अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धांत के बारे में । इस Topic में हम जानेंगे अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धांत का क्या अर्थ होता है ? साथ ही साथ जानेंगे लास्की के विचार उदारवादी और समाजवादी मूल्यों के बारे में, अधिकारों का नैतिक आधार, सामाजिक और आर्थिक सुधार के बारे में । चलिए शुरू करते हैं आसान भाषा में ।

अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धांत का अर्थ

अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धांत प्रत्येक व्यक्ति से सम्बंध रखता है, यह व्यक्तित्व पर बल देता है । इस सिद्धांत को व्यक्तिगत या व्यक्तित्व सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में खास है, जो कोई न कोई गुण लेकर पैदा हुआ है, व्यक्ति में हर काम को करने की योग्यता और क्षमता होती है । प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व में कुछ, कला, गुण, विशेष ज्ञान या शक्तियां अंतर्निहित होती हैं । जिनका विकास मनुष्य के विकास का सूचक होता है । इन शक्तियों के विकास के लिए संगठित समाज की आवश्यकता होती है । जो सुविधाएं प्रदान कर सके, जो भी सुविधाएं समाज द्वारा स्वीकृत तथा राज्य द्वारा मान्यता प्रदान कर दी जाती है, वह व्यक्ति के अधिकार के रूप में जानी जाती हैं ।

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एन वाइल्ड के अनुसार

“अधिकार कुछ कार्य को करने में युक्ति और विवेक पूर्ण स्वाधीनता का दावा है ।”

अधिकार हर मनुष्य के लिए आवश्यक है । अधिकारों के बिना कोई भी व्यक्ति उस स्थिति तक नहीं पहुंच सकता, जहां तक पहुंचने की उसमें योग्यता और क्षमता होती है । किसी व्यक्ति का सबसे बड़ा अधिकार उसके व्यक्तित्व का अधिकार होता है ।

अगर बात करे सबसे प्रमुख समर्थक की तो कांट ने अधिकारों के सिद्धान्त के विषय मे स्पष्ट व्याख्या दी है, जो ग्रीन के विचारों में मिलती है । इस तरह ग्रीन के अनुसार-

“अधिकार मनुष्य के आंतरिक विकास की भह्य अवस्थाएं हैं ।”

जिसकी तुलना हम समाज से नैतिक स्तर पर कर सकते हैं । अधिकारों का मूल मनुष्य के मस्तिष्क व हृदय में है । अधिकारों के सभी सिद्धांतों का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि आदर्शवादी सिद्धांत सबसे उपयुक्त है । परंतु समस्या वहां उत्पन्न होती है, जब हम व्यक्तित्व की धारणा को अमल में लाने की कोशिश करते हैं । व्यक्तित्व का विचार एक आत्मघाती विचार है तथा हम दूसरों के विचारों को भी अच्छी तरह से नहीं जान सकते ।

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अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धान्त की विशेषता

इसके अलावा इस सिद्धांत की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें व्यक्तित्व के अधिकार को मुख्य अधिकार माना गया है तथा अन्य अधिकारों को इससे उत्पन्न हुआ माना जाता है ।

क्योंकि प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत में कई अधिकारों को पूरी तरह से सर्वोच्च अधिकार माना गया है ।

अधिकारों के आदर्शवादी सिद्धांत पर लास्की के महत्वपूर्ण विचार

इस तरह लास्की ने अधिकारों के विषय मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उन्होंने अपनी पुस्तक “ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स 1925″ में अधिकारों की एक तर्कसंगत व्याख्या प्रस्तुत की है । जिसमें उदारवादी और समाजवादी विचारों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है । लास्की में उदारवादी, व्यक्तिवादी सिद्धांत को नया मोड़ देते हुए नकारात्मक अधिकारों के साथ साथ सकारात्मक अधिकारों की उचित व्याख्या पर बल दिया है ।

अधिकारों के संबंध में लास्की ने मुख्य मान्यताओं को बताया है, जो कि निम्नलिखित हैं ।

1) उदारवादी और समाजवादी मूल्यों का समन्वय

लास्की के अनुसार राज्य को व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए उसे आर्थिक सुरक्षा भी प्रदान करनी चाहिए । लास्की ने अपने सिद्धांत में उदारवाद से जुड़े राजनीतिक अधिकारों तथा समाजवाद से जुड़े आर्थिक अधिकारों का समर्थन किया है । इसमें यह मालूम हो कि एक उदारवादी चिंतक होने के कारण लास्की स्वतंत्रता का भी समर्थक है तथा वह मानता है कि बिना सामाजिक आर्थिक समानता के स्वतंत्रता बेकार है ।

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इसलिए वह पूंजीवादी व्यवस्था में निहित सामाजिक आर्थिक समानता तथा सोवियत संघ जैसी समाजवादी व्यवस्था में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आरोपित प्रतिबंधों को समाप्त करने के लिए प्रयासरत है ।

