अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार

Right to Constitutional Remedies: Article 32 in hindi

Hello दोस्तो ज्ञान उदय में आपका स्वागत है । आज हम जानेंगे भारतीय संविधान में अनुच्छेद 32 के बारे में यानी संवैधानिक उपचारों के अधिकार के बारे में । यह मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14 से लेकर अनुच्छेद 32 तक) में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार माना जाता है । संविधान के भाग 3 में वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं । मौलिक अधिकारों के बारे जानने के लिए यहाँ Click करें । तो चलिए आसान भाषा में समझते हैं ।

मौलिक अधिकारों के बारे जानने के लिए यहाँ Click करें ।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार

भारतीय संविधान के भाग 3 में छह मौलिक अधिकार दिए गए हैं । इनमें से सबसे महत्वपूर्ण जो मौलिक अधिकार हैं, वह है ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ अनुच्छेद 32, (Right to Constitutional Remedies Article 32). संवैधानिक उपचारों के अधिकार को मौलिक अधिकारों की आत्मा भी कहा जाता है, क्योंकि ये अधिकार दूसरे मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है । डा. अम्बेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा है । जिसमें भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उचित संरक्षण देने के लिए महत्वपूर्ण कानूनी लेख (Writs) दिए गए हैं ।

ौलिक अधिकारों की आत्मा

संवैधानिक उपचारों के अधिकार (अनुच्छेद 32) को मौलिक अधिकारों की आत्मा क्यों कहा जाता है ? जिस तरीके से बिना आत्मा के शरीर बेकार है, शरीर किसी काम का नहीं है । यानी अगर शरीर के अंदर से आत्मा निकाल दी जाए तो शरीर बेकार है । शरीर से हम कोई काम नहीं ले सकते ठीक उसी तरीके से अगर मौलिक अधिकारों से संवैधानिक उपचारों के अधिकार को निकाल दिया जाए तो, मौलिक अधिकारों का कोई महत्व नहीं रह जाता । मौलिक अधिकार बेकार हो जाते हैं ।

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संवैधानिक उपचारों के अधिकार में बताया गया है कि अगर किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार छीन लिए जाऐं तो, वह व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है । न्यायालय हमें हमारे अधिकार दिलाने के लिए पांच लेख (writs) जारी करता है । जो कि निम्नलिखित हैं ।

1) बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

2) परमादेश (Mandamus)

3) प्रतिषेध (Prohibition)

4) अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

5) उत्प्रेषण (Certiorari)

पढ़े :: भारतीय संविधान के भाग Parts of Indian Constitution

पढ़े :: भारतीय संविधान की प्रस्तावना Preamble of Indian Constitution

आइये इन लेखों को विस्तार से जान लेते है । जिसमें से सबसे पहला है ।

1 बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख (Habeas Corpus)

यानी शरीर को हमारे सामने पेश करो |

बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख के जरिए न्यायालय गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपने सामने पेश करने का आदेश दे सकता है । अगर न्यायालय पाता है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से या उसे बेवजह गिरफ्तार किया गया है तो न्यायालय उसे छोड़ने का भी आदेश दे सकता है ।

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2 परमादेश लेख (Mandamus)

यानी हम आज्ञा देते हैं |

दूसरा है, परमादेश लेख यानी हम आज्ञा देते हैं । परमादेश लेख के जरिए न्यायालय किसी संस्था को अपने कर्तव्यों का पालन करने के आदेश दे सकता है । जैसे कि उदहारण के लिए अगर कोई विश्वविद्यालय अपने किसी 5 विद्यार्थियों को डिग्री ना दे या कोई संस्था अपने कर्मचारियों को बिना कारण बताए नौकरी से निकाल देती है । तो उस दशा में न्यायालय विश्वविद्यालय या संस्था को आदेश दे सकता है कि अब आप अपने कर्तव्यों का पालन करो । इस व्यक्ति को नोकरी दो या विद्यार्थी को डिग्री दो । उसे नौकरी से क्यों निकाला । संस्था से कारण बताओ नोटिस लिया जायेगा ।

3 प्रतिषेध लेख (Prohibition)

यानी मना करना |

अगर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय पाता है कि अधीनस्थ न्यायालय अपने कार्य क्षेत्र से बाहर जाकर कोई कार्य कर रहा है, किया है या कोई ऐसा कार्य कार्य कर रहा है, जो उसके अधिकार में नहीं है । तो ऐसे में उच्च/सर्वोच्च न्यायालय उसे माना कर सकता है और रोक सकता है । इसे ही कहते हैं, प्रतिषेध लेख यानी कि मना करना ।

4 अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

यानी किस अधिकार से |

अगर किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा काम किया है, जिसका उसे अधिकार नहीं था । तो न्यायालय उससे पूछ सकता है कि आपने यह काम किस अधिकार से किया । इसे ही अधिकार पृच्छा कहते हैं । जैसे कि सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट की जो उम्र है, लगभग 60 या 65 साल है । अब कोई व्यक्ति इस उम्र के बाद भी अपनी नौकरी पर बना रहता है या अपने अधिकार का इस्तेमाल गलत करता है, तो ऐसे में न्यायालय उससे पूछ सकता है कि आप किस अधिकार से इस पद पर बने हुए हो और न्यायालय उससे जबरदस्ती हटाने का भी आदेश दे सकता है ।

5 उत्प्रेषण लेख (Certiorari)

यानी पूर्णत सूचित कीजिए |

अगर न्यायालय को यह लगता है कि किसी मुकदमे की सुनवाई अधीनस्थ न्यायालय केंद्र में ठीक तरीके से नहीं चल पा रही है । या ठीक तरीके से किसी मुकदमे की सुनवाई नहीं हो रही है, तो सर्वोच्च न्यायालय/ उच्च न्यायालय अधिनस्थ न्यायालय से मुकदमा अपने पास ले लेता है और सारे कागज अपने पास मंगा लेता है और कहता है, उस प्रेक्षक लेख यानी पूरी तरह सूचित कीजिए । अब इस मुकदमे की सुनवाई इस न्यायालय के साथ होगी ।

इस तरीके से संवैधानिक उपचारों के अधिकारों को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है । बिना संवैधानिक उपचारों के अधिकारों के बिना सारे के सारे अधिकार बेकार है ।

अब हमने अधिकारों के बारे में तो बात कर ली जरा कर्तव्यों के बारे में भी जान लेते हैं |

मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)

कर्तव्य ऐसी जिम्मेदारियों को कहते हैं जो एक नागरिक को दूसरे नागरिक के प्रति देशवासियों के प्रति और देश के प्रति निभानी पड़ती है । हर अधिकार के साथ एक कर्तव्य जुड़ा होता है । जैसे कि मुझे जीने का अधिकार है । तो अब मेरा यह कर्तव्य है । मेरी यह जिम्मेदारी है कि मैं दूसरों को भी जीने दूं । किसी दूसरे की जान ना लूँ, अगर मैं अपना कर्तव्य तोड़ता हूं तो किसी दूसरे इंसान का अधिकार छिन सकता हैं । इसलिए कहते हैं “जियो और जीने दो” ।

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