अरस्तु के नागरिकता पर विचार

Aristotle’s Theory of Citizenship

नागरिकता पर अरस्तु के विचार

Hello दोस्तों ज्ञानोदय में आपका स्वागत है । आज हम बात करते हैं, नागरिकता पर अरस्तु की विचारों की (Aristotle Views on Citizenship) । अरस्तु को राजनीति का जनक माना जाता है । अरस्तू प्राचीन यूनानीयों के एक महान विचारक और दार्शनिक थे । अरस्तु ने यूनान की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने विचार दिए । राज्य, न्याय, नागरिकता आदि विषयों पर अरस्तु के विचारों को आज भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । अरस्तू पहले विचारक थे, जिसने नागरिकता पर अपने विचार दिए ।

इस Topic की Video देखने के लिए यहाँ Click करें ।

अरस्तु के अनुसार जिस तरह कोई वस्तु अनेक चीजों के मिलने से बनती है, उसी तरह नागरिकों के मिलने से राज्य बनता है । लेकिन नागरिक कौन है ? नागरिकता का मतलब क्या है ? इस बारे में लोगों के विचार अलग-अलग हो सकते हैं । अगर कोई व्यक्ति लोकतंत्र में नागरिक है तो यह जरूरी नहीं कि वह गुटतंत्र के अंदर, सैनिक शासन के अंदर या राजतंत्र में भी नागरिक हो । इसलिए नागरिकता का अर्थ अलग-अलग लोगों के हिसाब से अलग-अलग माना जाता है ।

कौटिल्य के सप्तांग सिद्धान्त के लिए यहाँ Click करें ।

सप्तांग सिद्धान्त की Video के लिए यहाँ Click करें ।

अरस्तु के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी राज्य का निवासी है, तो उसका नागरिक होना अवश्य नहीं है, क्योंकि राज्य के अंदर तो दूसरे राज्य के नागरिक और दास भी रहते हैं । अगर किसी व्यक्ति को दूसरों पर मुकदमा चलाने का अधिकार है तो उसे भी नागरिक नहीं माना जा सकता क्योंकि मुकदमा चलाने का अधिकार तो संधि या समझौते से भी मिल सकता है । इसी तरह किसी स्थान विशेष पर रहने वाले व्यक्ति को भी नागरिक नहीं कहा जा सकता । इस तरह अरस्तु ने हमें बताया कि नागरिक और निवासी में बहुत बड़ा फर्क होता है । सबसे पहले अरस्तु हमें बताते है कि

नागरिक कौन नहीं है ?

अरस्तु के अनुसार नागरिकता किसी स्थान पर रहने से नहीं आ सकती । अगर ऐसा होता तो विदेशी और दास भी नागरिक समझे जाते । कानूनी अधिकार मिलने से भी नागरिकता नहीं मिल सकती क्योंकि कानूनी अधिकार तो संधि या समझौते से किसी को भी मिल सकते हैं । राज्य से निकाले गए या मताधिकार से वंचित किए गए लोगो को भी नागरिक नहीं माना जा सकता । बच्चे जिनकी उम्र कम हैं इसलिए उनका नाम नागरिक सूची में नहीं है तो इसलिए उन्हें भी नागरिक नहीं माना जा सकता । इसके अलावा बूढ़े जिनकी उम्र ज्यादा है, उन्हें नागरिकता के कर्तव्य से मुक्त कर दिया गया है उन्हें भी नागरिक नहीं कहा जा सकता । इसी तरह से उन लोगों को भी नागरिक नहीं माना जा सकता, जिनके माता-पिता नागरिक थे या जिसने उसी राज्य में जन्म लिया क्योंकि नागरिकता किसी स्थान पर जन्म लेने से नहीं मिल सकती ।

टी. एच. मार्शल द्वारा नागरिकता का सिद्धान्त को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

Theory of citizenship by TH Marshall in Hindi की video के लिए यहाँ Click करे ।

इस तरह आज अरस्तु ने हमें यह भी बताया कि कोई भी नागरिक नहीं है । ना बच्चे नागरिक हैं, ना बढ़े नागरिक हैं, और ना विदेशी नागरिक हैं, ना निवासी नागरिक हैं, ना दास नागरिक हैं । अरस्तु ने नागरिकता के निर्धारण के लिए जन्म स्थान, निवास और कानूनी अधिकारों को स्वीकार नहीं किया ।

नागरिक कौन है ?

