नारीवाद प्रकार और विशेषताएं

Feminism Merits and Types

Hello  दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में नारीवाद के प्रकार के बारे में । साथ ही साथ हम जानेंगे इसकी विशेषताएं । हालांकि हम नारीवाद की संकल्पना के बारे में पहले ही बता चुके हैं । संकल्पना में हमने बताया कि हमेशा से ही इस दुनिया में पुरुष को प्रधान माना जाता है । पुरुष ही घर का मुखिया है जिसके द्वारा सभी निर्णय (फैसले) किये जाते हैं । क्योंकि प्राचीन काल से ही राजा, महाराजाओं ने ही राज्य और देशों को चलाया है । अगर आप नारीवाद की संकल्पना के बारे में विस्तार से जानना चलते हैं तो नीचे दिये Link पर Click करें । आज हम जानेंगे नारीवाद के प्रकार के  बारे में ।

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नारीवाद के प्रकार और विशेषताएं (Types and Merits of Feminism)

आइये अब बात करते हैं, नारीवाद के प्रकारों की और साथ ही साथ इनकी विशेषताएं की भी । नारीवाद को उनके अधिकारों, आवश्यकताओं और ज़रूरतों के आधार पर बांटा जा सकता है । उनमें से कुछ निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं और साथ ही साथ इनका विवरण, नारीवादियों द्वारा लिखित किताबें और उनके विचारों को भी दिया गया है ।

1) उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)

2) उग्रवादी नारीवाद (Radical Feminism)

3) समाजवादी / मार्क्सवादी नारीवाद (Socialist/Marxist Feminism)

4) उत्तरआधुनिक नारीवाद (Post Modernist)

5) सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism)

6) पर्यावरणीय नारीवाद (Eco-Feminism)

आइये अब इनके बारे में विस्तार से जान लेते हैं । साथ ही साथ देखेंगे कि नारीवादियों की महत्वपूर्ण रचनाऐं और उनके महत्वपूर्ण विचारों को भी ।

1) उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)

यह नारीवाद का महत्वपूर्ण रूप है । इसमें मुख्य रूप से महिलाओं को वैधानिक अधिकार (Legal Rights) प्रदान करने पर बल दिया जाता है । अर्थात महिलाओं को भी पुरुषों के समान अधिकार मिलने चाहिए ।

Wollstonecraft – ‘Vindication of the right of the women’ 1902

महिलाओं का पुरुषों पर वर्चस्व नहीं बल्कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए । उन्हें शिक्षा के समान अवसर दिया जाए । जिससे परिवार का कल्याण तथा एक स्वस्थ परंपरा का प्रारंभ होगा । महिलाओं को पुरुषों की भलाई के लिए शिक्षित किया जाए, क्योंकि महिलाओं को शिक्षित करना परिवार के हित में होगा ।

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Sarah Grimke 1792-1873 महिलाओं की अधीनता Subordination को दूर करने हेतु उनको पुरुषों के समान ही अधिकार मिलना चाहिए ।

Harriat Teller 1807-1858 यह जे एस मिल की पत्नी थी । इन्होंने पुरुष तथा स्त्री को एक दूसरे का पूरक माना तथा महिलाओं के लिए पुरुषों के समान अधिकार देने की बात की ।

John Stuart Mill 1806-1873 The Subordination of Women 1969

जे. एस. मिल (J. S. Mill) के विचारों के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

इन्होंने महिलाओं तथा पुरुषों को बराबरी का समर्थन किया । महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार मिलना चाहिए तथा शादी में भी समानता होनी चाहिए । अर्थात स्त्रियों को शादी करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए । नारी पुरुष में समानता लाने के लिए सबसे बड़ा तथ्य यह है कि उनको मत देने का अधिकार ज़रूर मिले । (Right to cast votes)

इस प्रकार उदारवादी नारीवादी विशेषकर नारी के मताधिकार देने पर बल देते हैं मताधिकार आंदोलन 1840 के दशक में प्रभावी हुआ इसका महत्वपूर्ण चरण उस समय प्रारंभ होता है, जब 1848 में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन प्रारंभ किया गया इसके लिए सैनिका फॉल कन्वर्शन का आयोजन किया गया तथा इसमें कई मुद्दों पर विचार किया गया इस घोषणापत्र की लेखिका एलिजाबेथ स्कैन टन थी इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर हैं महिलाएं पुरुषों से किसी भी मायने में कमजोर नहीं है तथा उनको पुरुषों के समान शिक्षा स्वतंत्रता तथा मत देने का अधिकार मिलना चाहिए

