अंतराष्ट्रीय राजनीति का व्यवस्था सिद्धांत

System Theory of International Politics

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है । आज हम आपके लिए लेकर आए हैं । अंतरराष्ट्रीय राजनीति का व्यवस्था सिद्धांत । इस सिद्धांत में हम पढ़ेंगे ।

व्यवस्था सिद्धांत यानी कि System Theory of International Politics के बारे में ?

इस सिद्धांत की सबसे पहले किसने व्याख्या की ? तथा

इस सिद्धांत के प्रमुख जन्मदाता कौन है ?

व्यवस्था सिद्धांत के कुल कितने आदर्श यानी मॉडल दिए गए हैं ? तथा प्रत्येक मॉडल की प्रमुख विशेषताओं के बारे में भी जानेंगे ?

तो आइए शुरू करते हैं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति का व्यवस्था सिद्धांत । दोस्तों यह Post मुख्य रूप से राजनीति विज्ञान के उन छात्रों के लिए है, जो राजनीति के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत के विषय से संबंध रखते हैं ।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति का व्यवस्था सिद्धांत का अर्थ (Meaning of international Political System)

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्था का सिद्धांत व्यावहारिक क्रांति की देन है । इस सिद्धांत के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एक System लगातार चलता रहता है और इसके विभिन्न अंग आपस मे एक दूसरे से संबंध स्थापित करते हैं । दुनिया की संपूर्ण राजनीतिक गतिविधियां इसी सुव्यवस्थित ढांचे के अंगों के आपसी किर्या प्रतिक्रिया का परिणाम है । यानी विश्व की जितनी भी राजनीति में जितनी भी गतिविधियाँ होती हैं यानी जो भी निर्णय लिए जाते है । इसी व्यवस्था के अंगों की आपसी लेन देन, बातचीत, फैसले आदि का परिणाम होती हैं ।

तो राजनीति व्यवस्था का जो मॉडल है । इसकी कल्पना सर्वप्रथम के डब्ल्यू थॉमसन (K.W. Thompson) ने की थी । लेकिन मोर्टन कप्लन (Morton Kaplan) ने इसे व्यवस्थित सिद्धांत के रूप में स्थापित किया था ।

तो आइए जानते हैं । उन प्रमुख मान्यताओं के बारे में । वह क्या है ? व्यवस्था विश्लेषण (System Analysis) की धारणा के अनुसार किसी राष्ट्र का जो व्यवहार होता है, वह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से कुछ लेने का और कुछ देने का होता है । यानी कि किसी राष्ट्रीय का व्यवहार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में दो तरफा होता है । वह व्यवस्था से कुछ लेता है और कुछ देने का होता है । इसके अलावा यह सिद्धांत राज्य के व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है, क्योंकि राज्यों के बदले व्यवहार का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर दिखाई देता है । कोई भी राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इस प्रकार का व्यवहार करता है । उसका पूरा प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार पर भी पड़ता है ।

अब आइए देखते हैं, मोर्टन कप्लन का अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का दृष्टिकोण क्या है ?

तो मोर्टन कप्लन का अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का दृष्टिकोण कई मान्यताओं पर आधारित है । विभिन्न मान्यताओं के आधार पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति व्यवस्था के 6 आदर्शों की कल्पना की है । यानी Six Models जो निम्नलिखित हैं ।

1 शक्ति संतुलन व्यवस्था

2 शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था

3 कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था

4 सार्वभौमिक व्यवस्था

5 श्रेणीबद्ध व्यवस्था

6 इकाई वीटो व्यवस्था

इन 6 मॉडलों के बारे में जानकारी लेते हैं । इनमें से जो ध्यान देने योग्य बात है, वो ये की पहले तीन जो मॉडल हैं, वह ऐतिहासिक हैं । जबकि बाकी तीन मॉडल परीकाल्पनिक है । यानी पहले तीन तथ्य या सिद्धांत जो विश्व इतिहास में घटित हो चुके हैं । जबकि बाकी के तीन तथ्य या सिद्धांत काल्पनिक है । हो सकता है कि ये तथ्य भविष्य में घटित हों ?

1 शक्ति संतुलन व्यवस्था (Balance of Power)

यह व्यवस्था यूरोप में 18वीं और 19वीं शताब्दी में प्रचलित थी । जिसमें पांच या छह बड़ी शक्तियां होती थी । इनके बीच शक्ति संतुलन कायम रहता था तथा इसे नियंत्रित करने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय संगठन नहीं होता था । शक्ति संतुलन व्यवस्था की असफलता से इस व्यवस्था की समाप्ति हो जाती है । शक्ति संतुलन व्यवस्था के असफल होने के बाद 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई । 5-6 बड़ी शक्तियों के बीच एक शक्ति संतुलन बनाया गया तथा 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जो शक्ति संतुलन व्यवस्था थी । इसके सिद्धांतों का पालन नहीं किए जाने के कारण इसके असफल होने के बाद 1914 में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था ।

2 शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था (Dormant Dipole System)

कोई नियंत्रण न होने के कारण सन 1914 में शक्ति संतुलन की व्यवस्था की विफल हो गई । इसके बाद द्विध्रुवीय व्यवस्था का जन्म हुआ । शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था में दो शक्तिशाली राष्ट्र, बाकी राष्ट्रों को अपने-अपने गुट में शामिल करने में सफल हो जाते हैं । इसमें गुटों का संगठन शिथिल होता है तथा कई अन्य राष्ट्रोंपरि तथा क्षेत्रीय कार्यकर्ता विद्यमान होते हैं । शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था तब उत्पन्न होती है, जब शक्ति संतुलन व्यवस्था ध्वस्त हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों को अपने गुट में शामिल करने लगते हैं ।