अब सवाल यह पैदा होता है कि नागरिक आखिर है कौन है ? इस बारे में अरस्तु ने हमें साफ-साफ बताया है कि

“नागरिक वह व्यक्ति है जो कानून बनाता है और न्याय प्रशासन में भाग लेता है ।”

अरस्तू ने यूनान की परिस्थितियों के अनुसार अपने विचार दिए थे । अरस्तु के दौर में यूनान में उस समय जनसंख्या बहुत कम थी । इसलिए सभी नागरिक एक जगह पर इकट्ठा हो जाते थे । मिलकर कानून बनाते थे और न्याय करते थे । इस तरह विदेशी, निवासी, बच्चे, बूढ़े, दास, महिलाएं और कानूनी अधिकार प्राप्त व्यक्ति, ना तो कानून बनाते थे और ना ही न्याय करते थे । इसलिए अरस्तु ने उन सभी को नागरिक नहीं माना ।

राजनीति सिद्धान्त (Political Theory in Hindi) के बारे पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

Political Theory (राजनीति सिद्धान्त) की Video के लिए यहाँ Click करें ।

अरस्तु के अनुसार नागरिक की परिभाषा ।

एक नागरिक उस तरह के गुण युक्त होता है, जिस तरह नाव को अच्छी तरह चलाने के लिए नाविक के अंदर कुछ विशेष गुण होने चाहिए । ठीक उसी तरीके से राज्य को चलाने के लिए नागरिकों के अंदर भी कुछ विशेष गुण होने चाहिए । जैसे एक ड्राइवर होता है । अगर ड्राइवर अच्छा होगा तभी गाड़ी अच्छी चलेगी अगर ड्राइवर अच्छा नहीं है तो गाड़ी अच्छी नहीं चलेगी । उस वक्त गाड़ियां नहीं थी उस वक्त नाव चलती थी । इसलिए अरस्तु ने नागरिक की तुलना नाव का इस्तेमाल से किया । नाव को चलाने के लिए नाविक अच्छे होने चाहिए, ठीक है राज्य को अच्छे तरीके से चलाने के लिए नागरिकों के अंदर भी अच्छे गुण होने चाहिए ।

नागरिकों के गुण

अब नागरिकों के अच्छे गुण कौन से हैं । नागरिक संविधान के साथ जुड़ा हुआ हो, अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करता हो और न्याय प्रदान करते समय निष्पक्ष रहता हो ।

बी. आर. अम्बेडकर के जाति व्यवस्था पर विचारों को पढ़ने के लिए यहाँ Click करें ।

B.R. Ambedkar के विचारों की video के लिए यहाँ Click करे ।

सिद्धान्त की आलोचना

लेकिन अरस्तु के नागरिकता के सिद्धांत की आलोचना भी की जा सकती है । अरस्तु का नागरिकता का जो सिद्धांत है । वह आज के लोकतंत्र के खिलाफ है । क्योंकि अगर आज अगर अरस्तु के विचारों का अपनाया जाए तो मुट्ठी भर लोगों को ही नागरिकता मिलेगी । अगर हम अरस्तु के नागरिकता के सिद्धांत को अपनाते हैं तो तो सिर्फ बड़े-बड़े मंत्रियों को भी नागरिकता मिलेगी या फिर जजों को ही नागरिकता मिलेगी और बहुत सारे लोग नागरिकता से वंचित हो जाएंगे । अरस्तु ने महिलाओं को भी नागरिकता नहीं दी, जबकि महिलाओं के अंदर योग्यता होती है । बूढ़े को भी नहीं जबकि बूढ़ों के पास बहुत तजुर्बा होता है । जिसका फायदा उठाया जा सकता है । अरस्तु दास को भी नागरिकता नहीं देता जिस से भेदभाव को बढ़ावा मिलता है तो इस तरीके से अरस्तू के विचार है वह आज के लोकतांत्रिक देशों में लागू नहीं होता है । लेकिन उस परिस्थिति के हिसाब से यानि यूनान की परिस्थिति के हिसाब से आज भी विचाराधीन है ।

तो दोस्तों ये था नागरिकता पर अरस्तु के विचार (Views of Arastu of citizenship) आप इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ share करें ।

This Post Has 2 Comments

  1. GOPAL GODARA

    Wawo very nice bro good knowledge

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.