जॉन लॉक के मानव और प्राकर्तिक संबधी विचार

John Locke : Human and Natural Related Thoughts

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम आपके लिए लेकर आए हैं । Western Political Thought का महत्वपूर्ण Topic जॉन लॉक (John Locke) के मानव स्वभाव तथा प्राकृतिक अवस्था संबंधी विचारों के बारे में ।

जॉन लॉक 17 वी शताब्दी के प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक और विचारक थे । लॉक को उदारवाद की आत्मा कहा जाता है । उदारवाद का मूल तत्व स्वतंत्रता माना जाता है और जॉन लॉक ने अपने विचारों में स्वतंत्रता को शासन का सर्वोच्च लक्ष्य प्रदान किया ।

जॉन लॉक हॉब्स तरह एक समझौतावादी विचारक थे । जो मानते थे कि राज्य और सरकार की उत्पत्ति सामाजिक समझौते के द्वारा हुई है । लेकिन जॉन लॉक के विचार और मूल मान्यताएं हॉब्स के बिल्कुल विपरीत हैं ।

आज हम जानेंगे जॉन लॉक के मानव स्वभाव और प्राकृतिक अवस्था संबंधी विचारों के संबंध में ।

जॉन लॉक का जन्म 1932 में समरसेट कैरिंगटन नामक स्थान पर हुआ तथा इसकी मृत्यु सन 1704 में एसेक्स शहर में हुई ।

जॉन लॉक की राजनीतिक विचारधारा में उसके सामाजिक समझौता सिद्धांत का महत्वपूर्ण स्थान है । सबसे पहले हम उसके मानव स्वभाव तथा प्राकृतिक अवस्था के संबंध में जानेंगे ।

अन्य दर्शन पद्धतियों के अनुसार जॉन लॉक का दर्शन भी उसके मानव स्वभाव संबंधी दृष्टिकोण पर आधारित है । जॉन लॉक ने मानव स्वभाव का वर्णन आशावादी रूप में किया है और माना है कि मनुष्य के स्वभाव में अच्छाई है । वह एक दूसरे का सहयोग करता है तथा उसमें सहयोग, प्रेम, दया और सहिष्णुता की भावना पाई जाती है ।

जॉन लॉक शासन को व्यक्ति के स्वतंत्रता की प्राप्ति का साधन मानते है तथा उनका कहना है कि शासन की शक्ति की सीमाएं होनी चाहिए ताकि वह मानवीय स्वतंत्रता के विरुद्ध ना हो । लॉक ने आधुनिक युग में अधिकारों की संकल्पना प्रस्तुत की और माना जाता है कि व्यक्ति के अधिकार प्राकृतिक तथा जन्मजात हैं । इसके साथ उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिपादन किया तथा व्यक्तियों को प्रशासन के विरुद्ध विद्रोह का स्पष्ट अधिकार प्रदान किया ।

लॉक के मानव स्वभाव संबंधी विचार हॉब्स के विचारों से बिल्कुल अलग है तथा उसमें जमीन आसमान का अंतर है । यद्यपि जॉन लॉक ने भी देश निष्कासन तथा कष्ट में जीवन बिताया था । फिर भी उसका हृदय मनुष्य की स्वाभाविक अच्छाई, सहयोग आदि गुणों से अधिक प्रभावित रहा है ।

लॉक की प्राकृतिक अवस्था शांति की अवस्था थी संघर्ष की नहीं । जबकि हॉब्स ने जहां मनुष्य को स्वार्थी, पाशविक तथा पतित माना है । वही जॉन लॉक ने उसे सहयोगी तथा सामाजिक माना है । उन्होंने मानवीय गुणों पर अधिक बल दिया है ।

हॉब्स के विपरीत जॉन लॉक ने व्यक्ति को विचारशील और बुद्धिमान स्वीकार किया है । माना है कि व्यक्ति अपने विवेक से नेतृत्व व्यवस्था की सत्ता और उसके अनुसार कार्य करता है ।

