगा और रियो सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के विचार अलग-अलग थे, क्योंकि विकसित देश ओजोन परत को लेकर, वैश्विक ताप वृद्धि को लेकर बहुत ही चिंतित थे, जबकि विकासशील देश पर्यावरण और विकास के आपसी संबंध को लेकर चिंतित थे ।

साझी संपदा की आसान सी विरासत

आज दुनिया में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं, जिसका इस्तेमाल सभी करते हैं और उन चीजों को कहा जाता है, सांझी विरासत । जैसे गांव के अंदर एक सांझा परिवार होता है । वह चूल्हे का आपस में इस्तेमाल करता है । आंगन का इस्तेमाल करता है । गांव के लोग जंगल में जाते हैं, वहां से लकड़ियां बीन कर लाते हैं, तो यह सारी चीज है । इनका इस्तेमाल सब करते हैं । इसी तरीके से दुनिया के अंदर कुछ चीजें ऐसी हैं, जिसका इस्तेमाल एक देश के जरिए नहीं किया जाता और जिस पर किसी एक देश का नियंत्रण नहीं होता, बल्कि जिन चीजों का इस्तेमाल दुनिया के सभी देशों के जरिए की जाता है । उसे ही कहा जाता है, सांझी विरासत । सांझी विरासत में तीन चीजों को शामिल किया जाता है ।

1 समुंद्री सतह

2 बाहरी अंतरिक्ष और

3 अंटार्कटिका

सांझी विरासत का इस्तेमाल सब सब करते हैं और सांझी विरासत को बचाने के लिए बहुत सारे समझौते भी हुए हैं । जैसे कि अंटार्कटिका समझौता 1959 में । मार्टिन प्रोटोकॉल 1987 में । अंटार्कटिका पर्यावरणीय प्रोटोकॉल 1991 में । लेकिन फिर भी दुनिया की साझी विरासत को बचाने के रास्ते में अनेक रुकावटें आई हैं । जैसे कि दुनिया के ज्यादातर देशों के नियम कायदे कानून अलग है और सभी देशों को एक जैसी नीतियों के लिए सहमत करना बहुत ही मुश्किल काम है ।

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इसलिए सांझी विरासत को बचाना इतना आसान नहीं है, बल्कि मुश्किल है और सांझी विरासत को बचाने के लिए कुछ तकनीकी आवश्यकताएं हैं । इसलिए विकासशील देश इस संबंध में कोई खास काम नहीं कर पाते । सांझी विरासत को लेकर विकसित और विकासशील देशों के विचार एक समान नहीं है, बल्कि अलग-अलग हैं । इसलिए सांझी विरासत को बचाना आसान नहीं है । तो सांझी विरासत पर किसी एक देश का नियंत्रण नहीं पाया जाता । इस वजह से अगर सांझी विरासत को नुकसान पहुंचता है, तो किसी एक देश को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता ।

सांझी जिम्मेदारी मगर भूमिका अलग अलग

साझी विरासत को बचाना आसान नहीं है ।  तो सवाल उठता है कि सांझी विरासत को कैसे बचाया जाए ? सांझी विरासत को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की है । लेकिन इसमें भूमिका अलग अलग होगी । इसीलिए कहा जाता है, सांझी जिम्मेदारी मगर भूमिकाएं अलग-अलग । 1992 के रियो सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के विचार अलग-अलग थे । विकसित देशों का यह कहना था कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी देशों पर एक जैसे और सख्त नियम लागू किए जाएं, जबकि विकासशील देशों का यह कहना था कि पर्यावरण को लंबे समय से ही विकसित देशों ने नुकसान पहुंचाया है । इसलिए विकसित देशों के ऊपर सख्त नियम लागू होने चाहिए । जबकि विकासशील देशों को छूट मिलनी चाहिए ।

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तो इस हिसाब से यह कि पर्यावरण को बचाने के लिए हम सबकी जिम्मेदारी है । मगर इस को बचाने में विकसित और विकासशील अलग-अलग भूमिका निभाएंगे । विकसित देशों ने लंबे समय से नुकसान पहुंचाया है । इसलिए विकसित देशों को पर्यावरण को बचाने की ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए । पर्यावरण को बचाने के लिए धन की आवश्यकता है, संसाधन की आवश्यकता है । इसलिए विकसित देशों को इस मामले में ज्यादा बड़ी भूमिका निभानी चाहिए । और

क्यूटो प्रोटोकॉल 1997 के विषय में

विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना चाहिए, जबकि विकासशील देशों को थोड़ी सी छूट मिली चाहिए । ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के लिए 1997 में क्योटो प्रोटोकोल बनाया गया । 1997 में जापान के क्यूटो नगर में एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हुआ । इस सम्मेलन में एक समझौता हुआ, जिसे क्यूटो प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है । इस समझौते के अंदर यह तय किया गया कि ग्रीन हाउस गैसों को कम किया जाए, क्योंकि यह जो ग्रीन हाउस गैसें हैं । जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, हाइड्रोकार्बन इससे वैश्विक ताप वृद्धि ज्यादा होती है । इसलिए इसके प्रभाव को कम किया जाए ताकि वैश्विक ताप वृद्धि को रोका जा सके ।

