संसदात्मक और अध्यक्षात्मक शासन में अंतर

संसदात्मक और अध्यक्षात्मक शासन में अंतर

Hello दोस्तों ज्ञानउदय ने आपका एक बार स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान के अंतर्गत संसदात्मक और अध्यक्षात्मक शासन के अंतर के बारे में । इस व्यवस्था में क्या अंतर होता है ? इन की क्या विशेषताएं होती हैं ? तो आइए जानते हैं आसान भाषा में ।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि सरकार के तीन महत्वपूर्ण अंग होते हैं, जिन्हें हम कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा व्यवस्थापिका के नाम से जानते हैं । कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के पारस्परिक संबंधों के आधार पर ही संसदात्मक तथा अध्यक्षात्मक शासन तथा सरकारों का निर्धारण होता है ।

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संसदात्मक शासन या सरकार का अर्थ

आइए अब संसदात्मक शासन या सरकार के बारे में जान लेते हैं । संसदात्मक सरकार मंत्रिमंडलीय सरकार होती है, जिसके अंतर्गत व्यवस्थापिका और कार्यपालिका का आपस में संबंध पाया जाता है । कार्यपालिका अपने कार्य के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होती है । संसदात्मक शासन में राजा या इसका अध्यक्ष केवल नाम मात्र का ही अधिकारी माना जाता है ।

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संसदात्मक शासन की विशेषताएं

संसदात्मक शासन या सरकार की अनेक विशेषताएं होती हैं, जिसके अंतर्गत व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में निकटतम संबंध पाया है । इसके अंतर्गत शासन का प्रधान नाम मात्र का ही शासक होता है, जिसके अंतर्गत सामूहिक उत्तरदायित्व उत्पन्न होता है । साथ-साथ इसमें व्यक्तिगत उत्तरदायित्व भी पाया जाता है । इसमें प्रधानमंत्री का नेतृत्व होता है । संसद को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है । इसमें गोपनीयता को रखना आवश्यक है । इसके अंतर्गत कार्यपालिका के कार्यकाल की अनिश्चितता होती है ।

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संसदात्मक शासन के गुण

आइए अब जान लेता है, संसदात्मक शासन या सरकार के गुणों के बारे में । कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका में आपस में तालमेल होता है । शासन जनता के प्रति उत्तरदाई होते हैं । इसमें सरकार पर नियंत्रण रखा जाता है । युद्ध तथा अनुभवी व्यक्तियों का शासन इसमें हमें देखने को मिलता है । यह राजनीतिक चेतना जागृत करने में सहायक होती है ।

संसदात्मक शासन के अवगुण

जिस तरह के संसदात्मक शासन व्यवस्था में इसके गुण पाए जाते हैं, उसी प्रकार से इसमें दोष भी विद्वान हैं । आइए अब जानते हैं, संसदात्मक शासन या सरकार के अवगुणों के बारे में । इस शासन में यह शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के विरुद्ध कार्य करता है । इसमें प्रधानमंत्री की मनमानी होती है । इसके अंतर्गत सरकार अस्थिर व कमजोर होती है । इसमें अयोग्य तथा अक्षम व्यक्तियों की सरकार बन जाती है । दलगत राजनीति की बुराइयां पैदा होती हैं । नौकरशाही का प्रभुत्व होता है ।

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दोस्तो ये था संसदात्मक शासन या सरकार के बारे में । आइए अब बात करते हैं, अध्यक्षात्मक सरकार या शासन के बारे में ।

अध्यक्षात्मक सरकार का अर्थ

अध्यक्षात्मक शासन/सरकार को संसदात्मक शासन के विपरीत माना जाता है । इसके अंतर्गत कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका एक दूसरे से अलग होती हैं । कार्यपालिका वास्तविक शासक तथा व्यवस्थापिका से अलग तथा स्वतंत्र होती है । इसके अंतर्गत मंत्रीपरिषद मंत्रीगण व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते, ना ही व्यवस्थापिका के प्रति इनका कोई उत्तरदायित्व होता हैं ।

अध्यक्षात्मक शासन के अंतर्गत कार्यपालिका का प्रधान या अध्यक्ष राष्ट्रपति को माना जाता है ।

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अध्यक्षात्मक शासन की विशेषताएं

यह सरकार या शासन व्यवस्था शक्ति के पृथकीकरण सिद्धांत पर आधारित होती है । इसमें कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है । मंत्रीपरिषद के सदस्य केवल सचिव होते हैं । और इसके अंतर्गत कार्यपालिका को ही वास्तविक शक्ति माना जाता है ।

अध्यक्षात्मक शासन के गुण

इस शासन व्यवस्था के अंतर्गत शासन कुशल होता है । शासन में स्थिरता होती है । अध्यक्षात्मक व्यवस्था को बहुदलीय प्रणाली के अनुकूल माना जाता है । संकट काल के लिए यह उपयुक्त शासन है । इसके अंतर्गत निश्चित तथा स्पष्ट नीतियां होती हैं । इसमें संघात्मक शासन की अनुकूलता भी रहती है ।

अध्यक्षात्मक शासन के दोष

आइए अब जानते हैं, अध्यक्षात्मक शासन या सरकार के अवगुणों के बारे में । शासन व्यवस्था में निरंकुश शासन का खतरा रहता है । इसके अंतर्गत उत्तरदायित्व का अभाव पाया जाता है । कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता । इसमें संविधान की कठोरता होती है तथा राजनीतिक जागरूकता का भी अभाव होता है ।

तो दोस्तों यह था संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन या सरकार के बारे में । उनकी विशेषताएं, उनके गुण, दोष एवं अंतर के बारे में । अगर आपको यह Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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