दो तलवारों का सिद्धान्त

Theory of Two Swords in Hindi

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम जानेंगे पश्चिमी राजनीति में (Western Political Thought in Hindi) एक महत्वपूर्ण Topic जिसका नाम है, दो तलवारों का सिद्धांत (Theory of Two Swords in Hindi)

यह सिद्धांत चर्च और राज्य के अपने अपने अधिकार क्षेत्रों के इस्तेमाल और उनमें विवादों के रूप में जाना जाता है । इस सिद्धान्त में दोनों अपने-अपने सर्वोच्चता के दांव को प्रमाणित करने के लिए किस तरह विवादों में घिरे । यह सिद्धांत विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । इस सिद्धांत के द्वारा हम जानेंगे इसका प्रतिपादन किसने किया ? इसकी विशेषता क्या है ? और राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ा ?

दो तलवार का सिद्धान्त ( Theory of Two Swords in Hindi)

जैसा कि हम भली भांति जानते हैं कि मनुष्य और उसकी प्रवृति के बारे में । व्यक्ति धार्मिक हो सकता है, सांसारिक हो सकता है हठधर्मी हो सकता है आदि । इस तरह इस सिद्धांत में संपूर्ण मानव जाति को एक समाज माना जाता है और मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दो तरह की सत्ताओं को बनाया गया है ।

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पहली है, लौकिक सत्ता यानी सांसारिक और

दूसरी है, अलौकिक सत्ता यानी आध्यात्मिकता सत्ता

Do Talwaron Ka Siddhant

दो तलवारों का सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि व्यक्ति के हित दो प्रकार के होते हैं । लौकिक और अलौकिक हित । इसके साथ ही साथ मनुष्य की प्रकृति भी दो तरह की होती है और उसका लक्ष्य भी दो तरह का माना जाता है ।

पहला है, एक संसारिक या भौतिक हित या लक्ष्य और

दूसरा है, आध्यात्मिक या धार्मिक हित या लक्ष्य ।

इन दोनों प्रकार के हितों और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दो तरह की सत्ताएँ बनाई गई हैं । भौतिक या सांसारिक सत्ता और दूसरी है आध्यात्मिक या अलौकिक सत्ता ।

मनुष्य के भौतिक व सांसारिक हितों को पूरा करने के लिए राज्यों का निर्माण किया गया है । वही आध्यात्मिक, धार्मिक, अलौकिक या मोक्ष की प्राप्ति के लिए चर्च, धार्मिक स्थल आदि बनाए गए हैं ।

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अगर हम बात करें पुराने विचारकों की तो यूनानी और रोमन विचारकों ने व्यक्ति के जीवन की एकता पर ज़ोर दिया था तथा भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को एक दूसरे का पूरक माना था । यह माना था कि व्यक्ति के सर्वागीण विकास के लिए राज्य ही पूर्ण तथा पर्याप्त संस्था है । जिसके द्वारा मनुष्य के भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार के जीवन को पूर्ण किया जा सकता है । इन विचारकों ने मनुष्य में आपसी तालमेल बिठाया ।

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लेकिन ईसाई चर्च की स्थापना के साथ राजनीतिक क्षेत्र में एक नई क्रांति पैदा हुई और इस युग के इसाई विचारकों ने दोहरे संगठन की आवश्यकता पर बल दिया । इन विचारकों ने यह बताया कि परमात्मा जो कि समस्त शक्तियों का स्रोत है, परमात्मा द्वारा मनुष्य दो शक्तियों या दो तलवारों (Two Powers Or Two Swords) के अधीन है और तलवार को शासन और सत्ता का प्रतीक बताया । उसने मानव समाज पर शासन के लिए 2 सत्ताओं को नियुक्त किया है । जिसका मतलब है कि एक तलवार उसने राज्यों को दी है और दूसरी तलवार पोप को दी है । इससे यह प्रतीत होता है कि संसार में दो प्रकार की सत्ताएँ बनाई गई हैं ।

एक तो है -राज्य तथा

दूसरी है -चर्च ।

इस सिद्धान्त के अनुसार पोप (Pope) को जहां आध्यात्मिक शासन का प्रधान माना जाता है । तो वहीं दूसरी ओर राज्य के राजा या सम्राट को लौकिक या सांसारिक शासन का मुख्य प्रधान माना जाता है ।