3 कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था (Drastic Depole System)

शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था आसानी से कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है । इसमें होता यह है कि दो बड़ी महा शक्तियां अपने अपने गुणों के साथ जुड़ी हुई शक्तियों का नेतृत्व करती हैं । इसमें अंतरराष्ट्रीय संगठन बहुत कमजोर हो जाता है तथा तथा राष्ट्र सक्रिय नहीं हो पाते हैं । तो शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था में ही ऐसी व्यवस्था बन जाती है कि दो शक्तिशाली राष्ट्र अपने अपने गुणों का निर्माण कर लेते हैं । जबकि कठोर व्यवस्था में कुछ महाशक्ति दूसरे देशों का नेतृत्व करते हैं ।

आपको  यहाँ ये ध्यान देना है, इन 6 मॉडल्स में से पहले 3 ऐतिहासिक हैं, यानी जी घटित विश्व इतिहास में हो चुके हैं और उनसे संबंधित हैं । इसके अलावा अगले 3 मॉडल्स जो परिकल्पना पर आधारित हैं, यानी ये सिद्धांत आगे भविष्य में विश्व मे घटित हो सकती हैं ।

4 सार्वभौमिक व्यवस्था (Universal System)

इस व्यवस्था में सभी राष्ट्र एक संघात्मक प्रणाली में संगठित होते हैं । इसमें सार्वभौमिक कार्यकर्ता अत्यंत शक्तिशाली होता है । तथा संपूर्ण विश्व एक संघात्मक विश्व में बदल जाता है । विश्वव्यापी कार्यकर्ता इतना शक्तिशाली होता है कि उसके पास हर तरह का नियंत्रण होता है । वह युद्ध रोक सकता है तथा बाकी संतुलन बनाए रख सकता है । इस यूनिवर्सल सिस्टम यानी सार्वभौम व्यवस्था में सभी राष्ट्र एक संघात्मक प्रणाली में संगठन होते हैं ।

5 श्रेणीबद्ध व्यवस्था (Hierarchical System)

यह एक ऐसी व्यवस्था होती है, जब एक बड़ी महाशक्ति विजय अथवा संधि द्वारा सभी राष्ट्रों को अपने नियंत्रण में कर लेती है । राज्य प्रादेशिक इकाइयों में बदलकर क्रियात्मक इकाई बन जाते हैं । इस व्यवस्था में ऐसी स्थिति आ जाती है कि एक बड़ी महाशक्ति संपूर्ण विश्व के देशों का संचालन करने लगती है । जो सबसे बड़ा नियंत्रणकर्ता बन जाता है । चाहे वह किसी तरह की जीत के द्वारा हो सकता है या फिर किसी संधि के द्वारा भी हो सकता है । इस तरीके से वह सभी राष्ट्रों को अपने नियंत्रण में कर लेगा और वह राज्य प्रादेशिक इकाइयों से बदलकर उस संधि के अनुसार उस देश का अनुसरण क्रियात्मक रूप में करेंगे और वह एक क्रियात्मक इकाई बन जाएंगे ।

6 इकाई वीटो व्यवस्था (Vito unit system)

मोर्टन कप्लन द्वारा दिया गया यह छठा और अंतिम मॉडल है । यह बहुध्रुवीय धारणा पर आधारित है । जिसमें सभी राज्य अत्यंत शक्तिशाली होते हैं तथा सभी राष्ट्रों के पास अपनी सुरक्षा हेतु परमाणु अस्त्र होते हैं । इनमें कोई सार्वभौमिक कार्यकर्ता नहीं हो सकता तथा सभी राष्ट्र अपनी सुरक्षा हेतु स्वयं के सामर्थ्य पर निर्भर होता है ।

आइए अब जानते हैं कि इस व्यवस्था का मूल्यांकन क्या है ?

कप्लन के व्यवस्था सिद्धांत की आलोचना की गई है । आलोचकों ने 6 आदर्शों यानी मॉडलों के आधार पर मनमाना बंटवारे तथा इसे अलग-अलग कसौटीओं के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटने की आलोचना की है । आलोचकों के अनुसार यह मात्र एक आरंभिक धारणा है । इसका सीमा अत्यंत सीमित है तथा सिद्धांत और वास्तविकता में कोई मेल नहीं है । इसके अलावा कप्लन के तीनों परी कल्पनात्मक मॉडल अव्यवहारिक हैं । यहां तक कि कठोर द्विध्रुवीय मॉडल के स्थापित होने की संभावना भी ना के बराबर है ।

यद्यपि कप्लन के अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था संबंधी 6 मॉडल सीमित तथा अपर्याप्त या त्रुटिपूर्ण है फिर भी इसका यह अर्थ नहीं है कि यह सिद्धांत उपयोगी नहीं है । राष्ट्रों के मध्य संबंधों के विश्लेषण करने के लिए इस सिद्धांत का प्रयोग किया जा सकता है । अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन के लिए यह व्यवस्था दृष्टिकोण के मॉडल अत्यंत महत्वपूर्ण है ।

तो दोस्तों इस Post के जरिए हमने जाना कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का व्यवस्था सिद्धांत क्या है ? यानी मोर्टन कप्लन द्वारा व्यवस्था सिद्धांत के संबंध में दिए गए 6 मॉडल कौन-कौन से हैं, और उनका मूल्यांकन क्या है और उनकी आलोचना क्या है ?

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