1850 के दशक में जे. एस. मिल ने सर्वप्रथम स्त्री के मत अधिकारों की बात की तो दुनिया के अनेक देशों में जागरूकता आई । न्यूजीलैंड वह प्रथम देश बना जिसने 1893 में महिलाओं के मताधिकार की व्यवस्था की । अमेरिका में महिलाओं को मताधिकार 1920 में 19 वें संशोधन द्वारा प्रदान किया गया । ब्रिटेन में 1918 में आंशिक रूप से तथा 1928 में पूर्ण रूप से महिलाओं के लिए मताधिकार की व्यवस्था की गई ।

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उदारवादी नारीवादी निम्न महिला अधिकारों पर बल देते हैं

1 महिलाओं को मत देने का अधिकार

2 शिक्षा का अधिकार

3 बौद्धिक रूप से समानता में विश्वास

कुछ विचारक मानते हैं कि महिला तथा पुरुष में रचना बनावट तथा शक्ति में अंतर है । परंतु अधिकतर नारीवादी विचारक यह मानते हैं कि महिला तथा पुरुष एक समान हैं । इनमें कोई अंतर नहीं । सभी उदारवादी विचारक इस संबंध में व्यक्तिवादी विचार रखते हैं कि नारी भी एक व्यक्ति है और व्यक्ति होने के नाते उसे पुरुषों के समान अधिकार मिलने चाहिए ।

उदारवादी नारीवाद की आलोचना

इस सिद्धांत की काफी आलोचना भी की गई है जो निम्नलिखित है ।

1 यह सिद्धांत एक व्यक्तिवादी सिद्धांत है । अतः पितृसत्तात्मकता की आलोचना करने की वजह है, व्यक्ति बात पर ज्यादा बल देता है । इसका मुख्य उद्देश्य गौण हो जाता है ।

2 व्यक्तिवाद आधार पर अधिक बल देने से सभी अधिकारियों हेतु एकजुट नहीं हो पाते । इससे सामूहिक कार्य विधि में बाधा आती है । जिसके कारण यह आंदोलन कमजोर हो जाता है ।

3 यह सिद्धांत महिला पुरुष समानता में विश्वास करता है । इसके विरुद्ध आप एक आक्षेप लगाया जाता है कि यदि हम स्त्री पुरुष को समान देखते हैं, तो कहीं ना कहीं हम महिलाओं को पुरुष बनाना चाहते हैं, जो उचित नहीं है ।

2) उग्रवादी नारीवाद (Radical Feminism)

नारीवाद की उदारवादी धारणा में परिवर्तन हुआ और 1960 के दशक में यह उग्रवादी स्वरूप में बदल गया ।

बेट्टी फ्रीडन The Feminin Mistake 1965 ने अपनी पुस्तक में महिलाओं की समस्याओं को हमारे समक्ष रखा । उनकी पुस्तक को नारीवादियों की बाइबिल मानी जाता है । उनका मानना है कि मनोवैज्ञानिक रूप से महिलाओं को इतना हतोत्साहित कर दिया जाता है कि महिलाएं घर से बाहर अपने को असुरक्षित समझती हैं । उनकी सोच इस तरह बना दी जाती है कि वह घर में संरक्षित हैं । उनका काम घर के काम करना है । बाहर के काम तो पुरुषों का है ।

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बेट्टी फ्रीडन ने 1966 में एक महिला संगठन नेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर वूमेन का निर्माण किया । इसी से प्रेरणा लेकर महत्वपूर्ण नारीवाद इन कैट मिलेट में अपनी एक पुस्तक लिखी जो 1970 सेक्सुअल पॉलिटिक्स के नाम से प्रकाशित हुई । इसमें कैट मिलेट ने बताया कि स्त्री-पुरुष संबंधों का मामला राजनीतिक है ।