मानव प्रकृति की धारणा में हॉब्स ने मनुष्य को पशु माना है । वहीं लॉक ने मनुष्य को एक नैतिक, व्यवस्था को स्वीकार करने वाला तथा उसके अनुसार आचरण करने वाला प्राणी माना है । हॉब्स के अनुसार मनुष्य जहां एकाकी पशु । वही जॉन लॉक के अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही एक सामाजिक प्राणी है । जो परस्पर सहयोग, प्रेम व दया भाव से दूसरों के साथ संबंध रखते हुए अपना जीवन गुजारता है ।

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हॉब्स की तरह जॉन लॉक ने भी प्राकृतिक अवस्था के बारे में बताया है । हॉब्स ने जहां प्राकृतिक अवस्था को सब के साथ सब के विरुद्ध युद्ध की अवस्था का वर्णन किया है । इसके विपरीत जॉन लॉक का मानना था कि प्राकृतिक अवस्था संघर्ष की अवस्था ना होकर शांति, सद्भावना, पारस्परिक सहायता तथा स्वतंत्रता की अवस्था है ।

जॉन लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक विधि तथा प्राकृतिक अधिकार दोनों विद्यमान होते हैं । उनके अनुसार प्राकृतिक विधि वह सार्वभौमिक नियम है, जो सुरक्षित सुनिश्चित होते हैं और प्राकृतिक अवस्था में यह नियम था कि

“तुम दूसरों के साथ वही बर्ताव करो जिसकी तुम दूसरों से अपने प्रति आशा करते हो ।”

जॉन लॉक के अनुसार प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित है और प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त प्राकृतिक अधिकार, इन्हीं प्राकृतिक नियमों पर आधारित है । प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों का ध्यान और सम्मान करता था ।

प्राकृतिक अवस्था में व्यक्तियों को तीन अधिकार प्राप्त है ।

1 जीवन का अधिकार

2 स्वतंत्रता का अधिकार और

3 संपत्ति का अधिकार

जॉन लॉक द्वारा संपत्ति के अधिकार के बारे में विचार पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

जॉन लॉक वह प्रथम विचारक हैं, जिसने आधुनिक युग में अधिकारों की संकल्पना को प्रस्तुत कीया था । जॉन के अनुसार व्यक्ति को प्राप्त प्राकृतिक अधिकार, प्राकृति द्वारा या जन्मजात हैं और यह व्यक्ति से अलग नहीं किए जा सकते । जॉन लॉक का यह मानना है कि इन प्राकृतिक अधिकारों की प्राप्ति राज्य, समाज से नहीं हुई । बल्कि इन प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए ही राज्य सरकार की स्थापना की जाती है ।

इन अधिकारों में जॉन लॉक का संपत्ति का अधिकार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है । प्राकृतिक अवस्था में जब सभी व्यक्ति समान थे और सबको समान अधिकार प्राप्त है, तो एक व्यक्ति की निजी संपत्ति को कैसे अलग किया जा सकता है । जॉन लॉक ने यहां “श्रम के मूल सिद्धांत” का सहारा लेते हुए स्पष्ट किया है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा तथा कार्य करने के लिए स्वतंत्र है और व्यक्ति के शरीर पर उसका अपना नियंत्रण है ।

जॉन लॉक के संपत्ति सिद्धान्त को पढ़ने के लिए Click करें ।

इस प्रकार जॉन लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति, प्रकृति द्वारा बनाये गए प्राकृतिक नियमों, विधियों के अनुसार चलते हैं । अपने प्राकृतिक अधिकारों का उपयोग करते हैं । इस तरह प्रकर्ति में मनुष्य में शांति तथा व्यवस्था बनी हुई है ।

तो दोस्तों ये थे जॉन लॉक द्वारा मानव सम्बन्धी विचार, अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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