गांधी जी द्वारा राजनीति का आध्यात्मीकरण

Spiritualization of Politics by Gandhiji

Hello दोस्तों gyaanuday में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में महात्मा गांधी जी के विचारों के बारे में । आज हम जानेंगे कि गांधी जी के द्वारा राजनीति का आध्यात्मिकरण (Spiritualization of Politics) क्या है ? महात्मा गांधी की सबसे बड़ी महत्वपूर्ण व मौलिक देन राजनीति का आध्यात्मीकरण करना है । गांधीजी राजनीतिज्ञ से पहले एक धार्मिक व्यक्ति थे । उन्होंने राजनीति और धर्म के बीच एक अटूट रिश्ता कायम किया है ।

राजनीति का आध्यात्मीकरण क्या है ?

राजनीति के वर्तमान और प्रचलित अर्थ को नकारते हुए गांधी जी ने इसे नया रूप दिया । गांधी जी राजनीतिक विचारक ना होकर, जीवन के कलाकार व धर्म के उपासक थे । उनके जीवन का उद्देश्य किसी वाद या सिद्धांत का प्रतिपादन करना नहीं था । बल्कि आत्मदर्शन, ईश्वर का साक्षात्कार और मोक्ष था । इसीलिए गांधीजी ने धर्म को मानव जीवन की कड़ी बनाया और उसे राजनीति के साथ एक अटूट रिश्ते के रूप में जोड़ दिया । गांधीजी ने छल कपट पूर्ण, राजनीति की निंदा करते हुए इसे एक सांप की संज्ञा दी है । उनका मानना है कि धर्म के बिना, इस राजनीति का कोई प्रयोजन नहीं है ।

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इसीलिए गांधीजी ने राजनीति के विकृत रूप को मिटाने के लिए राजनीति का आध्यात्मिकरण किया । इससे पहले राजनीति धर्म और नैतिकता के सभी नियमों को ताक पर रखने वाले दुष्ट, चलाक, अवसरवादी, विवेकशून्य राजनीतिज्ञों का रंगमंच मानी जाती थी । आम आदमी की दृष्टि में दूसरों को मूर्ख बनाना तथा धोखा देना ही राजनीति माना जाता था ।

गांधी जी ने राजनीति को सत्य और अहिंसा पर आधारित करके इसमें उच्च नैतिकता और धार्मिकता की भावना का सम्मिश्रण किया । गांधी जी ने ही राजनीति के विकृत रूप के बारे में लिखा है, कि-

“मैं जिन धार्मिक व्यक्तियों से मिला हूं, उनमें से अधिकांश छिपे परिवेश में राजनीतिज्ञ हैं   किंतु राजनीतिज्ञ का चोला धारण करने वाला मैं अपने हृदय से एक धार्मिक व्यक्ति हूं ।”

गांधीजी ने राजनीति के विकृत रूप अर्थात धर्म ही राजनीति के बारे में आगे यह कहा है कि-

“यदि मैं राजनीति में भाग लेता हूं, तो इसका कारण यही है कि राजनीति हम सबको साँप के समान घेरे हुए हैं । जिसमें कोई चाहे कितनी ही चेष्टा करें, बाहर नहीं निकल सकता । मैं उस साँप से युद्ध करना चाहता हूं । मैं राजनीति में धर्म का समावेश करना चाहता हूं ।”

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गांधी जी के इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि गांधी जी ने राजनीति में हिस्सा उसे जनसेवा का साधन बनाने के लिए ही लिया । गांधीजी ने जीवन भर राजनीति में ऐसे प्रयोग किए, जो जनकल्याण को बढ़ावा देने वाले थे । गांधीजी का मानना था कि धर्म, समाज के प्रत्येक पक्ष से संबंधित हैं । इसी तरह राजनीति भी प्रत्येक क्रियाकलाप को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य प्रभावित करती है । यदि इन दोनों का मेल कर दिया जाए, तो इससे बढ़कर जनकल्याण का साधन अन्य दूसरा कोई नहीं हो सकता ।

