तीसरी दुनिया क्या है ? नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था

नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था-तीसरी दुनिया

Third world in new international System

Hello दोस्तों ज्ञान उदय में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करेंगे राजनीति विज्ञान में तीसरी दुनिया के बारे में । नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत 1945 से लेकर 1990 तक का समय काफी महत्वपूर्ण रहा है । जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारी घटनाएं घटित हुईं । जी हां दोस्तों जैसा कि आप सभी जानते हैं, शीत युद्ध के दौरान दुनिया के देश कई गुटों में बट गए ।

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अमेरिका ने अपना पश्चिमी गुट बनाया, सोवियत संघ ने अपना पूर्वी गुट बनाया और गुटनिरपेक्षता ने इसमें काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

अमेरिका ने दुनिया को विकल्प दिया कि वह उसके साथ शामिल हो जाएं और पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करें । इस तरह अमेरिका ने अपने साथ कई देशों को शामिल करके अपना पश्चिमी गुट बनाया ।

वही सोवियत संघ (जिसे उस समय USSR के नाम से जाना जाता था) ने भी दुनिया को एक विकल्प दिया । उसने भी दुनिया के देशों से कहा कि आप हमारे साथ शामिल हो जाओ और समाजवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करो ।

इसके अलावा कुछ देश ऐसे भी थे जो इन दोनों गुटों में नहीं जाना चाहते थे । तो उस समय मे गुटनिरपेक्षता ने एक कारगर भूमिका निभाई और दुनिया को तीसरा विकल्प दिया । जो बाकी दोनों गुटों पूंजीवादी और समाजवादी से अलग था । जो उन दोनों गुटों में शामिल नहीं थे । यानी किसी भी गुट के समर्थन में नही थे । उन देशों ने गुटनिरपेक्षता का समर्थन किया । यहाँ गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और समृद्धि की और अग्रसर होने था ।

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इस तरीके से दुनिया तीन हिस्सों में बट गई थी । यानी वह अपनी अलग अलग दुनिया कहलाने लगे । वह निम्न प्रकार है ।

पहली दुनिया

जिसका मतलब था पूंजीवादी अर्थव्यवस्था यानी वह सारे देश जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपने लिए श्रेष्ठ मानते थे । वह सारे अमेरिका के गुट में शामिल हो गए । पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में यूरोप, फ्रांस, टर्की आदि आते हैं । इसके अलावा बहुत सारे देश में जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का समर्थन करते थे । पश्चिमी गुट में शामिल हुए और पहली दुनिया के देश कहलाए ।

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के सभी साधन जैसे क्या उत्पादन किया जाए ? उत्पादन कैसे किया जाए ? और किसके लिए उत्पादन किया जाए ? यह सभी चीजें निजी हाथों में चली जाती हैं । इसमें सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता । इसमें समाज कल्याण की अपेक्षा पूंजी के ऊपर ज्यादा ध्यान दिया जाता है और किस प्रकार ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जाए । पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्देश्य लाभ प्राप्त करना होता है ।

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दूसरी दुनिया

दूसरी दुनिया देश उन देशों को कहते हैं, जिनका उद्देश्य सिर्फ एक ही था और वह था समाजवाद । यानी समाज का कल्याण करना । जितनी भी शक्तियां हैं । जो शासन में काम आती हैं । वह सारी सरकार के पास चली जाए । वह लोगों के हित में और उनके विकास के लिए काम करें । यानी जो भी फैसला ले वह सरकार ही ले ।

इसमें किसी का कोई हस्तक्षेप ना हो । इस तरीके से समाजवाद का समर्थन करने वाले देशों को दूसरी दुनिया के देश कहा गया ।

तीसरी दुनिया

तीसरी दुनिया में उन देशों को शामिल किया जाता है, जिनका सिर्फ एक ही उद्देश्य था । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति प्राप्त करना और अपने देशों का विकास करना । इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें वह सभी देश शामिल थे, जो नव स्वतंत्र थे । यानी जिनको अभी-अभी स्वतंत्रता मिली थी । वह देश चाहे लैटिन अमेरिका के हों, अफ्रीका के हों, एशिया के हों या फिर किसी और Continental के हों । इसमें वह सभी देश शामिल हुए और इनका उद्देश्य विकास करना और शांति को बहाल करना था ।

तीसरी दुनिया के देशों में एक सामान्य बात यह थी कि वह काफी लंबी गुलामी करने के बाद आजाद हुए थे । इन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करने के बाद आजादी मिली थी और यह देश नहीं चाहते थे कि किसी तरीके की कोई समस्या या कोई नुकसान इनके साथ हो । इसलिए यह देश शांति के और विकास के समर्थक बने और गुट निरपेक्षता का समर्थन किया ।

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तो दोस्तों ये था नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बारे में और दुनिया किस तरह गुटों में बटी । अगर Post अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ Share करें । धन्यवाद !!

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