अरस्तू के दास प्रथा संबंधित विचार

Aristotle’s views on Slavery

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका एक बार फिर स्वागत हैं और आज हम बात करेंगे पश्चिमी राजनीति राजनीति विज्ञान में अरस्तू के दास प्रथा संबंधी विचारों के बारे में और साथ ही साथ में जानेंगे इसकी विशेषताएं, प्रकार और इसीकी आलोचनाओ के बारे में । तो जानते हैं आसान भाषा में ।

अरस्तु का परिचय

अरस्तु को प्राचीन यूनान का एक महान विचारक और दार्शनिक माना जाता हैं । अरस्तु को राजनीतिक का जनक भी माना जाता है । अरस्तु ने यूनान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कई विषयों पर अपने विचार दिए, जिनमें प्रमुखता राज्य, न्याय, नागरिकता और दास प्रथा आदि विषयों को शामिल किया जाता है । हालांकि अरस्तु के विचारों को आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है । आइए जानते हैं, अरस्तु के दास प्रथा संबंधी विचारों के बारे में ।

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अरस्तू के दास प्रथा संबंधी विचार

प्राचीन काल से ही यूनानी जगत में दास प्रथा सामाजिक जीवन का आवश्यक अंग थी । घरेलू तथा श्रम संबंधी कार्य दासों के द्वारा ही किए जाते थे । अरस्तु के दास प्रथा संबंधी विचार उसकी रूढ़िवादिता को दर्शाते हैं, क्योंकि अरस्तु ने दास प्रथा का समर्थन किया है । क्योंकि अपने जीवन के प्रारंभ से ही अरस्तू ने यूनान में दासप्रथा को देखा है ।

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हालांकि कुछ लोगों ने मानवता के आधार पर दास प्रथा का विरोध भी किया है । जैसे एंटीफोन सॉफिस्ट के अनुसार

“दासता प्राकृतिक ना होकर परंपरागत है और मानवीय समानता के सिद्धांत के विरुद्ध भी है ।”

इस तरह से अरस्तु ने दास प्रथा को नियोचित बताया है । अरस्तु के अनुसार दास किसी संपत्ति की भांति होता है, जो कि सजीव है । संपत्ति को अरस्तु ने दो भागों में बांटा है ।

1 सजीव संपत्ति यानी दास

2 निर्जीव संपत्ति यानी भूमि, घर और दूसरी अचल संपत्तियां

इस तरह अरस्तू ने सजीव संपत्ति के अंतर्गत पारिवारिक संपत्ति, उनके सदस्य, परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक बताया है ।

अरस्तु के दास प्रथा की विशेषता

अरस्तु के अनुसार दासता प्राकृतिक है तथा प्रकृति ने ही मनुष्य में विभेद किया है । प्रत्येक व्यक्ति की बुद्धि, योग्यता, क्षमता, गुण अलग-अलग होते हैं । इस तरह शासन करने वाले व्यक्ति को स्वामी कहा जाता है, जो अपने बुद्धि, बल के आधार पर दूसरों पर स्वामित्व करता है । इसी तरह अरस्तु के अनुसार आज्ञा मानने का गुण दास के अंदर पाया जाता है, जो कि शारीरिक बल की प्रधानता के आधार पर किया जाता है ।

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अरस्तु के अनुसार

“प्रकृति स्वतंत्र पुरुष और दास के शरीरों में भेद करती है । दास के शरीर को सेवाभाव के लिए बलवान बनाती है तथा स्वतंत्र पुरुष या स्वामी के शरीर को सीधा तथा सरल ।”

अरस्तु ने दास प्रथा को दोनों पक्षों के लिए लाभकारी बताया है । स्वामी तथा दास दोनों आपस में एक दूसरे से संबंध रखते हैं । अरस्तु के अनुसार स्वामी यानी शासनकर्ता नैतिक तथा बौद्धिक विकास के लिए तथा विश्राम के लिए माना जाता है । जबकि दास को एक विवेक सुनने और निर्गुणी बताया जाता है । इससे दासो का विकास संयम और विभाग विवेक को स्वामी के  लिए होता है ।

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अरस्तु के अनुसार दासप्रथा नैतिक है, क्योंकि स्वामी और दासों के नैतिक स्तर में बहुत ज्यादा अंतर होता है । नैतिकता के लिए दासों के विकास को बहुत जरूरी माना गया है । जबकि स्वामी, दासों के प्रति दयालु तथा इसमें ही होते हैं । दास स्वामी की आज्ञा का पालन करता है । दास स्वामी के सानिध्य में रहकर ही दास के नैतिक विकास और व्यक्तित्व का विकास संभव माना जाता है ।

दासों के प्रकार

आइए अब जानते हैं अरस्तु के अनुसार दास प्रथा के प्रकार के बारे में ।

 । अरस्तु ने दो प्रकार बताए हैं, जो कि निम्नलिखित हैं ।

1) स्वाभाविक दासता

2) वैधानिक दासता

अरस्तु के अनुसार जो जन्म से ही मंदबुद्धि, अकुशल और अयोग्य व्यक्ति में उत्पन्न इस तरीके के प्राकृतिक अवगुण को स्वाभाविक दासता का नाम दिया जाता है ।

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इसी प्रकार अरस्तु दासता के कुछ मानवीय पक्ष भी बताए हैं । दासों के प्रति उदारता का व्यवहार, स्वामी दास के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध का पक्षधर होना । इसी तरह वह दासों की संख्या बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं । दासों को मुक्ति के अवसर मिलने आवश्यक हैं ।

अरस्तु के दासप्रथा सिद्धांत की आलोचना

संपूर्ण मानव समुदाय को गुण और योग्यता के आधार पर दो वर्गों में विभाजित कर देना ।

अरस्तु के तर्क में स्वामी और दास का निर्धारण करने का कोई उचित मापदंड नहीं पाया जाता है ।

दास प्रथा को प्राकृतिक नहीं माना जा सकता । मानवीय गरिमा तथा समानता की अवहेलना ।

दासता सिद्धांत में अनेक विरोधाभास पाए जाते हैं ।

दासता को प्राकृतिक भी मानना तथा उससे मुक्ति की बात भी की गई है ।

स्वतंत्रता और समानता के माननीय सिद्धांतों पर चोट ।

जातिगत अहंकार की भावना जब वह कहता है कि यूनानीयों को दास नहीं बनाया जा सकता ।

निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो अरस्तू जैसे विचारक भी दासप्रथा जैसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त पाए जाते हैं । साथ ही साथ पक्ष में भी क्योंकि अरस्तु ने दासप्रथा में सुधार के प्रयास भी किये । क्रूर दासप्रथा के स्थान पर उसे मानवीय आधार देने की कोशिश की गई ।

तो दोस्तों ये था अरस्तु का दासप्रथा संबंधित विचारों के बारे में साथ ही साथ हमने इसके प्रकार और विशेषताओं के बारे में जाना । अगर आपको Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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