गांधीजी धर्म से अलग राजनीति का कोई महत्व नहीं मानते थे । गांधी जी ने आगे कहा है कि-

“मेरे लिए धर्म के बिना राजनीति का कोई अस्तित्व नहीं है । राजनीति धर्म के अंतर्गत है । धर्म से विमुख राजनीति मृत्यु का फंदा है, क्योंकि यह आत्मा को मार देती है ।”

गांधी जी का कहना है कि जो लोग कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है । वह धर्म का अर्थ ही नहीं जानते । गांधीजी के अनुसार धर्म से राजनीति को अलग करना मानवता की हत्या करने के समान है । जो धार्मिक रूचि रखते हैं तथा जिनमें सत्य तथा ईश्वर की खोज करने की लगन है । इसी कारण से गांधी जी ने राजनीति में प्रवेश किया और आजीवन सत्य और ईश्वर की खोज में लगे रहे ।

आध्यात्मिककरण का कारण

गांधी जी एक महान कर्मयोगी थे । उनका राजनीति का आध्यात्मिकरण करने के पीछे मूल कारण नैतिकता के दोहरे मापदंडों को समाप्त करना था । गांधीजी की दृष्टि में राजनीति धर्म और नैतिकता की एक शाखा थी । इसीलिए गांधीजी ने राजनीति में प्रवेश का अर्थ सत्य और न्याय की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होना माना था । इसी वजह से गांधी जी ने राजनीति व धर्म को स्वीकार किया और गांधी जी का यह भी मानना था कि आज तक भारत को पिछड़ने का कारण राजनीति से धर्म को अलग रखना ही था । उनका यह भी मानना था कि प्रत्येक आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक कार्य किसी न किसी रूप से धर्म के साथ जुड़े हुए हैं । गांधी जी आगे लिखते हैं कि

“सारी मानव जाति से अभिन्नता ही मेरा धर्म है और मेरी राजनीतिक गतिविधि, उस धर्म पर आचरण करने का ढंग, मनुष्य की गतिविधियों के क्षेत्र को आज विभाजित नहीं किया जा सकता और ना ही सामाजिक, आर्थिक एवं आर्थिक कार्यों को एक दूसरे से विभक्त करने वाली स्पष्ट सीमा रेखाएं ही खींची जा सकती है ।”

इस प्रकार गांधी जी ने राजनीति व धर्म को एक सिक्के के दो पहलू मानकर राजनीति का आध्यात्मिकरण किया । गांधीजी की नजरों में धर्म और राजनीति के बीच वही संबंध समझा जाता है, जो शरीर और आत्मा में होता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि गांधी जी ने राजनीति का आध्यात्मिकरण सिद्धांत के तौर पर ही नहीं किया, बल्कि उसे व्यावहारिक स्तर पर ही लागू किया । उन्होंने अपने धार्मिक विश्वासों आस्तिकता, अद्वेत की कल्पना, सत्य, अपरिग्रह आदि को राजनीति क्षेत्र में लागू करके राजनीति का आध्यात्मिकरण किया है ।

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इस तरह से प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य धर्म और राजनीति से जुड़ा हुआ है । इसलिए गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का समावेश राजनीति में करके उसे एक नया रूप दिया है । अर्थात गांधीजी का यही सबसे महान कार्य है कि उन्होंने सत्य और अहिंसा के प्रयोगों से राजनीति का आध्यात्मीकरण किया । गांधी जी द्वारा राजनीति का आध्यात्मीकरण वर्तमान नैतिकता विहीन राजनीति और राजनीतिज्ञों के लिए न केवल एक संदेश बल्कि एक चुनौती भी है, कि राजनीति के मूल आधार क्या होने चाहिए ।

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तो दोस्तों यह था गांधी जी के राजनीति के आध्यात्मिकरण को लेकर उनके विचार और गांधीजी का राजनीति को लेकर महत्वपूर्ण योगदान रहा । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो, अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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