राज्य और इसके मुख्य अंग

State and its important Parts

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, राजनीति विज्ञान में राज्य और उसके महत्वपूर्ण तत्वों के बारे में । और साथ ही साथ ये भी जानेंगे कि संयुक्त राष्ट्र संघ एक राज्य है या नहीं । राज्य शब्द को राजनीति विज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान है और इसमें राज्य ही संपूर्ण अध्ययन का केंद्र बिंदु होता है । आप सभी लोग जानते हैं कि राज्य शब्द राजनीति विज्ञान में सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है । राज्य शब्द का प्रयोग कई भ्रामक अर्थों में भी किया जाता है ।

राज्य शब्द वैसे तो अंग्रेजी भाषा स्टेट (State) शब्द का हिंदी रूपांतरण है । प्राचीन यूनान में राज्य के लिए पोलिस यानी नगर राज्य शब्द का प्रयोग किया जाता था । वर्तमान समय में अमेरिकी तथा भारतीय संविधान में संघ की इकाई (Unit of Federation) के लिए राज्य शब्द का प्रयोग किया जाता है । विभिन्न विद्वानों ने राज्य को विभिन्न रूप में परिभाषित किया है । राज्य तथा इसके तत्व के रूप को राजनीति विज्ञान में परीभाषाओं द्वारा समझा जा सकता है । जिसका अध्ययन बहुत ही आवश्यक है ।

राज्य की परिभाषा

राज्य की परिभाषा को विभिन्न दृष्टिकोण से समझा जा सकता है । अनेक विद्वानों ने अपने अनुसार राज्य की परिभाषा दी है । तो इस तरीके से हम राज्य की परिभाषा को दो भागों में बांट सकते हैं ।

1 प्राचीन परिभाषाएं और

2 आधुनिक परिभाषाएं

प्राचीन परिभाषा में मुख्य रूप से अरस्तु की परिभाषा है । अरस्तू के अनुसार

“राज्य परिवार तथा ग्रामों का एक संघ है । जिसका उद्देश्य एक पूर्ण तथा आत्मनिर्भर जीवन की स्थापना करना होता है ।”

सिसरो के अनुसार

“राज्य ऐसा बहुसंख्यक समुदाय है, जो अधिकारों की समायोजन भावना तथा लाभ उठाने में आपसी सहायता द्वारा जुड़ा हुआ होता है ।”

इसी तरह प्राचीन परिभाषा के अंतर्गत ग्रोसियास कहते हैं कि

“राज्य स्वतंत्र लोगों का ऐसा पूर्ण समाज है, जिससे वह अपने अधिकारों और पारस्परिक हितों के कारण एक दूसरे से बने हुए हैं ।”

आधुनिक परिभाषाओं में आधुनिक लेखक जैसे हॉलैंड कहते हैं कि

“राज्य असंख्य व्यक्तियों का एक ऐसा संगठन है । जो एक निश्चित भूभाग पर रहता है और जहां बहुसंख्यक अथवा एक निश्चित वर्ग की इच्छा उनके वर्ग के कारण विरोधी लागू होती है ।”

ब्लेंडरसी के अनुसार

“किसी एक निश्चित भूभाग में रहने वाले लोगों का वह संघ है, जो राजनीतिक आधार पर संगठित होता है ।”

विल्सन के अनुसार

“राज्य एक ऐसा जनसमूह है, जो निश्चित प्रदेशों में नियम अथवा विधि के द्वारा संगठित होता है ।”

इस तरीके से राज्य की यह प्राचीन और आधुनिक परिभाषाएं हैं । जो विभिन्न लेखकों द्वारा अपने अपने दृष्टिकोण के अनुसार दी गई हैं । हालांकि यह परिभाषा आधुनिक कल्पना की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है । आइए जानते हैं, कुछ महत्वपूर्ण और मान्य परिभाषाएं ।

ब्लेंडरसी के अनुसार भूमि तथा राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का उल्लेख करते हैं । परंतु इसमें राजसत्ता की ओर ध्यान नहीं दिया गया है । इसी प्रकार विल्सन और लास्की भी राज्य की आंतरिक सत्ता की ओर ध्यान नहीं देते हैं ।

इसमें राज्य के बहारी स्वरूप का तो समावेश है । इन सब की अपेक्षा अगर देखें तो गिलक्राइस्ट  की परिभाषा अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है गिलक्राइस्ट कहते हैं कि

“जहां लोग एक निश्चित प्रदेश में, एक सरकार के अधीन संगठित होते हैं । राज्य उसे कहते हैं ।”

