संविधानवाद क्या है, संविधान से इसकी तुलना

संविधान और संविधानवाद में अंतर

Difference between Constitution and Constitutionalism

Hello दोस्तों ज्ञानउदय में आपका स्वागत है और आज हम जानेंगे राजनीति विज्ञान में संविधानवाद के बारे में । (Meaning and Importance of Constitutionalism in Hindi). इस Post में हम जानेंगे, संविधानवाद क्या हैं ? संवैधानिक सरकार किसे कहते हैं ? इसकी परिभाषा और विशेषताएं और साथ ही साथ जानेंगे संविधान और संविधानवाद में अंतर क्या क्या हैं ? तो जानते हैं, आसान भाषा में ।  

संविधान : किसी भी देश या राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ नियमों और कानूनों की आवश्यकता होती है । संविधान के द्वारा किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था में उन नियमों व सिद्धांतों को लागू किया जाता है । वही संविधानवाद के द्वारा उन मूल्यों व आकांक्षाओं को सुरक्षित रखा जाता है । जिसके लिए संविधान को अपनाया गया है । संविधानवाद को Detail में समझने के लिए सबसे पहले हमें संविधान के बारे में जानना पड़ेगा । संविधान को जानने के लिए आप नीचे दिए गए Link पर Click कर सकते हैं ।

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संविधानवाद का अर्थ (Meaning of Constitutionalism)

संविधानवाद एक आधुनिक युग की राजनीतिक व्यवस्था है, जो उन विधियों और नियमों द्वारा चलती है, जो संविधान में वर्णित हैं । यह विधि की सर्वोच्चता की समर्थक है । साथ ही साथ इसमें राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सीमित शक्तियों वाले सरकार के सिद्धांतों का समावेश होता है । इसमें लोकतांत्रिक तरीके से शासन को चलाया जाता है । संविधान द्वारा राजनीतिक व्यवस्था को एक संवैधानिक विधि के अधीन रहना चाहिए तथा राजनीतिक शक्ति के नियंत्रण व इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए संविधान को बनाया गया है ।

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जिससे सभी लोग जिनके ऊपर शासन किया जाता है । इसी प्रकार के संवैधानिक नियंत्रण की व्यवस्था को संविधानवाद कहा जाता है । संविधान और संवैधानिक सरकार इसके आधारस्तंभ होते हैं ।

संवैधानिक सरकार क्या है ?

जो सरकार संविधान के नियमों और विधियों के अनुसार नियंत्रित हो, और जो संविधान के नियमों के अनुसार कार्य करें उसे संवैधानिक सरकार कहते हैं । जिस देश या राज्य में संविधान हो, वहां संवैधानिक सरकार का होना आवश्यक नहीं है । इस तरह संवैधानिक सरकार का आशय है, सीमित और नियंत्रित शासन । देश में केवल संविधान का होना मात्र सरकार को संवैधानिक नहीं बनाता । केवल वही सरकार संवैधानिक सरकार कहीं जाएगी जो संविधान के नियमों और विधियों पर आधारित हो । संविधान द्वारा सीमित और नियंत्रित हो तथा निजी स्वार्थ के स्थान पर केवल विधि के अनुरूप संचालित होती है ।

“संवैधानिक सरकार विधि द्वारा सीमित, नियंत्रित और प्रतिबंधित सरकार की होती है ।”

“ऐसी सरकार सत्ता का उपयोग कर रहे लोगों की इच्छा और क्षमताओं द्वारा सीमित नहीं होती है ।”

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संविधानवाद की विशेषताएं

आइए आप जानते हैं, संविधानवाद की विशेषताओं के बारे में । यह एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की अपेक्षा करती है । जिसमें सरकार की शक्तियां संविधान द्वारा सीमित है । संविधानवाद की प्रमुख विशेषता गतिशीलता को उतपन्न करना है, यह विकास का सूचक है । समय और परिस्थितियों के अनुसार समाज मे मूल्यों और आदर्शों के बदलने के साथ साथ संविधानवाद को अपनी परिस्थितियों को बदलना होता है ।

एक प्रकार से यह सीमित सरकार की संकल्पना का दूसरा नाम है । संविधानवाद संविधान पर आधारित विचारधारा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि संविधान के नियमों के अनुसार शासन का संचालन मात्र ही संविधानवाद है । क्योंकि एक तानाशाह भी संविधान बनाकर जनता की इच्छाओं की अवहेलना करके उन पर उसे बलपूर्वक लागू कर सकता है ।

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संविधानवाद मूल्यों पर आधारित अवधारणा है, यह उन मुल्यों और आदर्शों की तरफ इशारा करते है, जो किसी नागरिक के लिए महत्वपूर्ण हैं । संविधान के नियमों के अनुरूप शासन संचालन से कुछ अधिक है । यह नियम के अनुरूप शासन है ।