भारत और पर्यावरण

भारत का हमेशा से ही पर्यावरण को लेकर बहुत अच्छा नजरिया रहा है । भारत में पर्यावरण को बहुत ज्यादा पवित्र माना जाता है और पर्यावरण को भी भगवान के समान पूजा जाता है । जैसे हमारे यहां पर बहुत सारे लोग पेड़ पौधों की या जमीन की, हवा की, पानी की यहां तक कि सूरज की भी पूजा करते हैं । जिससे पर्यावरण को बचाने में काफी मदद मिलती है और यहां तक कि सरकार ने भी पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत सारे कदम उठाए हैं । जैसे कि भारत में सन 2002 में क्यूटो प्रोटोकॉल को स्वीकार किया गया । जबकि भारत को बाकी विकासशील देशों की तरह छूट दी गई थी । भारत में 2003 में बिजली अधिनियम को पारित किया गया, जिसके जरिए नवीनीकरण और ऐसी ऊर्जा जिसका बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है । जैसे जल विद्युत सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा और भारत का यह मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों का जोर ज्यादा उत्सर्जन किया जाता है ।

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वह विकसित देशों के जरिए किया जाता है । इसमें इस मामले में विकसित देशों को ज्यादा बड़ी भूमिका निभानी चाहिए और भारत में जितने भी सार्वजनिक वाहन है । उन में सीएनजी गैस का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है और भारत में जल्दी ही बायो डीजल तैयार होने लगेगा । जिससे प्राकृतिक पेट्रोल पर निर्भरता कम होगी । इस तरीके से भारत सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत सारे कदम उठाए हैं ।

संसाधनों की भू राजनीति

हम सब की जितनी भी जरूरत हैं । वह तमाम जरूरतें संसाधनों से पूरी होती हैं । इसलिए हर देश संसाधन हासिल करना चाहता है और संसाधनों को हासिल करने के लिए या संसाधनों पर नियंत्रण बनाने के लिए जो संघर्ष किया जाता है या राजनीति की जाती है, तो उसे संसाधन की भू राजनीति कहा जाता है । औद्योगिक क्रांति से दुनिया, संसाधनों का महत्व बड़ा और संसाधनों को हासिल करने के लिए संघर्ष शुरू हुआ, लड़ाई होने लगी और होड़ शुरू हुई । जिससे संसाधनों की भू राजनीति शुरू हो गई । इसके बहुत सारे उदाहरण हैं । दुनिया में जब ओधोगिक क्रांति हुई, तो उद्योगीक क्रांति के बाद यूरोप के शक्तिशाली देशों ने संसाधनों को हासिल करने के लिए एशिया और अफ्रीका के देशों को गुलाम बनाया और उन्हें उपनिवेशवाद की नीति को अपनाया । शीतयुद्ध के दौर में महा शक्तियों ने खनिज और संसाधन पाने के लिए तीसरी दुनिया के देशों के साथ दोस्ती वाले संबंध बनाए और दुनिया में पेट्रोल का महत्व बहुत तेजी से बढ़ रहा है । इसलिए अरब देशों का महत्व भी बढ़ रहा है । पूरी दुनिया का जो ज्यादातर पेट्रोल है । अरब देश में पाया जाता है । 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया, लेकिन उसका मकसद पेट्रोल के संसाधनों पर कब्जा करना था । वर्तमान में मानव के लिए जल का अभाव, जल की कमी बहुत तेजी से बढ़ रही है । तो आगे भविष्य में पानी को लेकर भी संघर्ष या युद्ध हो सकता है । इसलिए इन संसाधनों को बचाना बहुत जरूरी है ।

मूलवासी कौन हैं ?

अब जरा हम भी जानते हैं कि मूलवासी आखिर किसे कहते हैं और मूलवासी के सामने कौन-कौन सी समस्याएं हैं ? मूलवासी उन लोगों को कहा जाता है । उनके वंशज प्राचीन काल से इस जगह पर रहते रहे हैं । भारत में इन्हें अनुसूचित जनजाति या आदिवासी कहा जाता है । मूल वासियों के सामने बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं । किसी दूसरी जगह से आने वाले लोग मूल वासियों को उनकी जगह से वंचित कर देते हैं । जिसके कारण मूलवासियों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जब दूसरे स्थान से आने वाले लोग मूल वासियों को उनकी जगह से हटाकर मूल वासियों की संस्कृति और पहचान के लिए खतरा पैदा हो जाता है । किसी इंसान की जगह के साथ जुड़ी हुई है । उसको उसकी जगह से हटा दिया जाएगा । उसकी पहचान भी खत्म हो जाएगी । मूलवासी प्राकृतिक वातावरण का एक अंग माने जाते हैं । लेकिन जब उन्हें उन्हें उनके स्थान से हटा दिया जाता है, तो इससे प्राकृतिक संतुलन पर भी बुरा असर पड़ता है और मूलवासी प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल बेहतर तरीके से करते हैं, जबकि जो दूसरे नए लोग होते हैं । प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल बेहतर तरीके से नहीं कर पाते । बल्कि प्राकृतिक संसाधनों को और ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं । जैसे कि मूलवासी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगल से लकड़ी, खेतों से सब्जियां लाते हैं । अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं । दूसरे लोग पेड़ों को रहने के लिए काटते है, तो इससे क्या होता है ? पर्यावरण का नुकसान बहुत ज्यादा हो जाता है । तो इसलिए प्राकृतिक संसाधनों को सबसे ज्यादा अधिकार होता है । वह मूल वासियों का होता है । लेकिन मूल वासियों को प्राकृतिक वातावरण का या प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करने का पूरी तरीके से मौका नहीं मिल पाता ।

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तो दोस्तों ये था आपका पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन । अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ अवश्य Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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