यह सरकार आंतरिक मामलों में अन्य सरकारों से स्वतंत्र होती है ।

आइए जानते हैं । गार्नर राज्य के बारे में क्या कहते हैं । गार्नर वैज्ञानिक दृष्टि से सबसे खरे उतरते हैं और उनकी परिभाषा सबसे सटीक और आधुनिक मानी जाती है । इस बार हम कहते हैं कि

“राज्य मनुष्य के उस समुदाय का नाम है, जो संख्या में चाहे अधिक हो या कम हो । परंतु स्थाई रूप से किसी निश्चित भूभाग पर बसा हुआ हो । जो कि बाहरी शक्ति के नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र हो और जिसमें एक ऐसी सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था या सरकार विद्यमान हो । जिसको आदेश का पालन करने के लिए उस भूभाग के सभी निवासी अभ्यस्त होते हैं ।”

तो इस हिसाब से देखें तो हम पाते हैं कि जो गार्नर की परिभाषा है । वह वैज्ञानिक कसौटी पर सबसे खरी उतरती है । क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के आवश्यक तत्व जनसंख्या, निश्चित भूभाग, सरकार और संप्रभुता का समावेश पाया जाता है ।

आइए अब जानते हैं, राज्य के आवश्यक तत्वों के बारे में । राज्य के तत्वों के बारे में भी विभिन्न विद्वानों के मत आपस में अलग-अलग हैं । कुछ विद्वान केवल तीन तत्वों का ही वर्णन करते हैं । राज्य की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अगर हम बात करें तो, गार्नर और ब्लेंडरसी को ध्यान में रखते हुए, राज्य के निम्नलिखित चार तत्व हो सकते हैं ।

राज्य के आवश्यक तत्व

1 जनसंख्या

2 निश्चित भूभाग

3 सरकार

4 संप्रभुता

सभी विद्वानों की परिभाषाओं के आधार पर इन्हीं 4 महत्वपूर्ण चीज़ों को ही राज्य के आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी जाती है । तो हम एक-एक करके अध्ययन करते हैं ।

1 जनसंख्या

लगभग सभी विद्वानों ने जनसंख्या को राज्य का आवश्यक तत्व माना हैं । विद्वानों के अनुसार लोगों के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती । राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए ? इसका कोई निश्चित मापदंड नहीं है । प्लेटो में अपनी पुस्तक रिपब्लिक (Republic) में आदर्श राज्य के लिए 5040 व्यक्तियों का होना आवश्यक माना था । तो रूसो ने राज्य के लिए 10000 की जनसंख्या को उचित माना था । इस तरह से प्राचीन मिस्र तथा रूस में छोटे- छोटे नगर राज्य होते थे । उनकी जनसंख्या 5 से 10000 के आसपास होती थी ।

लेकिन आज की स्थिति ऐसी है कि जनसंख्या की कोई निश्चित सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती । आज ऐसे अनेक राज्य है । जिसकी जनसंख्या 80 से 90 करोड़ तक है और ऐसे राज्य भी हैं जिनकी जनसंख्या मात्र कुछ लाख या हजारों में है । तो गार्नर यही कहते हैं कि जनसंख्या राज्य के संगठन के निर्वाह के लिए पर्याप्त होनी चाहिए तथा उससे अधिक नहीं होनी चाहिए । जिसके लिए भूखंड तथा राज्य के लिए साधन पर्याप्त है । तो कुल मिलाकर जनसंख्या एक संतुलित रूप में होनी चाहिए । जिसके अनुसार भूखंड और राज्य साधन उस राज्य के पालन पोषण तथा विकास के लिए पर्याप्त हो ।

2 निश्चित भूभाग

किसी भी राज्य के लिए निश्चित भूभाग का होना बहुत आवश्यक है । अगर भूभाग होगा तभी जनसंख्या उसपर निवास करेगी । मतलब जो राज्य होता है, उसको स्थापित करने के लिए किसी जगह की जरूरत होती है और उसी जगह पर जनसंख्या स्थाई रूप से निवास करती है । ब्लेंडरसी के अनुसार कि

“कोई भी जनसमूह तब तक राज्य नहीं होता, जब तक कि वह एक निश्चित भूभाग प्राप्त नहीं कर लेता ।”

इसी तरह इधर-उधर भटकने वाले खानाबदोश जातियों को राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है । क्योंकि इस तरह की खानाबदोश जातियां एक स्थायी जगह न होकर इधर- उधर रहती है । तो इस तरह से जो निश्चित भूभाग है । वह राज्य का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक तत्व है । इसके बिना राज्य की नहीं बन सकता ।

भू-भाग के संबंध में यह है प्रश्न उठता है कि इसका क्षेत्रफल कितना होना चाहिए ।हालांकि  इसका कोई विशेष मापदंड नहीं है । किसी भी राज्य का क्षेत्रफल कुछ भी हो सकता है ।