“शासन की वह पद्धति जिसमें शासन जनता की आस्था मूल्यों व आदर्शों को परिलक्षित करने वाले संविधान के नियमों व सिद्धांतों के आधार पर ही किया जाए और ऐसे संविधान के माध्यम से ही शासकों को भी प्रतिबंधित व सीमित रखा जाए जिससे राजनीति व्यवस्था की मूल स्थान सुरक्षित रहें और संविधान व राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यक्तियों की निष्ठा बनी रहे ।”

इस तरह संविधानवाद की विशेषताएं यह एक मूल्य संबंधित अवधारणा है । इसमें संस्कृति संबंध अवधारणा को देखा जा सकता है । इसको गत्यात्मक अवधारणा भी माना जाता है । इसमें सहभागिता साध्य मूलक और संविधानजन्य चीजों का समावेश होता है ।

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संविधान और संविधानवाद में अंतर

आइए आप जानते हैं, संविधान और संविधानवाद में अंतर के बारे में । हालांकि कुछ राजनीतिक विद्वानों के अनुसार ये दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची माने जाते हैं, फिर भी ये व्यवहार में अलग अलग हो सकते हैं । इस तरह इन दोनों ही अवधारणाओं में अंतर है । क्योंकि संविधान ही संविधानवाद की अभिव्यक्ति करता है । लेकिन संविधान का होना मात्र संविधानवाद की गारंटी नहीं है । संविधान व संविधानवाद में मुख्य अंतर अलग अलग दृष्टि से देखे जा सकते हैं ।

1) प्रकृति की दृष्टि से देखे तो, संविधान एक साधन मात्र है । जो समाज में रहकर लक्ष्य और उद्देश्यों को प्राप्त करता है । जबकि संवैधानिक एक ज़रिया है । जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करके संविधानवाद की स्थापना करता है ।

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2) अगर उत्पत्ति की दृष्टि से देखा जाए तो, संविधानवाद हमेशा से ही विकास का परिणाम रहा है । राष्ट्रों के मूल्यों व आदर्शों की व्यवस्था के कारण यह लंबी अवधि में विकसित होते हैं । जबकि संविधान ब्रिटेन के संविधान को छोड़कर एक निश्चित समय अवधि में तैयार किए गए हैं ।

3) प्रकृति के आधार पर भी इसमें मुख्य अंतर पाए जाते हैं । संविधानवाद में किसी राजनीतिक समाज के किसी लक्ष्य व उद्देश्य की प्राप्ति का लक्ष्य होता है । जबकि संविधान में इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक साधन जुटाया जाता है ।

4) संविधान संगठन का प्रतीक है, जबकि संविधानवाद एक विचारधारा है । संविधान नियमों व सिद्धांतों का संकलन है । जिसके आधार पर सरकार की शक्तियों व शासकों के अधिकारों का समायोजन किया जाता है । जबकि संविधानवाद में राष्ट्र के मूल्य विश्वास आस्था एवं राजनीतिक आदर्श का समावेश मिलता है । जिससे मिलकर एक विचारधारा का निर्माण होता है ।

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5) अगर वैधता के आधार पर देखें तो संविधानवाद में मूल्य, आदर्श व आस्थाओं के औचित्य का प्रतिपादन विचारधारा के आधार पर होता है । जबकि संविधान की वैधता का आधार विधि या कानून के द्वारा निर्धारित होता है ।

6) क्षेत्रीय आधार पर देखें तो, प्रत्येक देश का अपना संविधान अलग अलग होता है । जबकि संविधानवाद एक समावेशी धारणा है और कई देशों का संविधानवाद मूल्य, आदर्श, आस्था आदि । जिसको सामान्य रूप से दोनों जगह इस्तेमाल किया जाता है । यह किसी सामान्य उद्देश्य के लिए हो सकता है । यानी दो अलग अलग देशों का संविधान अलग हो सकता है, परन्तु संविधानवाद में उनके उद्देश्य सामान्य हो सकते हैं ।

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निष्कर्ष के रूप में देखा जाए तो संविधानवाद एक विचारात्मक अवधारणा है । जो किसी देश के मूल्य, आदर्शों तथा विश्वासों पर आधारित है । संविधानवाद उस राजनीतिक वातावरण में सम्भव है, जहां संविधान हो और शासन संविधान के नियमों के अनुसार हो ।  यानी संविधानवाद के लिए संविधान का होना अत्यंत आवश्यक है । लेकिन इसमें उन लक्ष्यों, आदर्शों का बोध होता है, जिन्हें कोई राष्ट्र व्यवहार में प्राप्ति करने के लिए लक्ष्य रखता है ।

तो दोस्तो ये यह था, संविधानवाद के बारे में । संविधानवाद की विशेषताएं, संवैधानिक सरकार तथा संविधान और संविधानवाद में अंतर । अगर Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तो के साथ ज़रूर Share करें । जब तक के लिए धन्यवाद !!

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