2) अधिकारों का नैतिक आधार

लास्की ने अधिकारों के नैतिक आधार पर उचित ठहराते है । लास्की के अनुसार-

“हर राज्य की पहचान इस बात से होती है कि उसने किन अधिकारों को मान्यता दे रखी है । राज्य अधिकारों को जन्म नहीं देता बल्कि उन्हें मान्यता प्रदान करता है ।”

इस तरह अगर देखें तो अधिकार राज्य से ऊपर है । राज्य को वह सभी अधिकार व्यक्ति को देने चाहिए जो व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करने में सहायक होते हैं तथा उन परिस्थितियों को समाप्त कर देना चाहिए जो उनके विकास में बाधक उतपन्न करते हैं ।

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लास्की ने सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करने की बात कही है । वह नैतिक आधार पर सभी को एक जैसे अधिकार की मांग करता है । हालांकि उसने अलग अलग वर्गों को अलग अलग अधिकार का विरोध किया है ।

3) अधिकार और कर्तव्य

आइए अब बात करते हैं, अधिकार और कर्तव्यों के बारे में । लास्की का यह मानना है कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के सहायक हैं । वह अधिकार को कर्तव्य से अलग नहीं मानता है । वह व्यक्ति को अधिकार तभी देता है, जब व्यक्ति सामाजिक हित में कार्य कर रहा हो अथवा जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता । उसे अधिकार भी नहीं मिलने चाहिए ।

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लास्की के अनुसार-

“मेरे अधिकारों की मांग इसलिए खड़ी होती है कि मैं भी जनहित के लिए दूसरों के साथ योगदान करना चाहता हूं । सामाजिक हित से अलग अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं है ।”

इस तरह व्यक्ति और राज्य दोनों के कर्तव्य एक जैसे ही हैं और दोनों का उद्देश्य विकास करना है । यदि राज्य अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता है, तो व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि राज्य का विरोध करे । अधिकारों के विषय में माना जाता है कि, व्यक्ति और राज्य दोनों उत्तम साधन को प्राप्त करने का प्रयास करें ।

4) सामाजिक और आर्थिक अधिकार

लास्की व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए कुछ अधिकारों को जरूरी मानता है । जिसका व्यक्तित्व के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है । जैसे काम पाने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार,  वेतन पाने का अधिकार, काम के निश्चित घंटो का अधिकार आदि । इसके अंतर्गत व्यक्ति को काम पाने और उसे इस अधिकार से वंचित रखने का अर्थ है कि उसे उन साधनों से वंचित रखना जो उसके व्यक्तित्व को पूर्णता के लिए जरूरी है । इसी क्रम में वेतन का अधिकार काम के घंटे निश्चित करना तथा काम की उचित शर्तें निर्धारित होनी चाहिए । इसके साथ ही साथ नागरिकों को शिक्षा का अधिकार भी मिले, ताकि वे अपने अधिकारों का उचित उपयोग और अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वाह कर सकें ।

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5) विचार अभिव्यक्ति का समर्थन

उदारवाद का समर्थक होने के नाते लास्की ने समस्त नागरिकों के लिए विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रबंध समर्थन किया है । इसमें सरकार की आलोचना करने की स्वतंत्रता भी शामिल है, जो कि लोकतंत्र की आधारशिला है ।

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6) संपत्ति के सीमित अधिकार का समर्थन

इन सब के साथ ही लास्की ने संपत्ति के सीमित अधिकार का भी समर्थन किया है । उसके अनुसार संपत्ति का अधिकार तभी उचित ठहराया जाता है, जबकि नागरिक के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हो । यह अधिकार तभी उचित है, जब तक वह सामाजिक दायित्वों को पूरा करने में सहायक हो । जहां संपत्ति दूसरों के ऊपर अपनी शक्ति के प्रयोग का साधन बन जाए, वहां इस अधिकार को समाप्त कर देना चाहिए । संक्षेप में कहें तो संपत्ति का अधिकार सामान्य कल्याण की अवधारणा से जुड़ा हुआ है ।

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अगर निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो लास्की ने यहाँ पर एक कल्याणकारी राज्य की कल्पना की है, और व्यक्तियों के अधिकारों पर बल दिया है । हालांकि लास्की ने पूंजीवाद को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए भी नही कहा है । जहाँ उसने राज्य के ऊपर व्यक्तियों के अधिकारों को देने के लिए बल दिया है । उसने व्यक्तियों के लिए काम के लिए अधिकार, शिक्षा का अधिकार, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार इन सभी पर बल दिया है । उसने एक उदार लोकतंत्र की कल्पना की है, जिसमें जनसाधारण के पूर्ण कल्याण हो सके ।

तो दोस्तों यह था अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत, सिद्धान्त का रह, विशेषताएं और जिसने लास्की की द्वारा बताए गए विचारों को दिखाया गया है । अगर post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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