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प्राचीन काल में सामान्य रूप से यह धारणा प्रचलित थी कि राज्य तथा चर्च दोनों के अधिकार क्षेत्र अलग-अलग होने चाहिए और उन्हें एक दूसरे की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए तथा एक दूसरे के कार्य तथा क्षेत्र अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । यह विचार काफी हद तक ईसा मसीह के इस विचार पर आधारित था कि लौकिक विषयों में राजा के और आत्मिक विषयों में ईश्वर के आदेश का पालन किया जाए । अर्थात जो वस्तु राजा की है, उसे राजा को दे दिया जाएगा और जो ईश्वर की है, उसे ईश्वर के हवाले कर दिया जाएगा ।

दो तलवारों के सिद्धांत का सर्वप्रथम अत्यंत प्रभावशाली तथा प्रमाणिक विवेचन पोप ग्लॉसीस प्रथम (Pope Gelasius Ist) ने पांचवीं सदी के अंत में किया तथा यह प्रतिपादित करने का प्रयास किया कि धर्म सिद्धांत के विषय में सम्राट को अपनी इच्छा चर्च के आदेश के अधीन रखनी चाहिए । धार्मिक मामलों में राजा को बिशपों से सीखना चाहिए तथा सांसारिक विषयों में बिशपों को सम्राट द्वारा बनाए हुए कानूनों का पालन करना चाहिए ।

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मध्य युग में अनेक शताब्दियों तक यह स्थिति रही और राज्य तथा चर्च में कोई विवाद नहीं हुए । परंतु 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रोमन सम्राट हेनरी4 तथा पोप ग्रेगरी सप्तम के मध्य ‘दो तलवारों के सिद्धांत’ के कारण विवाद बढ़ गया था । यह विवाद इतना अधिक बढ़ गया था कि पोप ने रोमन सम्राट को ईसाई समाज से बाहर कर दिया था । राजा ने यह कहा कि

“मुझे मेरी सत्ता इश्वर से मिली है, इसलिए पोप(Pope) मेरे अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकते ।”

लेकिन वहीं पोप के समर्थकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि सत्ता का अंतिम स्रोत चर्च है और दोनों तलवारे यानी सत्ताएँ (Both Powers) चर्च की ही हैं ।

लंबे समय तक विवाद के बाद में इसमें राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि चर्च का संबंध केवल आध्यात्मिक जीवन से है । अतः उसे केवल धार्मिक संबंधित कार्यों में ही अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए । इसके अलावा सांसारिक कार्यों में सम्राट के कार्यों में पोप को कोई हस्तक्षेप का अधिकार नहीं ।

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राजनीति पर प्रभाव

इस तरह से देखा जाए तो दो तलवारों के सिद्धांत का मध्य युगीन राजनीतिक चिंतन पर गहरा प्रभाव पड़ा । लेकिन इससे राज्य और चर्च तथा राजा और पोप के मध्य जो संघर्ष उत्पन्न हुआ था । उसका कारण मुख्य रूप से यही था कि वह कि पोप को लौकिक मामलों में और राजा को धार्मिक मामलों में किस हद तक हस्तक्षेप का अधिकार है और कहां तक होना चाहिए । यद्यपि विवाद का मूल कारण दोनों सत्ताओं द्वारा अपनी अपनी शक्तियों व अधिकारों का टकराव रहा । और दूसरी तरफ एक दूसरे का आपस मे उच्च औऱ प्रभावी दिखाना रहा ।

निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो, दो तलवार के सिद्धांत का सार तत्व यह है कि संपूर्ण मानव जाति एक समाज है । किंतु उसकी दो प्रकार की अर्थात आध्यात्मिक और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ईश्वर ने 2 तरह की सत्ताओं का सृजन किया है । एक आध्यात्मिक और दूसरी अलौकिक । दोनों का अपना अपना अलग-अलग क्षेत्र है और दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र हैं और अपने अधिकार हैं ।  इसलिए दोनों को एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए और एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए ।

तो दोस्तों यह था वेस्टर्न पॉलिटिक्स में दो तलवारों का सिद्धांत । अगर यह पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें तब तक के लिए धन्यवाद !!

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