राजनीति Politics – जहां संघर्ष ना हो वहां संघर्ष उत्पन्न किया जाए और जहां संघर्ष है । वहां से इसे समाप्त किया जाए ।

उग्रवादी नारीवादियों का प्रमुख विचार था कि पर्सनल एंड प्राइवेट इस पोलिटिकल इस क्रम में अनेक पुस्तकें लिखी गई । जिनमें मुख्य हैं ।

Sulamibh Firestone 1970 – The Dialectic of Sex

Germen Greeir – Female Eunech

Sheila Robatham -Hidden from History 1975

Juliat Michelle – Women : The Longest Revolutionary 1974

उग्रवादी नारीवादियों का मानना है कि

1 पितृसत्तात्मकता के प्रभाव के कारण पुरुषों ने स्त्रियों को सभी क्षेत्रों में अपने अधीन बना लिया

2 इन सभी विचारकों ने विवाह को अधीनता का प्रमुख कारण मानकर विवाह का ही विरोध किया

3 महिलाओं की स्वतंत्रता के लिए पितृसत्तात्मक प्रणाली को नष्ट करना होगा । पितृसत्तात्मक प्रणाली का आधार परिवार है । अतः परिवार को नष्ट करना होगा ।

4 फायर स्टोन का मानना है कि महिला तथा पुरुष में जैविक अंतर (बायोलॉजिकल डिफरेंसेस) हैं । यदि महिलाओं को बच्चे पैदा करने से मुक्त कर दिया जाए तो, उन पर से पुरुषों का वर्चस्व समाप्त हो जा सकेगा । महिलाओं की जनन क्षमता ही उनके अधीनता का मूल कारण हैं ।

5 उग्रवादी नारी वादियो ने वूमेन बायोलॉजिकल टर्म के स्थान पर जेंडर कल्चरल धर्म का प्रयोग करने पर बल दिया है |

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उत्तर नारीवाद Post Feminism

उग्रवादी नारीवादियों ने ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें पुरुषों का कोई हस्तक्षेप ना हो । परंतु इससे स्थिति और भी खराब होने लगी । इसके कारण परिवार में बिखराव, तलाक, नशाखोरी तथा ड्रग्स आदि अपराधिक कार्य में वृद्धि हुई है । दोबारा से उन्हीं लेखकों तथा विचारकों ने जिन्होंने की रेडिकल नारीवाद का समर्थन किया था तथा उन्होंने ही परिवार का समर्थन करना प्रारंभ कर दिया । इसमें मुख्य रूप से बेट्टी फ्रीडन, जर्मेन ग्रीयर आदि हैं ।

उग्रवादी विचारधारा के इन विचारों ने उन्हें परिवार तथा मातृत्व (मदरहुड) को गौरवान्वित किया । इस काल की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं –

1 The Second Stage 1983 Betti Fridan

2 Sex and Destiny 1985 Germen Prerit

3) मार्क्सवादी/समाजवादी नारीवाद (Marxist/Socialist Feminism)

इस विचारधारा के अंतर्गत मार्क्स का मानना है कि पूंजीवादी प्रणाली नारियों की अधीनता की अनिवार्य शर्त है । एजेल्स का मानना है कि स्त्री पुरुष का संबंध निजी संपत्ति पर आधारित है । पुरुष स्त्री को निजी संपत्ति मानते हैं । जो रहने और खाने के एवज में उत्तर अधिकारी की व्याख्या व्यवस्था करती है ।

मार्क्सवाद मानता है कि पूंजीवाद ही महिलाओं की ही स्थिति के लिए जिम्मेदार है । उनका आक्षेप पूरी तरह से पूंजीवादी व्यवस्था पर है ।

इसके विपरीत समाजवादी नारीवादी मानते हैं कि महिलाओं कमजोर वर्ग के रूप में हैं । यौनिकता (सेक्सुअलिटी) तथा बौद्धिक रूप (इंटेलेक्चुअलिटी) से तथा लिंग संबंध (जेंडर रिलेशन), प्रभुत्व तथा अधीनता पर आधारित होते हैं । इसी कारण समाजवादी नारीवादियों का प्रमुख लक्ष्य है –

महिलाओं का सशक्तिकरण Empowerment of Women

4) उत्तरआधुनिक नारीवाद (Post Modern Feminism)