रूसो ने प्रत्यक्ष लोकतंत्र के लिए छोटे राज्यों को अधिक उचित माना था ।

3 सरकार

सरकार राज्य का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है । सरकार राज्य को संचालित करने के लिए एक तंत्र होता है । राज्य के लिए एक संगठित सरकार का होना बहुत ही आवश्यकता है । मनुष्यों का एक राजनीतिक संगठन होना बहुत जरूरी है । आप सभी जानते हैं, कि सरकार राज्य को संचालित करने का महत्वपूर्ण साधन होती है और मनुष्य के राजनीतिक संगठन होना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि राज्य का संचालन बिना मनुष्य के संगठन के नहीं हो सकता और जो यह संगठन होता है । सरकार के रूप में स्थापित होता है । सरकार के माध्यम से राज्य के लक्ष्य की पूर्ति की जा सकती है और राज्य की क्रियाओं को संचालित किया जा सकता है । सरकार के द्वारा किसी राज्य का विकास किया जा सकता है । गार्नर के अनुसार सरकार राज्य का वह साधन या यंत्र है, जिसके द्वारा राज्य का उद्देश्य, अर्थात सामान्य नीतियों और सामान्य हितों की पूर्ति होती है ।

प्राचीन समय में सरकार के काम सीमित थे । कानून बनाना, न्याय करना आदि । लेकिन आज के समय में सरकार का कार्य क्षेत्र विस्तृत हो चुका है । जिससे कल्याणकारी राज्य की अवधारणा उत्पन्न होती है ।

4 संप्रभुता

राज्य का चौथा महत्वपूर्ण अंग संप्रभुता है ।यह राज्य की सर्वोच्च इच्छा शक्ति है । इसके अधीन राज्य में निवास करने वाले सभी लोग रहते हैं । संप्रभुता ही वास्तव में किसी राज्य की पहचान है । बिना संप्रभुता के कोई भी राज्य राज्य नहीं कहा जा सकता और संप्रभुता राज्य को एक अलग पहचान दिलाती है । जटिल के अनुसार संप्रभुता ही राज्य का लक्षण है । जो उसे अन्य समुदायों से अलग करता है । संप्रभुता ही राज्य को अन्य समुदायों से अलग करता है ।

संप्रभुता राज्य की वह सर्वोच्च शक्ति है । जिसके अधीन उस राज्य क्षेत्र में निवास करने वाले सभी लोग रहते हैं । संप्रभुता को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है ।

 i आंतरिक और

ii बाह्य संप्रभुता

आंतरिक संप्रभुता में राज्य का सर्वोच्च सत्ता से का निर्माण किया गया है, जिस की आज्ञा का पालन राज्य की सभी लोग करते हैं । सरकार कानून बनाती है, उसे लागू करती है और जो लोग इन कानूनों का पालन नहीं करते । सरकार उनको सजा देती है । आंतरिक क्षेत्र में राज्य की इस संप्रभुता को सभी लोग स्वीकार करते हैं ।

बाह्य संपूर्णता में अधिक राज्य की स्वतंत्रता हैं । राज्य अन्य राज्यों के अधीन नहीं होता है और किसी दूसरे राज्य की आज्ञा का पालन के लिए बाध्य नहीं होता है । आइये अब जानते हैं ।

क्या संयुक्त राष्ट्र संघ एक राज्य है ?

यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या संयुक्त राष्ट्र संघ को राज्य कहा जा सकता है ? या किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था को राज्य का दर्जा दिया जा सकता हैं ? आइए जानते हैं,

संयुक्त राष्ट्र संघ के पास निश्चित भूभाग है और उसके पास कार्य संचालन के लिए योग्य अधिकारियों की एक बड़ी संख्या भी है । लेकिन फिर भी इसको राज्य नहीं कहा जा सकता है । पहली सबसे महत्वपूर्ण बात है । इसमें भूभाग और अधिकारियों की संख्या तो है जो राज्य के लिए महत्वपूर्ण है । लेकिन इसको राज्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसके पास अपनी जनसंख्या और संप्रभुता की कमी है । यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता । इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ एक स्वैच्छिक संगठन है । इसके जो नियम और आदेश है । उनका पालन उनके सदस्यों की इच्छा पर निर्भर है । संयुक्त राष्ट्र संघ किसी सदस्य राज्य को किसी कानून को मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है कि उसे उसका पालन ही करना पड़े । इसलिए अंतरराष्ट्रीय संगठन राज्य की श्रेणी में नहीं आते हैं ।

तो दोस्तों यह था राज्य और उसके आवश्यक तत्व जो किसी राज्य के लिए महत्वपूर्ण हैं । अगर आपको Post अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ ज़रूर Share करें । तब तक के लिए धन्यवाद !!

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