अगर हम प्राचीन परंपरा तथा रूढ़िवादी मान्यताओं को प्राचीनता तथा परंपरागतता के साथ जोड़ते हैं तो आधुनिकता से तात्पर्य विज्ञान व तकनीकी विकास धर्मनिरपेक्षता तथा नगरीकरण आदि शामिल है । परंतु आज एक नए प्रकार की धारा चल रही है, जो परंपरा तथा आधुनिकता को एक साथ जोड़ कर चलती है, तो इसी को उत्तर आधुनिकता की संज्ञा प्रदान की जाती है । Modern+Traditional= Post Modern

उत्तरआधुनिक नारीवादियों के अनुसार इनके विचारों को तीन प्रकार की श्रेणियों में रखा जा सकता है  ।

1 प्राचीन Ancient

2 मध्यकालीन Medival तथा

3 आधुनिक Modern

उत्तर आधुनिकता यह मानकर चलता है कि कुछ भी सार्वभौमिक (Universal) नहीं है, क्योंकि समय तथा परिस्थितियों के साथ साथ सभी विचार और धारणाएं बदलती हैं । इसका तात्पर्य है कि एक शब्द का अर्थ भी समय और परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है ।

वही उत्तर आधुनिक नारीवाद की मान्यता है कि दुनिया की सभी महिलाओं को एक वर्ग के रूप में शामिल करना ठीक नहीं है, क्योंकि दुनिया के विभिन्न भागों के महिलाओं की समस्याएं एक समान नहीं होती । जैसे अमेरिकन महिलाओं और अफ्रीकन महिलाओं की समस्याएं अलग-अलग होती हैं । अतः सभी महिलाओं को एक वर्ग के अंतर्गत रखकर उनके अधिकारों की रक्षा नहीं की जा सकती है ।

5) सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural Feminism)

हालाँकि दूसरे नारीवादी सिद्धांत सभी स्थित स्त्रियों को एक वर्ग के रूप में देखते हैं । इस प्रकार इन समस्याओं को समझने हेतु हमें सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural) के सहारे अलग-अलग वर्ग की महिलाओं की समस्याओं का विश्लेषण करके उनको दूर करने का प्रयास करना पड़ेगा । जैसे अमेरिकन महिलाओं की समस्या क्लब जाने की होती है तथा एक अफ्रीकन महिला की समस्या शिक्षा पाने की होती है ।

जिस तरह से दुनियां में हर देश की अपनी संस्कृति होती है, उसी तरह से हर देश की महिलाओं की अपनी समस्याएँ भी अलग अलग हो सकती हैं ।

6) पर्यावरणीय नारीवाद (Eco-Feminism)

प्रकृति और महिलाओं में समानता अनेक नारीवादी लेखिका एवं विचारक द्वारा बताये गए हैं । जैसे वंदना शिवा, सुनीता नारायण, मेघा पाटेकर आदि । इनका मानना है कि प्रकृति तथा महिलाओं में काफी समानता है । महिलाएं प्रकृति के सर्वाधिक निकट होती हैं । अतः पर्यावरण का सर्वाधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ता है । अतः पर्यावर्धनीय प्राकृतिक उत्थान द्वारा नारी की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है । प्रकृति को स्त्री माना गया है । धरती को तथा नदियों को मां का दर्जा दिया गया है । इस तरह नारी तथा प्रकृति में समानता है ।

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अगर निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो नारीवादी आंदोलन का आरंभ पश्चिम देशों से हुआ । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या नारीवाद के भारत में देखा जा सकता है या नहीं । देशों की अलग अलग संस्कृति होने के कारण और व्यक्तियों के अलग अलग विचारों के कारण भारत में नारीवाद को उस रूप में नहीं लागू किया जा सकता, जिस प्रकार से पश्चिम में भारत में महिला बचपन में पिता, युवावस्था में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र के आश्रित रही है । यहां पर प्राचीन काल से ही स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में कम माना गया है । इस तरह की मान्यताओं को बदलने में काफी समय लगता है ।

तो दोस्तों ये था नारीवाद के प्रकार और उसकी विशेषताएं । अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

This Post Has 2 Comments

  1. Manju

    MA student

  2. Vikash kumar

    Thank you sir your article is to good

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